‘हे भारत ! तू सर्वभाव से उस परमात्मा की शरण जा, उसकी कृपा से तू परम शान्ति को, अविनाशी स्थान को प्राप्त हो जायगा’
उनके ‘सर्वभाव’ कहने का तात्पर्य क्या है ? तात्पर्य यह है कि हे प्रभो ! हमारे माता-पिता, भाई-बन्धु, सखा, धन, जन, प्राण, सर्वस्व – आप ही हैं |
आप ही हमारे स्वामी हैं, विद्या हैं, पति हैं यानी जो कुछ हैं सब कुछ आप ही हमारे हैं यही सर्वभाव है |
सर्वभाव का अर्थ यदि इस प्रकार लिया जाय कि ‘मैं भगवान् की शरण में हूँ’ तो उसमे अपना मन, वाणी, तन, धन, जन, सब कुछ उनकी शरण में अर्पण करना पड़ता है |
मन से शरण होना, बुद्धि से शरण होना, इन्द्रियों से शरण होना, वाणी से शरण होना – ये सब उसके अन्तर्गत ही हैं |
यानी जो कुछ है सब भगवान् की चीज है, ऐसा मानकर भगवान् के समर्पण कर देना है | भगवान् कहते हैं कि उस परमात्मा की कृपा से
परम शान्ति यानी परमात्मा की प्राप्ति से जो शान्ति प्राप्त होती है,शाश्वत स्थान को परमपद कहते हैं, उसी को परमात्मा की प्राप्ति कहते हैं।