एक समय था जब लोग आपस में मिलते थे तो ब्रह्म ज्ञान की चर्चा होती थी , स्व कल्याण पर चर्चा होती थी , आत्मिक विकास किसने कितना किया इस पर चर्चा होती थी , शास्त्रों के गूढ़ रहस्यों पर चर्चा होती थी , साधना , भक्ति , योग , ज्ञान ,वैराग्य पर चर्चायें होती थी ।
कौन किस सिद्धि या साधना के स्तर पर पहुँचा इस पर चर्चा होती थी ।
लेकिन आज चार लोग इकट्ठे होंगे तो बस यही चर्चा होती है कि किसने कितने फ्लैट लिए , किसने कितनी ज़मीन लिखवाई , व्यापार नौकरी में किसकी बढोत्तरी और घटोत्तरी हुई , नया बिज़नेस कैसे करना है , पैसा कैसे कमाना है , लेकिन मजाल क्या कोई आत्म विकास को लेकर या अध्यात्म को लेकर कोई कुछ एक शब्द भी चर्चा करता हो ।
ब्रह्मानंदियों को भी अप्राप्य है ।
देखो देखो यह मेरा पोता है कैसे चल रहा है । मानो पृथ्वी पर वह प्रथम जीव है जो चलता हो ।
हाय रे यह माया । कितनी बलवती है ।
कितनी बलवती है माया । पहले अपना बच्चा , फिर बच्चे का बच्चा फिर उसका बच्चा । लेकिन हाय यह तृष्णा,भूख नहीं जाती ।
इनको अपने स्वकल्याण की चिंता क्यों नहीं है, यह घोर आश्चर्य का विषय है ।
लेकिन यह क्यों नहीं समझते कि जिसको साथ लेकर जा सकते हैं , वह इन्होंने कभी इकट्ठा ही नहीं किया ।
क्या कोई ग़लती से एक भी भगवद विषयक चर्चा या शब्द निकाल दे ।
लोगों से मिलिये सब यही पूछेंगे कि और परिवार कैसा है , स्वास्थ्य कैसा है , बीवी बच्चे कैसे हैं ,नौकरी कैसी है , कपड़ा कैसा है , मतलब आप के 50 वर्ष पहले मिले किसी व्यक्ति तक की बात पूछ लेंगे लेकिन यह कभी नहीं पूछेंगे कि
आत्मा का विकास कैसा चल रहा है ?
मन पर कितना नियंत्रण हुआ ?
इंद्रियों पर कितने प्रतिशत विजय पाई ?
स्वाध्याय कैसा चल रहा है ?
अध्यात्म के कौन से स्तर पर पहुँचे ?
क्या अनुभव हो रहा है ?
भजन कितना चल रहा है ?
साधना कहाँ तक पहुँची ?
और जब आप स्वयं ही किसी से पूछ लेंगे कि और भगवान से कितना प्रतिशत प्रेम बढ़ा या भजन कैसा चल रहा है ??
भगवान को भजने के लिए समय कहा है मतलब आपके पास सबके लिए समय है , बस एक भगवान फालतू है जिसके लिए किसी के पास समय नहीं है ।
लेकिन बस एक भगवान का क्षेत्र ऐसा है जिसके लिए किसी के पास समय नहीं है।
आप स्वयं सोचिए कि 24 घण्टे में से हम कितना समय भगवान को सही सही अर्थों में देते हैं । अरे भगवान को तुम्हारा कोई समय वमय नहीं चाहिए बल्कि यह तो तुम्हारे स्व विकास के लिए समय है जो तुम बदकचरा करने में लगाते हो ।
किसी को आत्मकल्याण की कोई चिंता नहीं । लोग बस भागे जा रहे हैं , भागे जा रहे हैं भागे ही जा रहे हैं ।
समय का अभाव हो जाता है ।
बस यही कारण है कि आज मानसिक शांति , मानसिक सुख , प्रसन्नता , peacefull life से सबका जीवन अभावग्रस्त है ।
जब तुम उस सुख के लिए समय नहीं दे पा रहे हो तो वह सुख तुम्हे कैसे समय देगा भला ।
लेकिन वह लोग दुर्लभ हैं और सौभाग्यशाली हैं जिनको इस वासनात्मक और झूठे प्रपंची संसार में भी कुछ भगवद चिंतन , स्वकल्याण निमित्त कुछ तत्व दर्शन सुनने , समझने , देखने और अनुभव करने का मिल रहा है ।
वह अपने भाग्य पर बलिहार जायें कि इस विषय वासना रूपी दलदल में उन्हें कुछ समय कमल रूपी भगवद विषयक रस का पान करने को मिल रहा है ।
इसीलिए भज गोविंदं भज गोविंदं गोविंदं भज मूढ़मते ।
हे नाथ ! हे मेरे नाथ! मैं आपको भूलूँ नहीं !