[42]हनुमान जी की आत्मकथा

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(श्री धाम वृन्दावन के लुटेरिया हनुमान)

मर्कान भोक्षन्…
(श्रीमद्भागवत)

ये मेरा कल दोपहर का स्वप्न था… कल दोपहर में भोजन करके… मैं थोड़ा विश्राम में चला गया था…।

अरे ! मेरे श्रीधाम वृन्दावन के लुटेरिया हनुमान जी ।

मेरे सामने ही प्रकट हो गए थे…

ये हनुमान जी मथुरा की सीमा में विराजमान हैं… और बड़े सिद्ध हैं ।

अब तो मैं पागलबाबा की कृपा से थोड़ा निष्काम होता जा रहा हूँ…
…पर उन दिनों में सकामी था जब छोटा था… कामना का ज्वार बहुत था मन में… छोटी-छोटी बातों के लिये मैं इसी मन्दिर में चला आता था ।

हे हनुमान जी ! मेरी कामना पूरी कर दो !…

और सच कह रहा हूँ मेरी कामना पूरी हो ही जाती थी… आज तक सैकड़ों कामना मैंने की होंगी… क्यों कि इन लुटेरिया हनुमान जी के पास में ही मेरा घर था…।

मुझे हँसी आती है… एक बार घड़ी खो गयी… बच्चा था मैं… और घड़ी खोई थी एक मेले में… रंगनाथ के मेले में…

मन में बड़ा दुःख हुआ… घर वालों से लड़-झगड़ कर ये 30 रूपये की घड़ी खरीदी थी… (मैं गरीबी में पला हुआ हूँ)

अब क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ ? घड़ी खो गयी… बड़े शौक से बांधकर चलता था…।

तो मैं सीधे आ गया था… लुटेरिया हनुमान जी के पास…

रोया… और कहा… आपको भगवान श्रीराम की कसम… मेरी घड़ी दिला दो… (ऐसे कसम देना गलत है… पर मैं बालक था… 8 साल का)

इतना बोलकर चल दिया घर की ओर… आप विश्वास नही करोगे… वही घड़ी… मुझे रास्ते में पड़ी मिल गयी… जबकि उस रास्ते में वो घड़ी गिरी ही नही थी ।

ये सत्य घटना है… यही नही कई ऐसी घटनाएं हैं… छोटी-छोटी… जो मेरे बड़े भाई हनुमान जी ने पूरी की थी ।

साधकों ! आज भी मेरे पास कामना लेकर जो साधक आते हैं… आये हैं उन्हें मैंने इन्हीं लुटेरिया हनुमान जी के पास में भेजा है… और मुझे पता चला कि उनकी भी कामना इन हनुमान जी ने पूरी की ही थी ।

ये मन्दिर कोई बहुत बड़ा नही है… कोई भव्य नही है… पर हनुमान जी जाग्रत हैं… पूर्ण जाग्रत… मैं भी पागल हूँ… हनुमान जी तो जाग्रत होते ही हैं… ।


मैं नेपाल के सबसे बड़े गाँव हरिपूर्वा में राम कथा कहने आया हूँ… कल विश्राम ले चुकी है मेरी कथा… यादवों का गाँव है… बड़े भोले लोग हैं यहाँ के…।

आज मैं जनकपुर जा रहा हूँ… 5 मई से वहाँ भी राम कथा है ।

तो मैं कह रहा था… कि कल दोपहर में मेरे सामने वही लुटेरिया हनुमान जी प्रकट हुए…

मैं उन्हें देखता रहा… उठ गया और उनको प्रणाम किया… स्वप्न में ।

अच्छा ! आप कहोगे इनका नाम लुटेरिया क्यों पड़ा… लुटेरिया हनुमान इन्हें क्यों कहते हैं ?

तो मुझे एक सन्त ने बचपन में बताया था…

कन्हैया लाल… वृन्दावन का माखन दूध दही मथुरा ले जाने नही देते थे…।

और कोई गोपी माखन दूध दही ले जाती भी थी… तो उसे लूट लेते थे… मथुरा जाने के दो मार्ग हैं… एक है छटीकरा का… और एक मार्ग है… ये… जहाँ अक्रूर घाट पड़ता है… तो छटीकरा वाले मार्ग में तो स्वयं कन्हैया लाल खड़े होते थे… और इस अक्रूर वाले मार्ग में… हनुमान जी को बैठा दिया था कन्हैया ने ।

कि हे हनुमान ! कोई भी गोपी माखन लेकर मथुरा में बेचने के लिए जाए तो आप उसे लूट लेना…

हनुमान जी इस मोर्चे को अच्छे से सम्भाले हुए थे ।

ये बात बताते हुए वो सन्त हँसते थे… फिर कहते वो समय तो चला गया… पर आज के समय में… ये हनुमान जी हमारी मानसिक दरिद्रता… हमारे दुर्गुण… हमारे अशुभ प्रारब्ध सब लूट लेते हैं… बस इनके पास आओ… और अपना माथा टेक दो ।

ये बात प्रत्यक्ष है… मेरा अनुभव है… मेरी कुंडली में एक बार शनि की साढ़े साती चल रही थी… पर मैं नित्य हनुमान जी के इस मन्दिर में आता था… और एक हनुमान चालीसा सुना जाता था…

मैं सच कह रहा हूँ… मेरे ऊपर शनि का कोई प्रभाव नही पड़ा…।

हाँ तो मैं कह रहा था कि… वही लुटेरिया हनुमान जी प्रकट हुए ।

और उनकी स्पष्ट आवाज मुझे सुनाई दी थी… तुमने जो मेरे चरित्र को गाया है… मैं उससे बहुत प्रसन्न हूँ… तुमने प्रभु श्रीराम के चरित्र को मेरे माध्यम से कहा है… वो अच्छा है ।

माँगो क्या चाहिए ?

मैंने उनके चरण पकड़ लिए थे…

आपको जो प्रिय है… वही दे दो प्रभु !

उन्होंने मुझे एक विचित्र बात कही… जो स्वप्न में कही वही मैं आपको बता रहा हूँ… मुझे स्वतन्त्र पूजने की आवश्यकता नही है… मुझे मेरे प्रभु श्री रघुनाथ जी के साथ रखकर वन्दन करो… तो मुझे अति प्रसन्नता होती है…

मैंने उनके चरणों में वन्दन करते हुए कहा… क्यों ?

क्यों कि श्री रघुनाथ जी में ही मैंने अपने आप को मिटा दिया है… मुझे उन्हीं के साथ पूजो… भजो… मेरे नाम को अलग से लेने से मुझे प्रसन्नता नही होती… मुझे आनन्द तब आता है… जब कोई मेरे प्रभु श्रीराम का नाम लेता है… मैं स्वयं श्री राम जय राम जय जय राम…

इसी विजय मन्त्र का जाप करता रहता हूँ… तुम इस बात का ध्यान रखो… तुम जो चाह रहे हो… परा भक्ति… वो तुम्हें अवश्य मिलेगी… इतना कहकर वो अंतर्ध्यान हो गए ।

मेरी नींद खुल गयी थी… क्यों कि 3 भी बज गए थे… और राम कथा में जाने का समय भी हो गया था ।

मैं बस यही सोचता रहा… कि ये सब क्या है… क्या कहा मेरे हनुमान जी ने मुझे स्वप्न में ?

फिर मैंने विचार किया… आप भी विचार कीजिये… जिसने अपने आपको श्रीराम में मिटा दिया… उनको अगर हम स्वतन्त्र मानेंगे तो क्या उन्हें प्रसन्नता होगी ?

शायद नही… श्री रघुनाथ जी के साथ ही हम उन्हें मानें… मन्त्र भी जपें तो यही श्री राम जय राम जय जय राम…।

मुझे दो दिन से कई साधकों ने पूछा भी था… कि हनुमान जी का कोई मन्त्र बताइये… पर इसका समाधान स्वयं हनुमान जी ने ही कर दिया… प्रभु की भक्ति करें… उनके स्वामी श्रीराम की भक्ति करें… तो हनुमान जी अपने आप प्रसन्न होंगे…।

साधकों ! हनुमान जी को मानें… नाता जोड़े हनुमान जी से… भाई… बड़े भाई… पिता… और इनसे अपनी समस्या कहें… ये अवश्य पूरी करेंगे… ये पक्की बात है…

आप रोयें इनके सामने… ये आपके आँसू अवश्य पोछेंगे…।

ये जो भी मैंने “पवनपुत्र की आत्मकथा” के रूप में… मैंने हनुमत् चरित्र को गाया है… उनके प्रभु श्री रघुनाथ जी का स्मरण करते हुए… ये सब चरित्र उनको ही समर्पित करता हूँ…।

पवन तनय संकट हरण, मंगल मुरति रूप…

राम लखन सीता सहित हृदय बसहुँ सुर भूप ।

मैं “पवनपुत्र की आत्मकथा” को यही विश्राम देता हूँ… ।

Hari Sharan



(The robber Hanuman of Shri Dham Vrindavan)

Markan Bhokshan. (Srimad Bhagavatam)

This was my dream yesterday afternoon… After having lunch yesterday… I went to rest for a while….

Hey ! Hanuman ji, the robber of my Shridham Vrindavan.

appeared in front of me…

This Hanuman ji is sitting in the limits of Mathura… and is very proven.

Now, by the grace of Pagal Baba, I am becoming a little selfless… … But it was successful in those days when I was young… There was a lot of desire in my mind… I used to come to this temple for small things.

Hey Hanuman ji! Make my wish come true!

And I am telling the truth, my wishes used to be fulfilled… I must have made hundreds of wishes… because my house was near this robber Hanuman ji….

I laugh… Once the watch was lost… I was a child… and the watch was lost in a fair… Ranganath’s fair…

I felt very sad… I had bought this watch for Rs.30 after fighting with my family members… (I grew up in poverty)

What do I do now ? Where do I go ? Lost the watch… Used to tie it with great interest….

So I had come directly… to Luteriya Hanuman ji…

Cried…and said…swear to you Lord Shriram…give me my watch…(It is wrong to swear like this…but I was a child…8 years old)

After saying this, he went towards home… you will not believe… the same watch… I found it lying on the way… whereas that watch had not fallen on that way.

This is a true incident… Not only this, there are many such incidents… small-small… which was accomplished by my elder brother Hanuman ji.

Seekers! Even today, those devotees who come to me with wishes… I have sent them to this same robber Hanuman ji… and I came to know that their wishes were also fulfilled by this Hanuman ji.

This temple is not very big… it is not grand… but Hanuman ji is awake… fully awake… I am also mad… Hanuman ji always wakes up…

I have come to tell Ram Katha in the biggest village of Nepal, Haripurva… My story has taken rest yesterday… It is a village of Yadavs… There are very innocent people here….

Today I am going to Janakpur… From 5th May there is also Ram Katha.

So I was saying… that same robber Hanuman ji appeared in front of me yesterday afternoon…

I kept seeing him… got up and bowed down to him… in the dream.

Good ! You will say why he was named Luteria… Why is he called Luteria Hanuman?

So a saint had told me in my childhood…

Kanhaiya Lal… did not allow Vrindavan’s butter, milk and curd to be taken to Mathura….

And some Gopi used to take butter, milk and curd… then they used to loot it… There are two routes to reach Mathura… one is of Chhatikara… and there is another route… this… where Akrur Ghat falls… So Kanhaiya himself is on the route of Chhatikara. Lal used to stand… and in this Akrur road… Hanuman ji was made to sit by Kanhaiya.

That O Hanuman! If any gopi goes to Mathura with butter to sell it, you loot it…

Hanuman ji was handling this front very well.

Those saints used to laugh while telling this thing… then they would say that time has gone… but in today’s time… this Hanuman ji loots our mental poverty… our bad qualities… our inauspicious destiny… just come near him… and bow your head Two .

This thing is evident… It is my experience… Once in my Kundli, Shani Sade Sati was going on… but I used to come to this temple of Hanuman ji regularly… and used to listen to a Hanuman Chalisa…

I am telling the truth… Shani had no effect on me….

Yes, I was saying that… the same robber Hanuman ji appeared.

And I heard his clear voice… I am very happy with the character you have sung… You have told the character of Lord Shriram through me… That is good.

Ask what do you want?

I held his feet…

Lord, give what is dear to you!

He told me a strange thing… I am telling you what he said in the dream… I do not need to worship independently… Worship me by keeping me with my Lord Shri Raghunath ji… then I feel very happy…

I bowed down at his feet and said… why?

Because I have destroyed myself in Shri Raghunath ji… Worship me with him only… Worship me… I do not feel happy by taking my name separately… I feel happy when someone takes the name of my Lord Shri Ram … I myself Shri Ram Jai Ram Jai Jai Ram…

I keep chanting this Vijay Mantra… You keep this in mind… Whatever you are seeking… Para Bhakti… You will surely get it… Having said this, he disappeared.

I had woken up… because it was 3 o’clock too… and it was time to go to Ram Katha.

I just kept thinking… what is all this… what did my Hanuman ji tell me in my dream?

Then I thought… you also think… the one who destroyed himself in Shri Ram… will he be happy if we consider him as independent?

Maybe not… we should consider him along with Shri Raghunath ji… even if we chant mantras then this is Shri Ram Jai Ram Jai Jai Ram….

Many sadhaks had also asked me for two days… to tell me any mantra of Hanuman ji… but Hanuman ji himself solved it… worship the Lord… worship his Lord Shriram… then Hanuman ji will automatically be happy… .

Seekers! Believe in Hanuman ji… tie up with Hanuman ji… brother… elder brother… father… and tell your problems to him… he will surely fulfill… this is a sure thing…

You cry in front of him… he will surely wipe your tears….

Whatever I have done in the form of “Autobiography of Pawanputra”… I have sung Hanumat Charitra… Remembering his Lord Shri Raghunath ji… I dedicate all these characters to him only….

Pawan Tanay Sankat Haran, Mangal Murti Roop…

Ram Lakhan Sita Sahit Hriday Basahu Sur Bhup.

I give this rest to the “autobiography of the son of wind”….

Hari Sharan

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