नाम विकारों को जलाता है

भगवान नाम जप से हमारे भीतर से धीरे धीरे संसार छुटने लगता है । हमे जब भी समय मिले चिन्तन करते रहना चाहिए।हम चाहें भगवान् शिव का नाम ले राम कहे, कृष्ण कहकर पुकार लगाए। भगवान् के नाम की पुकार उठते-बैठते, खाते हुए, जल पिते हुए, चलते हुए, कार्य करते हुए, सुख में, दुख में प्रभु प्राण नाथ का नाम लेते रहें। दुख आने पर घबराये नहीं दिल में सोचे प्रभु मुझ पर कृपा कर रहे हैं। इसीलिए ये परिस्थिति दे रहे हैं। मै भी रात दिन सांस सांस से मेरे भगवान् को पुकारूगा। परमात्मा के नाम की पुकार हमारे विकारों की जङ को जङ से खत्म कर देती है।हमारे भीतर अनेक जन्मो के विकार होते हैं। भगवान नाम हमारे भीतर के विकारों को जला कर एक  शुद्ध हृदय बनाता है। आज ज्ञान बहुत है मन का बहलाव भी है भगवान इमेज का विषय नहीं है। मन बहलाव मे भक्ति नहीं पनपती है। राष्ट्र कल्याण भक्ति में है। नाम जप माला लेकर करे माला नहीं ले सकते हैं मन ही मन करे नाम जप हमारे भीतर आत्मविश्वास को जागृत करता है। आज के समय में बैठ कर नाम जप में अनेक रूकावटे है हम मन ही मन नाम जप करते रहे। हमें भगवान को मन मे हृदय में बिठाना है मनुष्य जीवन में भजन, सिमरन, कीर्तन, नाम जप, भगवान् की प्रार्थना, वन्दना के द्वारा जन्म जन्मानतर से बंधी हुई गांठे खुलने लगती है।भगवान् का वर्षो नाम जप चिन्तन मनन करते हैं । तब भगवान भक्त पर कृपा करके भक्ति मार्ग देते हैं। भक्त के भाग्य का उदय हो जाता है। भक्त भगवान् की शिश झुकाकर वन्दना करता है।भक्ति का उदय ही दरश की तङफ जागृत करता है जितने प्रभु भगवान राम कृष्ण के अहसास होंगे उतने ही भक्त भगवान से पुरण साक्षात्कार के लिए तडफता है रोता है अपने आप को भुल जाता है हर क्षण परमात्मा के नाम की लो लगा लेता है। हर किरया प्रभु भगवान की बन जाती है।

परमात्मा  को हाथ जोड़ कर अन्तर्मन से प्रणाम करता है। नैनो में नीर समा जाता है। वाणी गद गद हो जाती है। भक्त नैन बन्द करके जहाँ कहीं प्रभु प्राण नाथ से बात कर लेता है। भक्त हर क्षण भगवान के भाव मे लीन रहता है। प्रभु प्रेम के लिए वाणी गोण है। शरीर भी गोण है। भक्ति मार्ग में आने पर हर घङी आन्नद है।भक्त आनन्द में लीन होना नहीं चाहता है। भक्त जानता है प्रभु से जब तक साक्षात्कार नहीं होता तब तक आनन्द है ही नहीं । वह प्रभु मिलन मे रूकावट पैदा करता है। आनंद से आगे भक्त आनंद सागर में गहरा गोता लगाता है। उसका चलना चलना नहीं रहता, सोना सोना नहीं रहता भक्त की क्रिया और कर्म दोनों बदल जाते हैं। भक्त का आनंद संसार और परिवार के माध्यम का आनंद नहीं है। भक्त का आनंद अन्तर्हृदय में परम प्रभु का आनंद है। भक्त भगवान से प्रार्थना करता है मेरे स्वामी ये आनंद दीन दुखी को प्रदान करदो मै बस निर्लेप भाव से तुम्हारे चरणों में नतमस्तक रहना चाहता हूं मैं बार अपने स्वामी भगवान् नाथ के चरणों में अन्तर्मन से प्रणाम करता रहूं ।भक्त बहता हुआ झरना है।  भक्त की भक्ति से अनेकों जीव तर जाते हैं। भक्त का भगवान हर चीज में समाया है।  मै  परमात्मा बोलती हूं तब मेरे दिल में आन्नद समा जाता है।भगवान का ओझल होना एक क्षण भी नैनो को स्वीकार नहीं होता है जैसे भगवान अनेक लीला कर रहे हो मै खो जाती हूं।  पल पल परम पिता परमात्मा मुझे आन्नद प्रेम शान्ति से तृप्त कर जाते हैं। अब मै कुछ भी नहीं करती मेरे भगवान् आकर सब करते हैं। मेरे भगवान् दिल मे विराजमान हो जाते हैं। भगवान के ध्यान में खोई हुई जब मै रोटी बना रही होती तब ऐसे लगता भगवान खङे है भगवान के दिल में आने पर अन्दर बाहर भगवान् ही है।
अनीता गर्ग

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