हम प्रतिदिन मन्दिर जाते और कहते हम मन्दिर में भगवान के दर्शन करने जाते हैं। हम भगवान की आरती करते कीर्तन करते और स्तुति के माध्यम से भगवान को रिझाने की कोशिश करते हैं फिर भी भगवान पर विस्वास नहीं करते हैं। एक दिन कहते हैं हे राम तु मेरा भगवान हैं। हे कृष्ण तु मेरा नैया पार करदे ।हे माँ मेरे भण्डार भरे रखना। हनुमान जी की तरह से राम राम नहीं रटते हैं। इन सबको भगवान कहते फिर दुसरे दिन दुसरे देवता के लिए धुप दीप सजाते आरती करते और कहते अमुक देवता तु मेरी रक्षा करना फिर तीसरे दिन अन्य देवी देवता की पूजा करते हैं। क्या हमने किसी एक रूप को अपने दिल में धारण कर वन्दना की यदि हमने छ महीने एक भगवान से उठते-बैठते हुए सुबह शाम प्रार्थना की होती तब भक्ति हमारे दिल में हिलोरें लेती हम कहते आज मै अकेला नहीं हूँ। मेरा भगवान मेरे अंदर बैठा है ।मुझे खुली और बन्द आंखों में मेरे स्वामी भगवान् नाथ का प्रेम महसुस हो रहा है मुझमें रोमान्च छा गया है। अब मै भगवान की हर क्षण स्तुति कर रही हूं । मेरा कोई कार्य अब मेरा नही रहा मेरा कार्य मेरे प्रभु स्वामी भगवान नाथ का बन गया है। मै हर क्षण मेरे भगवान् श्री हरि मे खो जाना चाहती हूं। ये तन तन नहीं रहा ये मन मन नहीं रहा इस कोठरी में प्रभु प्राण नाथ का निवास हो गया है। मेरे स्वामी भगवान मे सभी देवी देवता का निवास है जब भगवान हमारे बन जाएगे तब हमारे आंखों में भगवान समाए हुए होते हैं तब सबकुछ परमात्मा है। परमात्मा की बनने के बाद अब मेरा सुख मेरा नही रहा और मेरा दुख भी मेरा नही रहा है अब इन सब की चिंता करना भगवान का काम है मेरा काम मेरे स्वामी भगवान् नाथ मे दृढ़ विश्वास करना है कि प्रभु प्राण नाथ हर क्षण मेरी सुरक्षा कर रहे है। अब मै भगवान की साधना नहीं कर रही मेरे मालिक का कार्य है भक्ति कराना।
