हरि ॐ तत् सत् जय सच्चिदानंद 🌹🙏
मनुष्य के तीन शरीर होते हैं।
पहला आकार आकृति से रहित निरंकार
फिर सुक्ष्म शरीर
मन चित बुद्धि अहंकार में ये जीवात्मा है।इसी में चेतना प्रकाश रूप है।
यही चेतना से ये
स्थूल शरीर प्रकाशित हैं।
तीसरा स्थूल शरीर
जो बाहर दिख रहा है।
ये स्थूल शरीर ही नाशवान है।
निराकार रूप ही हमारा वास्तविक स्वरूप है।
इसके बाद जो भी मिला वो हमारी यात्रा के पड़ाव है।
जैसे अपने घर से निकले
वैष्णो देवी के यहां जाने के लिए
तो मार्ग में विश्राम स्थल बने होते हैं।
कहीं होटल है,कहीं नाश्ता चाय पानी कोल्ड ड्रिंक आदि तो हमें रूकना पड़ता है।
ठीक ऐसे ही
निराकार से निकले और सूक्ष्म शरीर से स्थूल शरीर में आए स्थूल शरीर से जगत में आए
यहां आकर हम पड़ाव में फंस गये
अपना मकान दुकान घर परिवार रिश्तेदार बच्चे, पति पत्नी बेटा बेटी धन दौलत ज़मीन जायदाद कोठी बंगले गाड़ियां आदि ये सब हमारे पड़ाव है।
अगर कोई सीधे वैष्णो देवी के दर्शन करके सीधे अपने घर वापस आ जाए तब तो उसकी यात्रा सफल हैं
अगर वो बीच पड़ाव में रूक गया तो उसे थकान ज्यादा होगी ठीक ऐसे ही हमें अपने उसी निराकार रूप को वापस पाने के लिए किसी भी पड़ाव पर रूकना नहीं
ये आंख कान नाक जीभ त्वचा में इन्द्रियों के पड़ाव है। हमें न पड़ाव पर नहीं रूकना
न ही मन, बुद्धि के पड़ाव पर रूकना
न ही किसी शब्द के पड़ाव पर रूकना
जहां हो वहीं खड़े हो जाओ और अपने उसी लक्ष्य निराकार की ओर बढजो तुम्हारा आख़री पड़ाव है। निराकार
जहां कोई आकार आकृति नहीं वहां शून्य मौन है।
वहीं परमानंद है।
जहां दीपक जरे अगम का बिन बाती बिन तेल