वासुदेव सरवम भागवत गीता में आता है वासुदेव सरवम हम अध्यात्म की बात करते हैं तब भी वासुदेव सर्वम कहा जाता है हमारे तो वासुदेव सर्वम है वासुदेव सर्वम पर नजर डालते हैं। हमारी आत्मा ही वासुदेव सरवम है। भगवान कृष्ण हमारी आत्मा है। हम समझते हैं भगवान कृष्ण मन्दिर और मुर्ति में मिल जाएंगे। भगवान कृष्ण यदि मन्दिर मुर्ति से मिलते तब किसी पुजारी को मन्दिर में विग्रह के सामने खड़े हो कर pic खिंचावने की आवश्यकता न रहती। मै कई बार सोचती पुजारी तो मन्दिर में भगवान के पास रहते हैं। पुजारी को पिक की क्या आवश्यकता है। उन के पास भगवान हैं। ऐसे ही जैसे पुजारी मन्दिर में होते हुए भी पुरण भगवान मे समर्पित नही है ऐसे ही हम भी वासुदेव सर्वम कहते हैं वासुदेव सर्वम का मार्ग तय नहीं करते हैं। वासुदेव सरवम हमारा लक्ष्य हो। हमे वासुदेव की खोज हमारे भीतर करनी चाहिए। वासुदेव हमारे भीतर कैसे समाया हुआ है हमे चिन्तन करना है। हम जब तक भीतर से चिन्तन नहीं करते हैं तब तक वासुदेव सरवम हमारा हो नही सकता है। साधक दिन रात सोचता है मेरा जन्म क्यों हुआ है मेरे जीवन का कुछ तो लक्ष्य रहा होगा क्या मै खाने पीने सोने के लिए आया हूं। यह तो पशु वृत्ति है।
वासुदेव कृष्ण राम हमारी आत्मा है। भगवान राम भगवान कृष्ण सांस से नाम जप करते हुए हमारे भीतर अध्यात्म ज्ञान की जागृति होगी। जब तक भगवान की भक्ति भाव सेवा तन मन से नहीं करेगे तब तक वासुदेव सरवम को नहीं जान सकते हैं। आज नाम जप करना कठिन लगता है बाहरी ज्ञान बोलता है बाहरी ज्ञान अन्य को ठोकर नहीं मारता है। बाहरी ज्ञान स्वयं के ऊपर ठोकर मारता है।
भगवान राम भगवान कृष्ण को हृदय में बिठा कर भगवान की भाव सेवा करता है। वासुदेव सरवम नाम जप से ही सम्भव है। नाम जप करते हुए हम कभी नहीं कहते वासुदेव सरवम नाम जप में समर्पण भाव है जंहा समर्पण है वंहा ज्ञान नहीं बोलता है। वासुदेव सरवम तभी है जब परमात्मा का नाम जप चिन्तन कीर्तन योग पाठ अध्ययन सबकुछ करेंगे। ह्दय में भगवान से मिलन की तंरगे उठने लगेगी। परमात्मा हमारी आत्मा है आत्मा परमात्मा का स्वरूप है। वासुदेव को समझना अपने आप को समझना है। मै कोन हू। आत्मा अजर अमर है। मृत्यु शरीर की है। चतन्य ही सर्वम है। चतन्य का चिन्तन करते करते चैतन्य मे एक रूप हो जाना ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य है। एक दिन साधक को ऐसा महसूस होने लगे मै परमात्मा से ओतप्रोत हू भीतर और बाहर परमात्मा साकार और निराकार रूप में होते हुए मुझे सब मे परमात्मा का अहसास होने लगता है मै मर गया है मै की मृत्यु पर सब कुछ परम तत्व परमात्मा है मेरा लक्ष्य परमात्मा का चिन्तन है। जय श्री राम अनीता गर्ग
वासुदेव सर्वम

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