श्यामसुंदर श्री कृष्ण गले में वैजन्तीमाला पहनते हैं। क्यों ? यह माला पचरंगी है। पाँच इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने का चिन्ह है यह वैजयन्ती की माला। भक्तों ने कृष्ण के व्यक्तित्व में ‘कर्षक’ के तत्व का गुणगान किया है, ‘कृ’ में अंकुश है जो एक बार हृदय में गढ़ गया तो भक्त का सब कुछ छीन कर अपना बना लेता है। पाँच वर्ण-पुष्प वैजयन्ती माल में शोभा सौंदर्य और माधुर्य की अधिष्ठात्री लक्ष्मी जी का वास है।
भारतीय ग्रन्थों के अनुसार श्री कृष्ण के वक्षस्तल पर सतत वैजयन्ती माला सुशोभित रहती है।शुभ्र श्वेत से लेकर श्यामल तक पाँच रंगों में उपलब्ध इसके मोती जैसे बीज प्राकृतिक रूप से छिदे हुये होते हैं और बिना सुई के ही माला रूप में पिरोये जा सकतें हैं। श्री कृष्ण को विशेष प्रिय वैजयन्ती अपने आध्यात्मिक व भौतिक दोनों स्वरूप में अति विशिष्ट है।
वैजयन्ती पौधे का वैज्ञानिक नाम Croix lacryma-jobi है। संस्कृत में इस पौधे को ‘गवेधुक’ कहा जाता है। अंग्रेजी में इसे Job’s tears कहतें हमें। चीन में चुआंगू और जापानी मे हातोमूगी के नाम से जाना जाता है। भारत में यह पौधा पूजा सामग्री, भोज्य पदार्थ व सौंदर्य बोध के दृष्टिकोण से पूर्णत: उपेक्षित रह। गया है। यह पौधा भारतीय खेतों व मिट्टी में प्रत्येक स्थान पर अपने आप ही उग आता है, किन्तु अज्ञानतावश खरपतवार समझ कर उखाड़ कर फेंक दिया जाता है। चीन जापान कोरिया थाइलैण्ड में यह भोज्य पदार्थों में भी शामिल किया गया है।
वैजयन्ती के बीज प्रारम्भ में धवल और नर्म होते हैं। कच्चे बीजों को आसानी से छीला जा सकता है। पकड़ने के बाद यह कड़े व स्निग्ध हो जाते हैं। प्रारंभ में यह पौधा कुश घास जैसा दृष्टिगत होता है, इस पर मोती आने से पहले इसे सामान्यतः घास से भिन्न समझ कर पहचान पाना अति कठिन होता है।