बिना ज्ञान के मुक्ति नहीं

बिना ज्ञान के मुक्ति नहीं
मै का मर जाना ही ज्ञान है। कर्ता का मिटना ज्ञान है। भगवान की भक्ति करते हुए हमारे भीतर से मै हू मै कर्ता  हू मिटने लगता है। जो किरया शरीर से होती है उसमें कर्ता कर्म है। जंहा करता है वहाँ मै है।  यह सब जब तक शरीर में मन में कर्ता पन का भाव है तब तक हम शरीर तत्व मे है जिस दिन कर्ता मर जाता है उस दिन से हम भगवान नाथ श्री हरी का स्मरण नहीं कर रहे हैं। कर्ता कर्म और किरया भगवान बन जाते हैं  भगवान का स्मरण मे  भगवान और भक्त दो नहीं है भगवान ही कर्ता है भगवान ही पुजा और पुजक हैं
भक्त देखता है वास्तव में कोई भी किरया मेरे द्वारा नहीं होती है परमात्म चेतना ही सबकुछ करता है शरीर नहीं करता है। शरीर मरण शील है चेतना, आत्मा अजर अमर है। भक्ति ध्यान नाम चिन्तन करते हुए धीरे-धीरे मै मर जाता है। मै में अंहकार है मै मिट गया करता पन खत्म हो गया। करता मिट गया हर क्षण परमात्मा का चिन्तन अन्तर्मन से हो रहा है। तब हर घडी भक्त आनंद मे है। जो कार्य मेरे द्वारा होता था वह रहा ही नहीं करता कोई ओर है मै ऐसे ही आंहे भरता था। जितने भी संत हुए हैं कबीर दास जी बाल्मिकी जी रैदास जी वे सब जीते जी मुक्ति को समझ कर जान कर देख कर गए हैं भगवान उनके साथ साथ चलते हैं। जीवन को पढना जब तक हम नहीं सिखते है तब वही सुबह और वही शाम है एक आध्यात्मिक जीवन के हर क्षण को देखता परखता है दृष्टि को टिका कर रखता है। जिस दिन हम सुख और आनंद की दोङ को छोड़ देते हैं। सुख की खोज भी नहीं करते हैं सुख के पीछे दुख में छिपे वास्तविक जीवन की वास्तविकता को पढते है तब जीवन मुल्य को समझ सकते हैं। जीवन मुल्य को समझ कर ही प्राप्ती के मार्ग से ऊपर उठ कर  त्याग मार्ग आता है। अन्तर्मन मे चलते हुए विचारों को पढना उनकी खोज करना जीवन का लक्ष्य बन जाता है तब परते दरकने लगती है। खोज करते हुए मार्ग मिल जाएगा। खोज करते रहे खोज हमे अन्तर्मन से करनी है। बाहर कुछ नहीं मिलेगा। द्वार भीतर का खोलना है। हम सुख और भोग मे जीवन की शाम कर देते हैं। मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य क्या है। हम जानने की चेष्टा ही नहीं करते हैं। आनन्द से आगे चल कर परमानंद है। दुख परिस्थिति का परिवर्तन है। कठिन परिस्थिति में नीज का नीज से परिचय है। जिस दिन दुख की चादर में छिपे प्रकाश को निकाल लोगे चारों और उज्वलता होगी। अध्यात्म को नहीं समझते हैं। तब तक हम इधर उधर भटकते रहेगे। इन सबके लिए भीतर की परिस्थिति को पढना समझना आवश्यक है। ज्ञान हमे भीतर से प्राप्त होता है बाहर का कोई महत्व नहीं है। हमे पुजा से ध्यान से माला से ऊपर उठ कर प्रभु प्राण नाथ का चिन्तन करना है।भक्त के भीतर नाम ध्वनि उजागर हो जाती है तब हर घडी प्रभु चिन्तन है ऐसे अनेक भक्त हुए हैं जिन्होंने कार्य करते हुए परमात्मा के भाव में भाव सेवा करते थे।

भाव सेवा क्या है। मानसिक भोग मानसिक भगवान श्री हरि की चरण सेवा है ।  उनके पास कोई विधि का विधान नहीं था हृदय की पुकार थी उनके प्राण परमात्मा में लीन थे वे चलते तब परमात्मा ही चलते। उनकी हर किरया कर्म प्रभु की सेवा था। वे आनंद मगन प्रभु प्राण नाथ से बात करते हुए कितने गहरे उतर जाते थे वे भी नहीं जानते। वे संत परमात्मा का रूप बन जाते हैं अष्ट महासिद्धीयां सेवा कर रही है हर क्षण परमात्मा के ध्यान में लीन रहते हैं। वे मुक्त होकर गए हैं। जय श्री राम अनीता गर्ग

बिना ज्ञान के मुक्ति नहीं
मै का मर जाना ही ज्ञान है। कर्ता का मिटना ज्ञान है। भगवान की भक्ति करते हुए हमारे भीतर से मै हू मै कर्ता  हू मिटने लगता है। जो किरया शरीर से होती है उसमें कर्ता कर्म है। जंहा करता है वहाँ मै है। मै यह वह करता हूँ। यह सब जब तक शरीर में मन में कर्ता पन का भाव है तब तक है जिस दिन कर्ता मर जाता है उस दिन से हम भगवान नाथ श्री हरी का स्मरण नहीं कर रहे हैं। कर्ता कर्म और किरया भगवान बन जाते हैं  भगवान का स्मरण मे  भगवान और भक्त दो नहीं है भगवान ही कर्ता है भगवान ही पुजा और पुजक हैं
भक्त देखता है वास्तव में कोई भी किरया मेरे द्वारा नहीं होती है परमात्म चेतना ही सबकुछ करता है शरीर नहीं करता है। शरीर मरण शील है चेतना, आत्मा अजर अमर है। भक्ति ध्यान नाम चिन्तन करते हुए धीरे-धीरे मै मर जाता है। मै में अंहकार है मै मिट गया करता पन खत्म हो गया। करता मिट गया हर क्षण परमात्मा का चिन्तन अन्तर्मन से हो रहा है। तब हर घडी भक्त आनंद मे है। जो कार्य मेरे द्वारा होता था वह रहा ही नहीं करता कोई ओर है मै ऐसे ही आंहे भरता था। जितने भी संत हुए हैं कबीर दास जी बाल्मिकी जी रैदास जी वे सब जीते जी मुक्ति को समझ कर जान कर देख कर गए हैं भगवान उनके साथ साथ चलते हैं। जीवन को पढना जब तक हम नहीं सिखते है तब वही सुबह और वही शाम है एक आध्यात्मिक जीवन के हर क्षण को देखता परखता है दृष्टि को टिका कर रखता है। जिस दिन हम सुख और आनंद की दोङ को छोड़ देते हैं। सुख की खोज भी नहीं करते हैं सुख के पीछे दुख में छिपे वास्तविक जीवन की वास्तविकता को पढते है तब जीवन मुल्य को समझ सकते हैं। जीवन मुल्य को समझ कर ही प्राप्ती के मार्ग से ऊपर उठ कर  त्याग मार्ग आता है। अन्तर्मन मे चलते हुए विचारों को पढना उनकी खोज करना जीवन का लक्ष्य बन जाता है तब परते दरकने लगती है। खोज करते हुए मार्ग मिल जाएगा। खोज करते रहे खोज हमे अन्तर्मन से करनी है। बाहर कुछ नहीं मिलेगा। द्वार भीतर का खोलना है। हम सुख और आनंद मे जीवन की शाम कर देते हैं। आनन्द से आगे चल कर परमानंद है। दुख परिस्थिति का परिवर्तन है। कठिन परिस्थिति में नीज का नीज से परिचय है। जिस दिन दुख की चादर में छिपे प्रकाश को निकाल लोगे चारों और उज्वलता होगी। अध्यात्म को नहीं समझते हैं। तब तक हम इधर उधर भटकते रहेगे। इन सबके लिए भीतर की परिस्थिति को पढना समझना आवश्यक है। ज्ञान हमे भीतर से प्राप्त होता है बाहर का कोई महत्व नहीं है। हमे पुजा से ध्यान से माला से ऊपर उठ कर प्रभु प्राण नाथ का चिन्तन करना है।भक्त के भीतर नाम ध्वनि उजागर हो जाती है तब हर घडी प्रभु चिन्तन है ऐसे अनेक भक्त हुए हैं जिन्होंने कार्य करते हुए परमात्मा के भाव में भाव सेवा करते थे।

What is the service service. Mental enjoyment is mental Lord Shri Hari Charan Seva. He had no law of law. The call of the heart was a call, his souls were absorbed in the divine, they would go on and then God would go. Every Kiya Karya Karma was the service of the Lord. He did not even know how deep he used to get down while talking to Anand Magan Prabhu Pran Nath. Those saint become the form of God, Ashta Mahasiddhis are serving every moment, they remain absorbed in the meditation of God. They have gone free. Jai Shri Ram Anita Garg

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