मैं कई बार अपने मन से बात करते हुए कहती हूं कि अ मन देख तु चाहे कितना ही इधर उधर डोल तेरी सच्ची शान्ति तु प्रभु प्रेम में खोकर ही है। फिर मै मन से कहती देख अब मै आंख बन्द कर लेती हूं। तब देख तुझे कुछ दिखाई नहीं देता है ।ये अलमारी में रखा समान धन और दोलत कुछ दिखाई दिया नहीं दिया ये सब समान बाजार में हम गए तब बाजार का समान हमारा नहीं है। वैसे ही इस समान से गहने और जेवरात खाने पीने में अ मन तु न सोच। अ मन तु परम पिता परमात्मा का चिन्तन कर मृत्यु से पहले जीतेजी तु परमात्मा का बन जा हर सांस से भगवान श्री हरि को ध्याले ।फिर मै बैठकर सोचती देख तेरे अन्दर जब तक सांस चल रहा है। तभी तक शरीर की महत्ता है। प्राणी की सांस निकल जाती है जिस शरीर को मेरा मेरा कहते हैं। वह शरीर तो वही पङा है। पर उस में से परम तत्व परमात्मा नहीं रहा। अ मन देख वह आत्मा रूपी परमात्मा का ही सारा खेल है। अ मन तु परमात्मा का बन जा। परमात्मा को आंखों में दिल में बसा कर प्रभु प्राण नाथ प्यारे की लो लगा ले। जय श्री राम
अनीता गर्ग
