1-निर्माल्य संस्कृत शब्द है। देवता को चढ़ाये गये, देवता को धारण कराये गये पुष्प, पुष्पमाला,नैवेद्य इत्यादि को देवता के विसर्जन, पूजा समाप्ति के उपरान्त उतारे जाने पर वे निर्माल्य कहलाते हैं
एवं मनुष्यों, देवता के गणों एवं देवपूजकों एवं भक्तों के द्वारा ग्रहण करने योग्य होते हैं। जगन्नाथ स्वामी को पूजा, अर्चना के बाद उनकी विदाई या प्रस्थान के बाद उसी क्षण उन्हें अर्पित नैवेद्य आदि द्रव्य निर्माल्य कहलाता है।
तंत्रसार का निर्देश है-कि निर्माल्य(पुष्पादि के अंश को) सिर पर धारण करना चाहिए।
चन्दन को सर्वांग में( भस्म को इसीलिए साधु,सन्यासी पूरे देह में लगाते हैं)।नैवेद्य उस देवता के भक्त को अर्पित करके(यदि वे उपलब्ध हों) तो पुजारी को ग्रहण करना चाहिए, इसीलिए प्रसाद वितरण की परम्परा है।
शेष निर्माल्य जो ग्राह्य नहीं हो उसे जल में(नदी, तालाब इत्यादि),वृक्ष की जड़ में फेकना चाहिए ऐसा कालिकापुराण के अध्याय 55 में उल्लेख है ।
गृह स्थित देवताओं के चढ़ाये गये निर्माल्य, नैवेद्य को छोड़कर दूसरे दिन प्रातः काल उतारने का विधान है।जो प्रातःउठकर प्रतिदिन भगवान् के निर्माल्य को हटाता है, उसे दुःख, दरिद्रता,अकालमृत्यु और कोई रोग नहीं होता।
शिव पर अर्पित प्रसाद चण्डेश्वर का अंश माना जाता है।भगवान् शिव के मुख से चण्डेश्वर नाम का गण प्रकट हुआ है जो भूत-प्रेतों का प्रधान है।
2-शिव निर्माल्य पर गलती से भी पैर लग जाये या उसका अपमान किसी से हो जाये तो उसकी समस्त सिद्धि शक्ति तप पुण्य उसी समय पूर्ण नष्ट हो जाते हैं। उसे कष्टों का सामना करना पड़ता है और प्रायश्चित करना पड़ता है।
ज्योतिर्लिंगों के,पारद से बने शिवलिंग ,नर्मदेश्वर शिवलिंग,शालिग्राम के प्रसाद ग्रहण करने का विधान है।वैदिक काल से कहा और माना जाता हैं कि जहां नर्मदेश्वर का वास होता है, वहां काल और यम असमय प्रवेश नहीं करते हैं।
निर्माल्य हटाने का मंत्र;-
वैष्णवों के निर्माल्य हटाने का मंत्र… ऊँ विश्वकसेनाय नमः।
शाक्त या भगवती के उपासक का मंत्र…ऊँ शेषिकायै नमः।
शिव का मंत्र…ऊँ चण्डेश्वराय नमः।
सूर्य का मंत्र…ऊँ तेजश्चण्डाय नमः।
गणेश जी का मंत्र…ऊँ उच्छिष्ट चाण्डालिन्यै नमः।
कालिकादि देवताओं का मंत्र…ऊँ उच्छिष्टचाण्डालिन्यै नमः।
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