भगवान सबमें समाया हुआ है। भगवान को भजते हुए हम परमात्मा का प्रेम परमात्मा के आनंद रस से झुमते हैं। हमारे अन्दर से संसारिक इच्छाएं तभी शान्त हो सकती है जब हम भगवान को भजते रहेगे। तभी हम सहनशील बन सकते हैं गृहस्थ धर्म में मोन बहुत आवश्यक है। भगवान् को भजते हुए हमारे विचार पवित्र हो सकते हैं।विचार पवित्र से तात्पर्य है हम कोई भी कार्य करते हैं। कार्य को समर्पित भाव से करते हैं। समर्पित भाव में व्यक्ति विशेष के लिए क्या उचित है। यह विचार रहता है। भोजन पकाना और भोजन बनाने में रात दिन का अन्तर है वैसे ही परमात्मा है और परमात्मा को भजना परमात्मा को निहारना परमात्मा से बात करना परमात्मा को नमन और वन्दन करने में है।भक्ति मार्ग में एक दिन भक्त कहता है कि बस मैं तुझे भजता रहुं ।भगवान हमें आनंद बहुत प्रदान करते हैं पर आन्नद कभी भी टिकता नहीं तब एक दिन भक्त आनंद से भी आगे का मार्ग पकङता है भक्त जान जाता है भगवान के आंनद रस से बढ़कर भगवान के विरह में हैं। आनन्द में जगत हो सकता है क्योंकि आनन्द की लहर अन्तर्मन से बाहर की और बढती है। भगवान के विरह में भक्त भगवान के चरणो मे नतमस्तक है। विरह में भक्त नहीं है। विरह का पल हर क्षण अन्तर्मन से भगवान श्री हरि को सांस सांस से पुकार रहा है। दर्शन का भाव भी गौण हो जाता है। दर्शन के भाव की जागृति तब हो जब भक्त हो। विरह वेदना में भक्त भगवान की लीला में प्रवेश कर जाता है। कई बार भक्त को अहसास होता है यह मै नहीं हूं यह भगवान श्री नाथ आए हैं नैनो में सावन उमङ पङता है तब शब्द गौण हो जाते हैं। दिल होता तो चीर दिखाती। जय श्री राम
अनीता गर्ग
God is contained in all. While worshiping God, we swing the love of God with the bliss of God. The worldly desires from within can be pacified only when we keep on worshiping God. Only then can we become tolerant, silence is very necessary in the householder’s religion. Our thoughts can become pure by worshiping the Lord. Thoughts pure means whatever action we do. Do the work with dedication. What is appropriate for a particular person in the sense of dedication. This idea remains. There is a difference between night and day in cooking food and preparing food, in the same way there is God and worshiping God, looking at God, talking to God is in praising and bowing to God. One day on the path of devotion, the devotee says that just keep on worshiping you. God gives us a lot of pleasure, but the pleasure never lasts, then one day the devotee takes a path ahead of the bliss, the devotee knows that the pleasure of God is more than the taste of God. There can be a world in bliss because the wave of joy grows outside the inner being. Devotees are bowing down at the feet of God in separation from God. There is no devotee in separation. The moment of separation is calling out to Lord Shri Hari with breath every moment. The sense of vision also becomes secondary. The awakening of the spirit of darshan occurs only when there is a devotee. The devotee enters into the pastimes of the Lord in severe pain. Many times the devotee realizes that it is not me, this Lord Shri Nath has come, when the savanna oozes in Nano, then the words become secondary. If there was a heart, it would show a rip. Long live Rama Anita Garg