हृदय से ढुढने पर ही परमात्मा मिलेगे। सन्त महात्मा हमे मार्ग दिखा देंगे पर लग्न का दिपक हमे अपने आप प्रज्वलित करना है।
कटीले रास्तो पर अकेले ही चलना पड़ता है। हम तो क्या करते हैं गुरु बनाते हैं और सोचते हैं अब सबकुछ गुरु जी कर देगे। गुरु जी बनाना प्रथम स्टप है। हमे देखना यह है कि हमने गुरु किसलिए बनाया है।
गुरू हमारी श्रद्धा और विश्वास के आसन पर विराजमान होते हैं भगवान को भजते हुए गुरु का स्मरण करने से श्रद्धा और विश्वास प्रकट होगा।
हमें जो भी प्राप्त होगा वह हमारी अन्तर्मन की खेती से ही होगा। हम गुरू बनाते हैं, मन्दिर में जाते हैं, पाठ करते हैं। जब तक आप श्रद्धा से भगवान को भजते नहीं है तब तक गुरु और भगवान की कृपा बरसती नहीं है
एक भक्त का भाव होता है मै भगवान के दर्शन करना चाहता हूं। भगवान से मिलना चाहता हूं। मेरे भगवान कैसे दिखते होंगे। मै भगवान का बनना चाहता हूँ। भक्त के दिल के भाव ठहर ठहर कर उंमग जगाते है
भक्त के हृदय का विस्वास दिन प्रति दिन दृढ होता जाता है भगवान आएंगे, भगवान दर्शन देगें। भक्त सोचता है अहो जीवन की संध्या होने को आई भगवान कब आओगे ।
ये सांस की डोर टुटने की कगार पर हैं। अवश्य ही तुने भगवान को सच्चे दिल से ध्यान नहीं लगाया। तुझमें ही खोट भरे हुए हैं तभी स्वामी ने तुझे अपनाया नहीं है। तेरे पाप कर्म ही अधिक रहे होंगे।
भक्त अपने मन और दिल को टटोलता है कि मेरा प्रभु प्राण नाथ से सम्बंध में कोन सी रूकावट आ रही है मै अपने भगवान को पुरण रूप से क्यो चिन्तन नहीं कर पाता हूं। जय श्री राम अनीता गर्ग
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