एक बार आश्रम में एक नया शिष्य आया, आश्रम के नियमानुसार उसे भी प्रतिदिन संध्या – उपासना करनी थी ! ध्यान संध्या का अभिन्न अंग है, लेकिन नये शिष्य का ध्यान बिलकुल नहीं लगता था ! कुछ दिन तो वह ऐसे ही आँखें बन्द कर के बैठा रहा लेकिन अंततः एक दिन उठकर अपने गुरुदेव के पास गया और बोला – गुरुदेव ! ये संध्या में ध्यान की क्या आवश्यकता है…….?
गुरुदेव बोले – वत्स ! “भगवन नाम सिमरन” और ध्यान मन को साधने के लिए अनिवार्य है…….!
शिष्य बोला – किन्तु गुरुदेव ! क्या मन को साधना आवश्यक है….? मेरा मन तो ध्यान में बिलकुल नहीं लगता……….!
गुरुदेव बोले – मन को साधना इस लिए आवश्यक है क्योंकि मन चंचल है ! चञ्चल मन से किसी भी कार्य को सिद्ध नहीं किया जा सकता, इसलिए मन की चंचलता को नियन्त्रण करना अति आवश्यक है……!
शिष्य बोला – किन्तु गुरुदेव ! मन चञ्चल क्यों है…? शिष्य का प्रश्न सहज था, किन्तु उसका उत्तर उतना सरल नहीं था, वास्तव में इस एक ही प्रश्न में सम्पूर्ण योग का सार छुपा हुआ है…….!
गुरुदेव बोले – एक बात बताओ ! जिस मनुष्य के पास रहने के का कोई ठिकाना न हो, वह क्या करेंगा…..?
शिष्य बोला – गुरुदेव ! दर-दर भटकता फिरेगा, जब तक कि उसे रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं मिल जाता………!
गुरुदेव बोले – बस यही कारण है कि मन चञ्चल है ! मन चंचल इसीलिए है, क्योंकि उसके पास ठहरने का कोई स्थाई ठिकाना नहीं है ! कोई ऐसा स्थान नहीं, जहाँ उसे असीम और अनन्त आनन्द की अनुभूति हो सके, जहाँ पहुँच कर उसे कहीं और पहुँचने की आवश्यकता न हो, ऐसा स्थान केवल एक ही है और वह है – परम आनन्द……..!
इसीलिए उस को “भगवन नाम सिमरन” और ध्यान के साधन द्वारा भगवान में लगा कर रखना चाहिए ताँकि वह कहीं और न भटके……..!
Once a new disciple came to the ashram, according to the rules of the ashram, he also had to do evening worship every day. Meditation is an integral part of the evening, but the new disciple did not seem to be meditating at all! For some days he sat like this with closed eyes, but finally one day he got up and went to his Gurudev and said – Gurudev! What is the need of meditation in this evening?
Gurudev said – Vats! “Bhagwan Naam Simran” and meditation is mandatory to cultivate the mind…….!
The disciple said – But Gurudev! Is it necessary to cultivate the mind….? My mind does not seem to meditate at all…..!
Gurudev said – Sadhna of the mind is necessary because the mind is fickle! No work can be accomplished with a fickle mind, that’s why it is very important to control the fickleness of the mind……!
The disciple said – But Gurudev! Why is the mind fickle…? The disciple’s question was simple, but his answer was not that simple, in fact, in this one question, the essence of the whole yoga is hidden…..!
Gurudev said – Tell me one thing! What will a person who has no place to live do…..?
The disciple said – Gurudev! Will wander from door to door, until he finds a place to live…..!
Gurudev said – This is the only reason that the mind is fickle! The mind is fickle because it has no permanent place to stay. There is no such place, where he can feel infinite and eternal joy, reaching where he does not need to reach anywhere else, there is only one such place and that is – supreme joy…..!
That’s why he should be engaged in God by the means of “Simran the name of God” and meditation so that he does not wander anywhere else…..!