निर्गुण निराकार भगवान् भक्त की भक्ति से रिझ कर शरीर धारण करते हैं। भक्त भगवान् नाथ मे इतना डुब जाता है कि वह भगवान को रूप के बैगर भी निहार लेता है। भगवान् अजन्मा अजर अमर है। भगवान् का न रूप है न अकार हैं। भगवान आस्था और विश्वास में छिपे हुए हैं। जब तक हम अपने हृदय में विस्वास नहीं बनाते ये मेरे मालिक है। ये ही स्वामी भगवान् नाथ हरि और मुरारी है। तभी हमे मन्दिर और मुर्ति में भगवान् दिखेगे। ।जय श्री राम अनीता गर्ग
