भक्त भगवान से इतनी गहराई से जुड़ जाता है कि उसे हर किरया को करते हुए ऎसा महसुस होने लगता है कि हर व्यवहार में मेरे भगवान के साथ हो रहा है अन्तर्मन से प्रार्थना चलती रहती है
इस भाव में हमें यह समझना हैं कि हम भगवान को भजते हुए तन मन से दिल से भगवान के बन जाए। भगवान हमे बार बार याद आने लगे जैसे घर के सदस्य को याद करते हैं। उपासक भगवान को अपने घर का सदस्य मानकर भगवान को अपना बना लेता हैं। घर के सदस्य के साथ हम ऊपरी तौर पर बना कर कोई व्यवहार नहीं करते हैं भगवान के साथ हम हर समय जुड़े हुए हैं। भगवान से भक्त अन्तर्मन से इतना गहरा जुड़ जाता है। कि उसके हर अंग से नाम ध्वनि अपने आप निकलने लगती है। वह भगवान को अन्तर्मन से भजता है, तब भगवान भक्त के दिल को प्रेम, श्रद्धा और भक्ति से तृप्त करते हैं। जन्म जन्मांतर की वासनाएं मिट जाती है उसे भगवान को माला लेकर भजना नहीं पङता है। क्या घर के सदस्य को याद करते हैं तब माला की आवश्यकता होती है नही वे हमारे मन में बैठें होते हैं हमे भगवान को दिल में बिठाना है। भक्त कहता है कि वास्तव में ये काया रूपी झोपड़ी भगवान की है इस झोपड़ी में आत्मा रूपी दिया भगवान ने उजागर किया है। इस आत्मा दिये की रक्षा भगवान श्री हरि वैसे ही करते हैं। जैसे एक नई ब्याही हुई कन्या का दिल जैसे क्षण क्षण में अपने पति को देखकर और याद करके खुश हो जाता है और एक छोटे शिशु की मां के दिल में हर कार्य करते हुए बच्चा मां के पास भावनात्मक रूप से होता है वैसे ही हम कुछ भी करे भगवान को हम अपना मान लेते हैं तब भगवान हमारे साथ हर घङी हर पल है। हर किरया कर्म में भगवान है। भक्त अपने हर भाव में भगवान को खोजता है। एक मां और कन्या के दिल का भाव तो कुछ समय के बाद परिवर्तित हो जाता है पर उपासक के दिल में नित नये भाव बनते रहते हैं वह भगवान से हर क्षण जुड़ा रहता है भोजन कर रहा है भगवान से वार्तालाप हो रही भगवान को भज रहा है दिल में आनन्द छलक रहा है नाम अमृत रस का रसपान विरले ही कर पाते हैं।
ये भगवान की सेवा भगवान ही कर रहे हैं। ऐसे ये झोपड़ी भगवान की बन जाती है जंहा सुख दुख दोनों में आनन्द होता है प्रभु प्राण नाथ को भजने में आनन्द हीआंनद है जब कभी भक्त भगवान को नहीं भज पाता है। तब वह अन्तर्मन से भगवान को पुकारता है उस समय भक्त भगवान का चिन्तन करते हुए भगवान के भाव में गहरी डुबकी लगाता है। उपासक को दुख मजबूत बनाने का और भगवान का बनने का सर्वश्रेष्ट साधन है। भक्त को दुख कभी तोड़ नहीं सकता है दुख अन्तर्मन का विषय है आनंद अन्तर्मन का मार्ग है जय श्री राम