आज के विचार
(गिरी गोवर्धन को मैंने श्रीकृष्ण दर्शन कराया था – हनुमान)
भाग-32
गिरिवरधारी हनुमान, तुम पालक सबके…
(गो. श्रीतुलसीदास)
मैं यात्रा में हूँ… मिथिला में श्रीराम कथा कहने जा रहा हूँ ।
श्री किशोरी जी के प्राकट्य दिवस पर भी मैं इस बार अपनी हाजिरी लगाऊँगा जनकपुर धाम में… श्रीराम कथा के द्वारा… ये मेरा सौभाग्य है ।
यहाँ आने से पहले मैं गोवर्धन परिक्रमा में गया था… साथ में मेरे था मेरा प्रिय मित्र शाश्वत… जी ! शाश्वत ।
विचित्र है शाश्वत – कहता है… सब कुछ चैतन्य है ।
वह जड़ किसी को मानता ही नही है… उसका कहना है कि हर वस्तु का अपना अधिदैव होता है… और ये गिरिराज गोवर्धन तो साक्षात भगवत् रूप है…
फिर वहीं बैठ गया… गिरिराज की तलहटी में…
कविता गाने लगा… अपनी ही लिखी कविता ।
“सोचता हूँ मैं इस सुनसान पहाड़ी पर क्यों बैठा हूँ…
क्या मेरे जीवन में कोई गायेगा नही… कोई गुनगुनायेगा नही !
बसन्त में कोई अबीर उड़ाएगा नही… सावन में क्या कोई मल्हार सुनाएगा नही !
क्या मेरा जीवन ऐसे ही बीत जाएगा… मेरे साथ ! कोई नही !
तभी पहाड़ी का दिल मेरे दिल से ज्यादा तेज़ धड़कनें लगा…
और उस पहाड़ी का स्पष्ट स्वर मुझे सुनाई दिया… मैं तुम्हारे साथ हूँ !
ओह ! स्वभावतः मैंने लज्जा का अनुभव किया… कि मैने पहाड़ी को जड़ समझा था “
कितनी गहरी कविता थी उसकी…गिरिराज गोवर्धन का हृदय धड़कता उसे सुनाई दिया… और ये आश्वासन भी कि मैं तुम्हारे साथ हूँ ।
मुझे बहुत प्रिय लगता है ये शाश्वत… पत्थर भी फेंको तो कहता है… पत्थर को चोट लगेगी… ।
उफ़ कितना सम्वेदनशील है ये शाश्वत… ।
परिक्रमा करते हुए वो कहने लगा… ये गिरिराज पर्वत कृष्ण भक्त हैं… मैंने कहा… पर लोग कहते हैं शाश्वत ! कि ये स्वयं कृष्ण ही हैं… तो कहने लगा… भक्त और भगवान में भेद है क्या ?
फिर वही भक्तमाल का प्रसिद्ध दोहा सुनाने लगा…
भक्त भक्ति भगवन्त गुरु, चतुर नाम वपु एक…
फिर बोला… जैसे दो प्रकार की मुक्ति होती है… एक मुक्ति होती है भक्त की… जो समस्त लोकों को पार करता हुआ… अपने इष्ट के लोक में चला जाता है…
और एक मुक्ति होती है ज्ञानियों की…
देह के समाप्त हो जाने के बाद… वह जीव… जल बनता है… अग्नि बनता है… पहाड़ बनता है…
चैतन्य जड़ पहाड़ बनता है… ? मैंने नाक भौं सिकोड़े…
तो कहने लगा… क्यों बोलते नही हैं तो क्या हुआ ये पर्वत… ये चैतन्य ही हैं… इन्हें भी कष्ट का अनुभव होता है… तुम इन्हें बम लगाकर फोड़ते हो… तो ये भी मना करते हैं… पर हम इनकी भाषा समझते कहाँ हैं ।
ये मरते हैं… जो पहाड़ भुरे-भुरे से हो जाते हैं… वो मरणासन्न हो रहे हैं… और जो चमकदार हैं… वो अभी युवा हैं…
सब कुछ चैतन्य है…
विचित्र है ये शाश्वत… ।
आप पवनपुत्र की आत्मकथा लिख रहे हो ना… तो क्या इन प्रसंगों का उल्लेख नही करोगे ?
किस प्रसंग का ?… मैंने पूछा ।
अरे ! हनुमान जी ही तो लाये थे इस बृजभूमि में इन गिरिराज पर्वत को… आपको पता है ना ?…
मैंने हाँ… में सिर हिलाया… उसे लिखो ना !
मैंने कहा… ये तो मेरे बड़े भाई हनुमान जी ही कहेंगे… तो कहेंगे ।
पर मैंने ये सब सोचा नही है… अभी ।
साधकों ! मैंने शाश्वत से इतना ही कहा था…
6 घण्टे में हमारी परिक्रमा पूरी हो गई थी… मौसम अच्छा था क्यों कि दो दिन पहले ही बारिश हुयी थी ।
आज किम्पुरुष वर्ष से आने में हनुमान जी को बिलम्ब हो गया… क्यों कि श्री रघुनाथ जी के ध्यान में इतने लीन हो गए…
जब साकेत में आये… तो उसी अवध उद्यान में प्रतीक्षारत थे श्री भरत जी… पवनपुत्र अपनी आत्मकथा जो सुना रहे हैं… ।
प्रणाम किया हनुमान जी ने भरत जी को…
पवनपुत्र ! हम आपकी ही प्रतीक्षा कर रहे थे भरत जी ने हनुमान जी को प्रगाढ़ आलिंगन करते हुए कहा ।
आगे का प्रसंग सुनना चाहते हैं भरत जी… सेतु बंध का ।
हनुमान जी ने अपने इष्टदेव का स्मरण किया… और सुनाने लगे ।
भरत भैया ! अब मेरी बारी थी … एक पर्वत मुझे लाना था…
मैं भी “जय श्रीराम” कहते हुए चल पड़ा था ।
दक्षिण में ही पास में… एक द्रोणाचल पर्वत था… बहुत विशाल… उसके दो पर्वत थे… जो उसके ही पुत्र थे…
एक कामदगिरि और एक गोवर्धन ।
भरत भैया ! कामदगिरि तो चित्रकूट में विराजमान हो गए थे… प्रभु श्रीराम की सेवा में… पर एक बचे थे… गोवर्धन ।
ये परम भक्त थे… परमभागवत…
मैंने बहुत कोशिश की… उसे उखाड़ने की… पर ये गोवर्धन उठा ही नही… हिला तक नही ।
भरत भैया ! मैं बचपन से ही जिद्दी स्वभाव का हूँ… मुझे कोई काम अधूरा छोड़ना प्रिय नही है… मैंने गोवर्धन से ही पूछा… आपको मेरे साथ चलना ही पड़ेगा… चलिए !
गोवर्धन पर्वत ने कहा…
मैं यहाँ भगवत्स्मरण करते हुए सुख पूर्वक बैठा हूँ… हे पवनपुत्र ! अगर आप मुझे भगवत्संग प्रदान कर सकें तभी मैं आपके साथ चलूँगा… ।
हनुमान जी आनन्दित हो गए… हे परमभागवत गिरिराज ! आपको मैं वचन देता हूँ कि आपको भगवत्संग प्राप्त होगा… अब तो चलिए !
गिरिराज के नेत्रों से आनन्द के अश्रु बहने लगे थे…
भरत भैया ! मैंने उठा लिया था गिरिराज गोवर्धन को…
और चल पड़ा… “जय श्री राम” के उदघोष के साथ ।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार 6 दिन लगे हैं सेतु बंध में…
पर आनन्द रामायण के अनुसार 3 दिन लगे ।
इसको कल्प भेद माना जाए…।
तैयार हो गया… सेतु… नल नील ने महाराज सुग्रीव को बता दिया कि सेतु तैयार हो गया है… अब जो-जो वानर पर्वत लेकर आ रहे हैं… उन्हें वहीं रोक दिया जाए ।
सुग्रीव ने ये सूचना भिजवाई… जो-जो वानर पर्वत ला रहे हैं… अब आवश्यकता नही है… इसलिये जहाँ-जहाँ तक आ गये हैं… वहीं पर्वतों को ससम्मान रख दें… और यहाँ पर आ जाये… शीघ्र ।
सबने ये सूचना सुनी…।
भरत भैया ! मैं तो गिरिराज गोवर्धन को लेकर आ रहा था… उस समय में बृज मण्डल के ऊपर था… महाराज सुग्रीव की सूचना मुझ तक भी पहुँची थी… मैंने भी सुनी और मेरे साथ गिरिराज गोवर्धन ने भी सुनी ।
दुःखी हो गए गिरिराज !… पवनपुत्र ! आपने मुझे वचन दिया है ।
हाँ… हाँ… मुझे याद है… आप अभी यहीं रुकें… मैं अभी आया ।
मैं वचन को नही तोड़ सकता था… और वह वचन भी मैंने एक परम भक्त को दिया था…।
मैं बृजमण्डल में छोड़कर गिरिराज को… प्रभु श्रीराम के पास गया ।
प्रभु श्रीराम ने मुझे कहा… पवनपुत्र ! सेतु तैयार है… ।
पर प्रभु !… मैं इतना बोलकर सिर झुकाकर चुप हो गया ।
पर क्या पवनपुत्र ! बोलो क्या बात है ।
मैंने कहा… द्रोणाचल पर्वत के पुत्र गिरिराज गोवर्धन को लेकर आया था मैं… और मैंने वचन भी दिया था उन्हें कि आपकी सन्निधि दूँगा… ।
प्रभु मुस्कुराये… वो अभी कहाँ हैं ?
बृज मण्डल में… श्रीधाम वृन्दावन के निकट प्रभु !
आहा !… प्रभु श्रीराम आनन्दित हो गए… श्रीधाम वृन्दावन का नाम सुनते ही…।
उनसे कहो… अभी अगर तुम आते… तो मात्र मेरे चरण का स्पर्श ही मिलता… और कितने समय के लिए ! मात्र कुछ क्षण !
क्यों कि सेतु से गुजरा ही तो जाता है ना…
पर उनसे कहो… जहाँ तुम हो… ब्रज मण्डल में… श्रीधाम वृन्दावन के निकट… वहाँ तो मैं प्रकट होने वाला हूँ… श्री कृष्ण के रूप में… और 11 वर्ष तक मैं लीला करूँगा वहीं… गिरिराज गोवर्धन के ऊपर खेलूंगा… गौ चारण करूँगा… इतना ही नही… जब इंद्र कोप करेगा… तब गोर्वधन को मैं सात दिन तक अपनी ऊँगली पर धारण करूँगा ।
पर कब ?… मैंने भी आनन्दित होकर पूछा था…
इस त्रेता युग के बाद द्वापर युग आएगा… और द्वापर युग के अंत में ।
भरत भैया ! मैंने समझ लिया… गोर्वधन के ऊपर प्रभु विशेष कृपा करने वाले हैं… जय हो ।
मैं दौड़ा… और कुछ ही क्षणों में… मैं श्रीधाम वृन्दावन में था… बृज भूमि में ।
गिरिराज गोवर्धन मेरी प्रतीक्षा ही कर रहे थे…
क्या हुआ पवन पुत्र !… क्या मुझे प्रभु की सन्निधि नही प्राप्त होगी ।
अपने हृदय से लगा लिया था मैंने गोवर्धन को… उनकी शिला को मैंने प्रणाम किया था… शालिग्राम के समान पूज्य है आपकी ये शिला… क्यों कि प्रभु ने कहा है… द्वापर युग में… प्रभु श्रीराम… श्रीकृष्ण के रूप में आने वाले हैं… और अभी तो कुछ क्षण के लिए ही आपको प्रभु की सन्निधि मिलती… पर उस समय… 11 वर्षों तक आप कन्हैया के साथ रहेंगे… और सात दिन तक वो आपको धारण भी करेंगे… ।
गिरिराज महाराज आनन्दित हो गए… मानसी गंगा के रूप में उनमें से जल प्रवाहित होने लगा था… ।
मैं भी एक रूप से… यही रहने वाला हूँ… मैं भी प्रभु की इन लीलाओं का साक्षी बनना चाहता हूँ… पूंछरी का लौठा… मैं इन्हीं के रूप में यहाँ रहूंगा… इस बृज में रहूंगा ।
भरत भैया ! मैंने गिरिराज पर्वत से कहा… और एक रूप से वही रह गया ।
मुझे शाश्वत ने बताया था… परिक्रमा करते हुए ।
साधकों ! अगर आप लोगों ने गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा लगाई है… तो गोवर्धन के एक स्थान में… एक मन्दिर पड़ता है… पूंछरी को लौठा…
ये हनुमान जी ही हैं…
शाश्वत ने मुझे बताया था कि… पर्वतों की आयु हजारों वर्षों की होती है… पर कई पर्वत विशेष होते हैं… जिनकी आयु लाखों वर्षों की भी होती है… ।
शाश्वत को मैंने देखा… वो गिरिराज की शिला को… आँखों से लगा रहा था… वो धड़कन सुन रहा था… और उसे सुनाई दे रही थी… गिरिराज गोवर्धन की धड़कन !
क्यों न सुनाई दे… जड़ कुछ है क्या ?… सब चैतन्य ही तो हैं ।
और उसमें भी गिरिराज गोवर्धन तो साक्षात् कृष्ण ही हैं ।
पर मैं तो कहूँगा… धन्य हैं द्रोणाचल पर्वत… जिन्होंने अपने दो पुत्रों को भक्त बनाया… एक को राम भक्त… और एक को कृष्ण भक्त… कामदगिरि… जो चित्रकूट में हैं… वो बड़े पुत्र हैं… और छोटे हैं गिरिराज गोवर्धन… जो कृष्ण के भक्त हुए ।
शेष चर्चा कल…
श्रीराम जय राम जय जय राम…
Harisharan
thoughts of the day
(I had shown Shri Krishna to Giri Govardhan – Hanuman) Part-32
Girivardhari Hanuman, you are the protector of all… (G. Sritulsidas)
I am on a journey… going to tell the story of Shri Ram in Mithila.
This time also on the appearance day of Shri Kishori ji, I will mark my presence at Janakpur Dham… through Shri Ram Katha… It is my good fortune.
Before coming here, I had gone for Govardhan Parikrama… With me was my dear friend Shashwat… Yes! eternal .
Strange is eternal – says… everything is consciousness.
That root does not believe in anyone… He says that every thing has its own Adhidaiva… and this Giriraj Govardhan is a real form of God…
Then sat there… at the foothills of Giriraj…
Started singing poetry… poetry written by myself.
“I wonder why I am sitting on this lonely hill…
Will no one sing in my life… no one will hum!
No one will fly Abir in spring… will no one recite Malhar in monsoon!
Will my life be like this… with me! No one!
Right now the heart of the mountain started beating faster than my heart…
And I heard the clear voice of that hill… I am with you!
Oh ! Naturally I felt ashamed… that I had taken the hill for a root.
What a deep poem it was… He could hear Giriraj Govardhan’s heart beating… and also the assurance that I am with you.
I like this Shashwat very much… even if you throw a stone, he says… the stone will get hurt….
Oops, how sensitive is this eternal….
While circumambulating, he started saying… This Giriraj mountain is a devotee of Krishna… I said… but people say eternal! That he is Krishna himself… So he started saying… Is there a difference between a devotee and God?
Then he started reciting the famous couplet of Bhaktamal.
Bhakt Bhakti Bhagavant Guru, Chatur Naam Vapu Ek.
Then said… as there are two types of liberation… one is the liberation of the devotee… who crosses all the worlds… goes to the world of his beloved…
And there is a liberation of the wise…
After the body is finished… that soul… becomes water… becomes fire… becomes mountain…
A living being becomes a non-living mountain…? I wrinkled my nose…
So he started saying… Why don’t you speak then what happened to this mountain… It is consciousness only… They also feel pain… You blast them with bombs… So they also refuse… But we do not understand their language.
They die… the mountains that turn gray… they are dying… and the ones that shine… they are still young…
Everything is consciousness…
Strange is this eternal….
You are writing the autobiography of Pawanputra… so will you not mention these incidents?
In what context?… I asked.
Hey ! It was Hanuman ji who had brought this Giriraj mountain to this Brijbhoomi… you know right?…
I nodded yes… write it down!
I said… my elder brother Hanuman ji will say this… then he will say.
But I haven’t thought about all this… yet.
Seekers! That’s all I told Shashwat…
Our circumambulation was completed in 6 hours… The weather was good as it had rained two days earlier.
Today Hanuman ji got delayed in coming from Kimpurush year… because he got so engrossed in the meditation of Shri Raghunath ji…
When he came to Saket… Shri Bharat ji was waiting in the same Avadh garden… Pawanputra who is narrating his autobiography….
Hanuman ji bowed down to Bharat ji…
Son of wind! We were waiting for you only, Bharat ji said while hugging Hanuman ji deeply.
Bharat ji wants to hear the further context… of Setu Bandh.
Hanuman ji remembered his presiding deity… and started narrating.
Brother Bharat! Now it was my turn… I had to bring a mountain…
I too started walking saying “Jai Shri Ram”.
Nearby in the south… there was a Dronachal mountain… very huge… he had two mountains… who were his own sons…
One Kamadgiri and one Govardhan.
Brother Bharat! Kamadgiri had settled in Chitrakoot… in the service of Lord Shriram… but one was left… Govardhan.
He was the ultimate devotee… Param Bhagwat…
I tried a lot… to uproot it… but this Govardhan did not rise… did not even move.
Brother Bharat! I am stubborn since childhood… I do not like to leave any work incomplete… I asked Govardhan itself… You will have to go with me… Let’s go!
Govardhan mountain said…
I am sitting here happily reciting Bhagwat… Oh son of Pawan! If you can provide me Bhagavatsang then only I will walk with you….
Hanuman ji became happy… O Param Bhagwat Giriraj! I promise you that you will get Bhagwatsang… Now let’s go!
Tears of joy started flowing from Giriraj’s eyes.
Brother Bharat! I had lifted Giriraj Govardhan…
And started walking… with the announcement of “Jai Shri Ram”.
According to Valmiki Ramayana, it took 6 days to build the bridge…
But according to Anand Ramayana it took 3 days.
This should be considered as the difference of a cycle….
The bridge is ready… Nal Neel told Maharaj Sugriva that the bridge is ready… Now all the monkeys who are bringing the mountain… they should be stopped there.
Sugriva sent this information… whatever the monkeys are bringing the mountains… are no longer needed… so wherever you have come… give respect to the mountains… and come here… soon.
Everyone heard this information….
Brother Bharat! I was bringing Giriraj Govardhan… At that time Brij was above Mandal… Maharaj Sugriva’s information had reached me too… I also listened and Giriraj Govardhan also listened with me.
Giriraj became sad!… Son of wind! You have promised me
Yes… yes… I remember… you just stay here… I just came.
I could not break the promise… and I had given that promise also to a supreme devotee….
I left Giriraj in Brijmandal and went to Lord Shri Ram.
Lord Shriram said to me… Son of wind! The bridge is ready….
But Lord!… After saying this, I bowed my head and became silent.
But what a son of wind! Tell me what’s the matter.
I said… I had brought Giriraj Govardhan, the son of Mount Dronachal… and I also promised him that I will give him your presence….
Prabhu smiled… where is he now?
In Brij Mandal… Lord near Shridham Vrindavan!
Aha!… Lord Shriram became happy… on hearing the name of Shridham Vrindavan….
Tell them… if you had come now… then only the touch of my feet would have been available… and for how long! Just a few moments!
Because it passes through the bridge, doesn’t it?
But tell them… wherever you are… in Braj Mandal… near Sridham Vrindavan… there I am going to appear… in the form of Shri Krishna… and for 11 years I will perform leela there… I will play on Giriraj Govardhan… I will feed cows… Not only this… when Indra gets angry… then I will wear Govardhan on my finger for seven days.
But when?… I too happily asked…
After this Treta Yug, Dwapar Yug will come… and at the end of Dwapar Yug.
Brother Bharat! I understood… GOD has special mercy on Govardhan… Jai ho.
I ran… and in a few moments… I was in Sridham Vrindavan… in Brij Bhoomi.
Giriraj Govardhan was waiting for me.
What happened son of Pawan!… Will I not get the presence of GOD?
I had touched Govardhan with my heart… I had bowed down to his rock… This rock of yours is revered like Shaligram… because the Lord has said… In Dwapar Yuga… Lord Shri Ram… is going to come in the form of Shri Krishna… and Right now you would get the presence of GOD only for a few moments… but at that time… you will stay with Kanhaiya for 11 years… and he will also hold you for seven days….
Giriraj Maharaj rejoiced… Water started flowing from him in the form of Mansi Ganga….
I am also in a form… I am going to stay here… I also want to witness these pastimes of GOD… Returned to Poonchri… I will stay here in this form… I will stay in this Brij.
Brother Bharat! I told Mount Giriraj… and it remained the same in a way.
I was told by Shashwat… while doing parikrama.
Seekers! If you people have circumambulated Giriraj Govardhan… then at one place of Govardhan… a temple is located… returned to Poonchri…
This is Hanuman ji only.
Shashwat had told me that… the age of mountains is of thousands of years… but there are some special mountains… whose age is of millions of years….
I saw Shashwat… he was touching the rock of Giriraj… with his eyes… he was listening to the heartbeat… and he could hear… the heartbeat of Giriraj Govardhan!
Why can’t it be heard… is there anything inert?… all are conscious.
And Giriraj Govardhan in that too is Krishna in person.
But I would say… Blessed is Dronachal Parvat… who made his two sons devotees… one Ram devotee… and one Krishna devotee… Kamadgiri… who is in Chitrakoot… he is the elder son… and the younger one is Giriraj Govardhan… who is Krishna’s devotee. Became a devotee.
Rest of the discussion tomorrow…
Shri Ram Jai Ram Jai Jai Ram…
Harisharan