जिस दिन कान्हा खडे हुए मैया के सब मनोरथ पूर्ण हुये आज मैया ने गणपति की सवा मनि लगायी है। रात भर बैठ लडडू तैयार किये सुबह कान्हा को ले मन्दिर गयी पूजा करने बैठी और कान्हा को उपदेश देने लगी।
कान्हा! ये जय जय का भोग बनाया है पूजा करने पर ही खाना होगा। सुन कान्हा ने सिर को हिलाया है। ये कह मैया जैसे ही जाने को मुडी इतने मे ही गनेश जी की सूंड उठी उसने एक लडडू उठाया है कान्हा को भोग लगाया है।
कान्हा मूँह चलाने लगे जैसे ही मैया ने मुडकर देखा गुस्से से आग बबूला हुई क्यों रे लाला?
मना करने पर भी क्यों लडडू खाया है इतना सब्र भी ना रख पाया है मैया मैने नही खाया ये तो गनेश जी ने मुझे खिलाया रोते कान्हा बोल उठे।
सुन मैया डपटने लगी वाह रे! अब तक तो ऐसा हुआ नही इतनी उम्र बीत गयी कभी गनेश जी ने मुझको तो कोई ऐसा फ़ल दिया नही अगर सच मे ऐसा हुआ है तो अपने गनेश से कहो एक लडडू मेरे सामने तुम्हे खिलायें। नही तो लाला आज बहुत मै मारूँगी झूठ भी अब बोलने लगा है । अभी से कहाँ से ये लच्छन लिया है।
सुन मैया की बातें कान्हा ने जान लिया मैया सच मे नाराज हुई कन्हैया रोते हुये कहने लगे।
गनेश जी एक लडडू और खिला दो नही तो मैया मुझे मारेगी।
इतना सुनते ही गनेश जी की सूंड ने एक लडडू और उठाया और कान्हा को भोग लगाया।
इतना देख मैया गश खाकर गिर गयी और ये तो कान्हा पर बाजी उल्टी पड गयी।
झट भगवान ने रूप बदल माता को उठाया मूँह पर पानी छिडका होश मे आ मैया कहने लगी ।
आज बडा अचरज देखा लाला गनेश जी ने तुमको लडडू खिलाया है। सुन कान्हा हँस कर कहने लगे मैया मेरी तू बडी भोली है।
तूने जरूर कोई स्वप्न देखा होगा इतना कह कान्हा ने मूँह खोल दिया अब तो वहां कुछ ना पाया।
भोली यशोदा ने जो कान्हा ने कहा उसे ही सच माना नित्य नयी नयी लीलाएं करते हैं। मैया का मन मोहते हैं मैया का प्रेम पाने को ही तो धरती पर अवतरित होते हैं ।।
हरी बोल