माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं।[8] नवरात्र के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है।[9] मान्यता है कि इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। इस देवी के दाहिनी तरफ नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का पुष्प है।[10] इनका वाहन सिंह है और यह कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं।[11] नवरात्र में यह अन्तिम देवी हैं। हिमाचल के नन्दापर्वत पर इनका प्रसिद्ध तीर्थ है।
माना जाता है कि इनकी पूजा करने से बाकी देवीयों कि उपासना भी स्वंय हो जाती है।
यह देवी सर्व सिद्धियाँ प्रदान करने वाली देवी हैं। उपासक या भक्त पर इनकी कृपा से कठिन से कठिन कार्य भी आसानी से संभव हो जाते हैं। अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व आठ सिद्धियाँ होती हैं। इसलिए इस देवी की सच्चे मन से विधि विधान से उपासना-आराधना करने से यह सभी सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं।
कहते हैं भगवान शिव ने भी इस देवी की कृपा से यह तमाम सिद्धियाँ प्राप्त की थीं। इस देवी की कृपा से ही शिव जी का आधा शरीर देवी का हुआ था।[12] इसी कारण शिव अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए।
इस देवी के दाहिनी तरफ नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का पुष्प है।[10]
विधि-विधान से नौंवे दिन इस देवी की उपासना करने से सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। इनकी साधना करने से लौकिक और परलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।[13] मां के चरणों में शरणागत होकर हमें निरन्तर नियमनिष्ठ रहकर उपासना करनी चाहिए। इस देवी का स्मरण, ध्यान, पूजन हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हैं और अमृत पद की ओर ले जाते हैं।
नव दुर्गा महत्व
भगवती का नौंवा रूप सिद्धिदात्री है। यह ज्ञान अथवा बोध का प्रतीक है, जिसे जन्म जन्मान्तर की साधना से पाया जा सकता है। इसे प्राप्त कर साधक परम सिद्ध हो जाता है। इसलिए इसे सिद्धिदात्री कहा है।
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ सिद्धिदात्री के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे अपनी कृपा का पात्र बनाओ।
मां सिद्धिदात्री की आरती : जय सिद्धिदात्री तू सिद्धि की दाता
जय सिद्धिदात्री तू सिद्धि की दाता
तू भक्तों की रक्षक तू दासों की माता,
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि
कठिन काम सिद्ध कराती हो तुम
हाथ सेवक के सर धरती हो तुम,
रविवार को तेरा सुमरिन करे जो
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो,
तू सब काज उसके कराती हो पूरे
कभी काम उस के रहे न अधूरे
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया
रखे जिसके सर पैर मैया अपनी छाया,
सर्व सिद्धि दाती वो है भाग्यशाली
जो है तेरे दर का ही अम्बे सवाली
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा
महानंदा मंदिर में है वास तेरा,
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता
वंदना है सवाली तू जिसकी दाता…
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तेरी पूजा में न कोई विधि है
तू जगदंबे दाती तू सर्वसिद्धि है
The name of the ninth power of Maa Durga is Siddhidatri. She is the giver of all kinds of siddhis. [8] She is worshiped on the ninth day of Navratri. [9] It is believed that on this day, a seeker who practices spiritual practice with full devotion and rituals will get all the siddhis. She goes. This goddess has a chakra in the lower hand on the right side, a mace in the upper hand, a conch shell in the lower hand and a lotus flower in the upper hand. [10] Her vehicle is a lion and she is also seated on a lotus flower. [11] She is the last goddess in Navratri. His famous pilgrimage is on Nanda Parvat of Himachal.
It is believed that by worshiping them, the worship of other goddesses also becomes self.
This goddess is the one who bestows all accomplishments. With his grace on the worshiper or devotee, even the most difficult tasks become easily possible. Anima, Mahima, Garima, Laghima, Prapti, Prakamya, Ishitva and Vashitva are the eight siddhis. Therefore, all these siddhis can be attained by worshiping this goddess with a sincere heart and rituals.
It is said that Lord Shiva had also attained all these siddhis by the grace of this goddess. By the grace of this goddess, half of Shiva’s body was that of the goddess. [12] That is why Shiva became famous by the name Ardhanarishvara.
This goddess has a chakra in the lower hand on the right side, a mace in the upper hand, a conch shell in the lower hand and a lotus flower in the upper hand. [10]
By worshiping this goddess on the ninth day, siddhis are attained. By doing her spiritual practice, all kinds of worldly and supernatural desires are fulfilled. [13] By taking refuge in the feet of the mother, we should worship with regular devotion. Remembrance, meditation, worship of this goddess makes us aware of the immateriality of this world and leads us to the state of nectar.
Nav Durga Significance
The ninth form of Bhagwati is Siddhidatri. It is a symbol of knowledge or realization, which can be attained through the practice of birth after birth. By attaining this, the seeker becomes supreme. That is why it is called Siddhidatri.
The goddess who is situated in all beings in the form of Maa Siddhidatri. “Obeisance to her, Obeisance to her, Obeisance to her.
O mother! Ambe, who is everywhere and famous as Mother Siddhidatri, I bow to you again and again. Or I salute you repeatedly. O mother, make me the object of your grace.
Aarti of Mother Siddhidatri: Jai Siddhidatri, you are the giver of Siddhi
Jai Siddhidatri You are the giver of accomplishment You are the protector of the devotees, you are the mother of the slaves. By taking your name, you get accomplishment By your name the mind is purified you do hard work You are the head of the servant of the hand, the earth. Who worships you on Sunday Keep your idol in your mind,
You do all the work for him His work never remained unfinished
your kindness and your love Keep whose head and feet your shadow, He is the bestower of all accomplishments What is your rate? Himachal is the mountain where your abode Your abode is in the Mahananda temple, I hope your mother Vandana is the question whose giver you are… read on webdunia There is no method in your worship You are the world’s bestower