हर साल गणपती की स्थापना करते हैं, साधारण भाषा में गणपति को बैठाते हैं। लेकिन क्यों ? किसी को मालूम है क्या ? हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार, महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना की है। लेकिन लिखना उनके वश का नहीं था। अतः उन्होंने श्री गणेश जी की आराधना की और गणपति जी से महाभारत लिखने की प्रार्थना की। गणपती जी ने सहमति दी और दिन-रात लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ और इस कारण गणेश जी को थकान तो होनी ही थी, लेकिन उन्हें पानी पीना भी वर्जित था।
अतः गणपती जी के शरीर का तापमान बढ़े नहीं, इसलिए वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप किया और भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की। महाभारत का लेखन कार्य 10 दिनों तक चला। अनंत चतुर्दशी को लेखन कार्य संपन्न हुआ।
वेदव्यास ने देखा कि, गणपती का शारीरिक तापमान फिर भी बहुत बढ़ा हुआ है और उनके शरीर पर लेप की गई मिट्टी सूखकर झड़ रही है, तो वेदव्यास ने उन्हें पानी में डाल दिया। इन दस दिनों में वेदव्यास ने गणेश जी को खाने के लिए विभिन्न पदार्थ दिए। तभी से गणपती बैठाने की प्रथा चल पड़ी। इन दस दिनों में इसीलिए गणेश जी को पसंद विभिन्न भोजन अर्पित किए जाते है
Every year, we establish Ganpati, make Ganpati sit in simple language. but why ? Anyone know what? According to our religious texts, Maharishi Veda Vyasa has composed the Mahabharata. But writing was not under his control. So he worshiped Shri Ganesh ji and requested Ganapati ji to write Mahabharata. Ganpati ji gave his consent and the writing work started day and night and due to this Ganesh ji had to be tired, but he was also forbidden to drink water.
Therefore, the body temperature of Ganapati ji did not increase, so Ved Vyas applied clay on her body and worshiped Ganesha on Bhadrapada Shukla Chaturthi. The writing work of Mahabharata lasted for 10 days. The writing work was completed on Anant Chaturdashi.
Ved Vyas saw that Ganapati’s body temperature was still very high and the soil coated on her body was drying up and falling off, so Ved Vyas threw her into the water. During these ten days, Ved Vyas gave various things to Ganesha to eat. Since then the practice of sitting Ganpati started. In these ten days, different food is offered to Lord Ganesha.