मौन

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भक्त भगवान को भजते हुए नाम जप कीर्तन करते हुए देखता है कि भाव की गहराई नहीं बन रही है प्रभु के भाव कुछ समय बनते हैं। फिर कुछ रूकावट पैदा हो जाती है।भगवान से मिलन की तङफ में दिल रोता है कब प्रभु से मिलन होगा। कुछ समय अहसास रहता है भगवान आऐ हैं। भगवान के भाव मे खो जाता है आनंद की लहर उमङने लगती है मन ही मन भगवान की वन्दना करता है ।भगवान को बार प्रणाम करता है आनंद मे नैन नीर बहातें हैं भगवान के भाव में नृत्य कर रहा है। सुबह शाम दोपहर बस भगवान के भाव मे है भाव टुटता है तब दिल रोता है भक्त के हृदय को चैन नहीं मिलता है वह भगवान का चिन्तन मनन करता है अवश्य ही मुझ से कुछ भुल हुई होगी। वह अपने आपको परखता हैं कि मार्ग में दृढ़ता नहीं है। भक्त का मार्ग में दृढ़ता नहीं बनती है तब वह आनंद को भी प्राप्त नहीं करना चाहता है। भक्त कहता जो आनंद कुछ दिन बनता है और आनन्द बिगड़ जाता है वह सच्चा मार्ग नहीं भक्त भक्ति मार्ग को दृढ करने के लिए अन्दर के विकारों को मिटाने के लिए मौन हो जाता है।

भगवान नाथ श्री हरी को दिल ही दिल मे भजता है भक्त जानता है काया झोपड़ी के दस द्वार है इन द्वारो से काम क्रोध लोभ मोह प्रवेश करते हैं। भगवान के प्रेम भाव में बाधा डालते हैं।

भक्त मुख द्वार पर मौन का ताला लगा देता है। अन्तर्मन से बहुत सावधानी से भगवान को भजता है भक्त जानता है बाहरी आनंद सच्चा नहीं अन्तर्मन का आनंद समरूप है। अन्तर्मन के आनंद का मार्ग मौन का है अन्तर्मन का आनंद मे भक्त का दिल मे एक ही भाव है परमात्मा सबमें है।भक्त आत्म तत्व का चिन्तन करते हुए निश्चल आनंद के मार्ग पर आ जाता है। निश्चल आनंद के लिए भक्त नजर अन्दर टिक जाती है भक्त भगवान को मन्दिर में मुर्ति में ढूँढ रहा था भक्त दिवारों से पुछता है मेरे भगवान नाथ कंहा अ दिवार तु मुझे मेरे अराध्य श्री हरी की कुछ खबर सुना ये दिल ये नैन तङफते है कोई मेरे प्रभु का पता नहीं बताता हे राम तुम मुझे छोड़कर कहां चले गए।

भक्त के हृदय को चैन नहीं मिलता है वह भगवान का चिन्तन मन्न करता है जय श्री राम अनीता गर्ग

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