परमात्मा का स्वरूप

परब्रह्म परमात्मा को हम सर्वशक्तिमान सर्व गुण समपन अनादि सत्य स्वरूप माने परमात्मा सृष्टि का रचियता पालन हार और संहारक इस सृष्टि से पहले भी परमात्मा था सृष्टि में भी परमात्मा है सृष्टि का अन्त होने पर भी परमात्मा एक रूप हो जाता है परब्रह्म परमात्मा सबकी आत्मा है।परब्रह्म परमात्मा सत्य का भी सत्य है। परमात्मा को हम जैसा बनाएंगे वे हमे वैसे ही दिखेंगे। तब हम परमात्मा में शक्ति की खोज नहीं कर सकते हैं। हिन्दू धर्म की  सुरक्षा के लिए हमें परमात्मा को सर्वश्रेष्ठ सर्वशक्तिमान सर्व धर्म पालक जानना है। हम परमात्मा को जैसा मानते हैं वैसे ही परमात्मा बन जाते हैं।परमात्मा को त्याग की मुर्ति मानते हैं तब हमारे भीतर त्याग प्रकट होगा। हम सर्वशक्तिमान मानते हैं मेरा परमात्मा में अदभुत सिद्धीया है वह भौ के इशारे मात्र से सृष्टि का संहार कर सकते हैं तब कोई सनातन धर्म की ओर आंख उठा कर नहीं देख सकता है। परमात्मा का न आदि है न अन्त है हम भगवान को मन बहलाव का विषय न बनाये। आज हमने भगवान को भोग  मुर्ति मंदिर तक सीमित कर दिया है।भगवान सर्वस्व है।भगवान कृष्ण ने विराट रूप में यही दर्शाया है। मैं आम मनुष्य नहीं हूँ मुझसे ही सब जन्म लेते हैं और मुझी में समा जाते हैं। मेरे शक्ति को जब तक तु नहीं समझेगा तब तक तुझ में मै और मेरा पन रहेगा। जब तु मुझ परमात्मा को समझेगा। तब तुझे ज्ञान होगा तु करता नहीं है। शरीर अक्षण भंगुर है। परमात्मा के समर्पण भाव में आनंद का कोई स्थान नहीं है। त्यागी तपस्वी महात्मा के लिए आनंद का कोई स्थान नहीं है। वे आनंद से ऊपर उठ जाते हैं। आज हम भगवान को ह्दय में खोज करना भुल गए हैं मंदिर  मुर्ति में भगवान को खोजते है। पहले हम दर्शन करने जाते थे तब मंदिर में भगवान के दर्शन नैन बंद करके करते थे नैन बंद करके दर्शन से तात्पर्य यह है कि हम परमात्मा के दर्शन हृदय में करते थे हमें परमात्मा की खोज हृदय में करने के लिए तन मन से परमात्मा का चिन्तन करते हुए विकार जल जाए दर्शन अपने आप प्रेमपूर्वक हो जाएंगे। हृदय में प्रेम जगाने के लिए हमे भीतर की खोज करनी है। भगवान राम भगवान कृष्ण हमारी आत्मा है आत्मा को बाहर कहा खोजोगे ।भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं मै सबकी आत्मा हू। मै अजन्मा हूं। जब जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है धर्म संकट बढता है धर्म की स्थापना के लिए मै रूप धारण करता हूँ। परमात्मा का हम परमात्मा से साक्षात्कार के लिए एकाकार के लिए ध्यान धरे। परमात्मा मन का विषय नहीं है अन्तर आत्मा की पुकार है। आत्मा परमात्मा से साक्षात्कार चाहती है आत्मा परमात्मा का अंश है। परमात्मा परब्रम्ह परमेश्वर है परब्रह्म परमेश्वर  सभी आत्मा के परमात्मा है। यह शरीर परमात्मा का घर नहीं है। अध्यात्म हमारे भीतर है पहले हम टिके हुए थे।  हनुमान चालीसा को पुरण मानते थे आज हम बहुत कुछ पढते चिन्तन नहीं करते जय श्री राम अनीता गर्ग

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *