हम भगवान्‌के हैं, भगवान् हमारे हैं

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कोई काम करते समय यह सोच लो कि मैं भगवान्‌का हूँ तो यह काम किस ढंगसे करूँ, आपके मनमें स्वतः स्फुरणा हो जायगी । आप सच्चे हृदयसे भगवान्‌को चाहोगे तो भगवान्‌का भजन क्या करें, यह आपके मनमें स्वतः आ जायगा।
 
‘हम भगवान्‌के हैं, भगवान् हमारे हैं’‒यह मामूली बात नहीं है । यह बहुत ऊँचा भजन है । इसके समान कोई साधन नहीं है । ‘हम भगवान्‌के हैं, भगवान् हमारे हैं’‒यह पता लग गया तो अब हमारा दूसरा जन्म क्यों होगा ?
 
सेवा करनेके लिये तो सभी अपने हैं, पर अपने लिये केवल भगवान् अपने हैं । भगवान्‌को आप सगुण-निर्गुण, साकार-निराकार आदि जैसा भी मानो, पर वे अपने हैं ।

!!!…किसी भी व्यक्तिका निरादर नहीं करना चाहिये। निरादर करनेसे वास्तवमें अपना ही निरादर होता है; क्योंकि सब जगत् ईश्वररूप है…!!!

जय श्री कृष्ण

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