भगवान् से मानसिक
रमण 2

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भगवान आनंदमय उनकी मधुर वाणी मैं सुन रहा हूँ, वे बोल रहे हैं भगवान् के साथ एकान्तवास है वे मुझे देख रहे हैं, मैं उन्हें देख रहा हूँ जैसे मीराबाई भगवान् को कमरे में देखा करती । इसी प्रकार भगवान् के शरीर को देख रहा हूँ नेत्र से नेत्र मिला रहा हूँ। उससे उनके द्वारा एक अलौकिक शक्ति मेरे में प्रवेश कर रही है । उनके सारे गुण प्रवेश कर रहे हैं। नेत्रों के द्वारा दर्शन हो रहा है। सारे अंगों के दर्शन हो रहे हैं। यह दर्शनों से रमण हुआ। दर्शन, श्रवण, एकान्तवास, चौथा स्पर्श – भगवान् के चरणों को छूने से प्रेम की, आनन्द की लहरें उठने लग जायँ। भगवान का प्रेम शब्दों से परे है प्रेम को दिल मे उतारा जाता है जय श्री राम



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