तुम मुझे देखा करो और मैं तुम्हें देखा करूँ
हमारा मन वहीं लगता है, जहाँ हमारी अभिलाषित वस्तु होती है, जहाँ हमें अपनी रूचि के अनुकूल सुख, सौंदर्य, माधुर्य, ऐश्वर्य आदि दिखायी देते हैं | विचार करके देखने से पता लगता है कि जगत में हम जो प्रिय वस्तु, सुख, सौन्दर्य, माधुर्य, ऐश्वर्य आदि देखते है, उन सभी का पूर्ण अमित अनन्त भण्डार श्रीभगवान हैं |समस्त वस्तुएँ, समस्त गुण, समस्त सुख-सौन्दर्य भगवान् के किसी एक अंश के प्रतिबिम्बमात्र हैं | उस महान अनन्त अगाध सागर के सीकर-कण की छायामात्र हैं | हमें जो वस्तु जितनी चाहिए, जब चाहिए, वही वस्तु उतनी ही और उसी समय भगवान् में मिल सकती है;हम भी उन्ही का अंश हम कुछ भी नहीं करते हैं सबकुछ उनकी इच्छा से हो रहा है इस जीवन चक्र को चलाने वाले परम पिता परमात्मा है क्योंकि वे सदा-सर्वदा उनसे अनन्तरूप से भरी हैं और चाहे जितनी निकाल ली जानेपर भी कभी उनकी अनन्तता में कमी नहीं आती | अतएव हमारा मन जिस किस में लगता हो, उसी को दृढ विश्वास के साथ भगवान् में देखना चाहिए | फिर हम कभी भगवान् से अलग नहीं होंगे और भगवान् हमसे अलग नहीं होंगे; क्योंकि सबकुछ भगवान् से, भगवान् में है तथा भगवत्स्वरूप ही है | भगवान् ने कहा है—
you see me and i see you Our mind seems to be where our desired object is, where we see happiness, beauty, melody, opulence etc. according to our taste. By thinking and seeing, it is known that all the dear things, happiness, beauty, sweetness, opulence etc., which we see in the world, are the absolute infinite storehouse of all of them. are only reflections of the fraction. Sikar is only a shadow of a particle of that great infinite ocean. Whatever we want, whenever we want, the same thing can be found in God at the same time and at the same time; We are also a part of Him, we do nothing, everything is happening according to His will, the Supreme Father, the Supreme Soul, who drives this life cycle. For they are eternally filled with them, and no matter how much they are taken out, their eternity never diminishes. Therefore, in whomever our mind is engaged, we should look with firm faith in the Lord. Then we will never be separated from the Lord and the Lord will never be separated from us; Because everything is from the Lord, in the Lord and is the form of the Lord. God has said-