भगवान का नाम सिमरन करते हुए विनती और स्तुति करते हुए भगवान के भाव बनने लगते हैं भगवान का प्रेम आनंद हमारे अन्तर्मन में समाने लगता है तब बहुत उत्साहित होते हैं तब कहते हैं परमात्मा ह्दय में बैठा है। परमात्मा तो नित्य हैं। प्राणी आता है और चला जाता है। परमात्मा हम नहीं थे तब भी था हम हैं तब भी है और हम नहीं रहेगे तब भी रहेगा। क्योंकि परमात्मा ही सत्य है। परम पिता परमात्मा जब तक अन्दर बैठा है तभी तक प्राणी जीवित हैं। जिस दिन इस शरीर में से वह निकल जाता है। तभी शरीर मृत हो जाता है।
परमात्मा का चित से चिन्तन करते हुए हमारे विचार शान्त हो जाएंगे हम अपने भीतर शान्ति को महसूस करने लगते हैं।हमारा सच्चा साथी तो परम पिता परमात्मा ही है।हम अपने भगवान् के साथ जुड़े हुए महसूस करते हैं। ।हमारे अन्दर आनंद और उल्लास छा जाता है। तब हमारे अन्दर ऎसा भाव जागृत होता हैं कि हम कहते हैं कि परमात्मा ह्दय में बैठा है।सबका सच्चा साथी एक परम पिता परमात्मा ही है ।
अनीता गर्ग
While contemplating on God with our mind, our thoughts will become calm, we start feeling peace within us. Our true companion is the Supreme Father, the Supreme Soul. We feel connected with our God. There is joy and gaiety in us. Then such a feeling arises in us that we say that God is sitting in the heart. Everyone’s true companion is the Supreme Father, the Supreme Soul. Anita Garg