हरि ॐ तत्सत,
इस संसार में जिस जिस ने परमात्मा की खोज की। सबके परमात्मा की खोज के मार्ग अलग अलग थे।
कोई जप में लगा कोई तप में लगा कोई धूनी समाधी लगाता रहा। कोई गोकुल गया कोई काबा गया कोई तीर्थ में,
कोई गुफाओं में जाकर ध्यान तपस्या करने लगा
परमात्मा की प्राप्ति के भले ही मार्ग अलग अलग हो,
अंत में वो परमात्मा का जो ज्ञान है जहां से वो वेद वाणी प्रगट होती है वो सबकी एक ही होती है।
उसमें आज तक कोई भी संत महात्मा ऋषि-मुनि बदलाव न कर सके चाहे वो रैदास,मीरा, तुलसीदास गौतमबुद्ध महावीर स्वामी नानक कबीर या बाल्मिकी, ही क्यो न हो
सबका मत,सबकी वाणी एक ही है वहां पहुंच कर सबके मत एक हो जाते हैं।
कोई भी आज तक उसमें बदलाव न कर सका
जिसने भी उस परमात्मा की खोज की
खोजते-खोजते ऐसा नहीं हुआ।।
उसे कभी रस्ते में,या किसी मार्ग,या मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारो में मिला या जंगलों में कहीं उसे परमात्मा मिला हो।
वो परमात्मा जब भी मिला उसके हृदय के भीतर ही मिला
जिसने भी उस परमात्मा की खोज की
वो खोजते खोजते खुद ही परमात्मा हो गया
जैसे-जैसे
वो उस सत्य मार्ग में आगे बढ़ता गया
उसके एक एक संसारिक आवरण,नकली जिंदगी के पर्दे उतरते चले गए
अंत में वो वही रह गया,
जैसा वो पहले नवजात शिशु
बिलकुल कोरा कपड़ा शून्य की तरह था
जिसपर कोई संसारिक दाग नहीं था
वो खुद ही परमात्मा था।