राधाजी और श्रीकृष्ण का प्रेम अलौकिक था। राधा कृष्ण के प्रेम को सांसारिक दृष्टि से देखेंगे तो समझ ही नहीं पायेंगे। इसे समझने को तो पहले आपको राधा और कृष्ण दोनों से स्वयं प्रेम करना होगा।
श्रीकृष्ण का हृदय तो व्रज में ही रहता था परन्तु उनकी बहुत सी लीलाएँ शेष थीं। इसलिए उन्हें द्वारका जाना पड़ा। गए तो थे यह कहकर कि कुछ ही दिनों में वापस ब्रजलोक आयेंगे, पर द्वारका के राजकाज में ऐसे उलझे कि मौका ही नहीं मिल पाया। राधा कृष्ण दूर-दूर थे।
गोपाल अब राजा बन गए थे। स्वाभाविक है कि राजकाज के लिए समय देना ही पड़ता। स्वयं भगवान ही जिन्हें राजा के रूप में मिल गए हों उनकी प्रसन्नता की कोई सीमा होगी। द्वारकावासी दिनभर उन्हें घेरे रहते। जो एकबार दर्शन कर लेता वह तो जाने का नाम नहीं लेता। बार-बार आता। प्रभु मना कैसे करें और क्यों करें?
ब्रज से दूर श्रीकृष्ण हमेशा अकेलापन महसूस करते। उन्हें गोकुल और व्रज हमेशा याद आता। जिस भी व्रजवासी के मन में अपने लल्ला से मिलने की तीव्र इच्छा होती श्रीकृष्ण उसे स्वप्न में दर्शन दे देते। स्वप्न में आते तो उलाहना मिलती, इतने दिनों से क्यों नहीं आए। यही सिलसिला था।
भक्त और भगवान वैसे तो दूर-दूर थे। फिर भी स्वप्न में ही दर्शन हों जायें, तो ऐसे भाग्य को कोई कैसे न सराहे।
श्रीकृष्ण से विरह से सबसे ज्यादा व्याकुल तो राधाजी थीं। राधा और कृष्ण मिलकर राधेकृष्ण होते थे पर दोनों भौतिक रूप से दूर थे।
एक दिन की बात है। राधाजी सखियों संग कहीं बैठी थीं। अचानक एक सखी की नजर राधाजी के पैर पर चली गई। पैर में एक घाव से खून बह रहा था।
राधा जी कै पैर में चोट लगी है, घाव से खून बह रहा है। सभी चिन्तित हो गए कि उन्हें यह चोट लगी कैसे। लगी भी तो किसी को पता क्यों न चला।
सबने राधा जी से पूछा कि यह चोट कैसे लगी? राधाजी ने बात टालनी चाहा। अब यह तो इंसानी प्रवृति है आप जिस बात को जितना टालेंगे, लोग उसे उतना ही पूछेंगे।
राधा जी ने कहा–एक पुराना घाव है। वैसे कोई खास बात है नहीं। चिंता न करो सूख जाएगा।
सखी ने पलटकर पूछ लिया–पुराना कैसे मानें? इससे तो खून बह रहा है। यदि पुराना है, तो अब तक सूखा क्यों नहीं ? यह घाव कैसे लगा, कब लगा? क्या उपचार कर रही हो ? जख्म नहीं भर रहा कहीं कोई दूसरा रोग न हो जाए!
एक के बाद एक राधाजी से सखियों ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी। उन्हें क्या पता, जिन राधाजी की कृपा से सबके घाव भरते हैं, उन्हें भयंकर रोग भला क्या होगा!
राधाजी समझ गईं कि अगर उत्तर नहीं दिया तो यह प्रश्न प्रतिदिन होगा। इसलिए कुछ न कुछ कहके पीछा छुड़ा लिया जाए, उसी में भला है।
राधा जी बोलीं–एक दिन मैंने खेल-खेल में कन्हैया की बांसुरी छीन ली। वह अपनी बांसुरी लेने मेरे पीछे दौड़े। बांसुरी की छीना-झपटी में अचानक उनके पैर का नाखून मेरे पांव में लग गया। यह घाव उसी चोट से बना है।
राधा जी ने गोपियों को बहलाने का प्रयास तो किया पर सफल नहीं रहीं। किसी ने भी उनकी इस बात का विश्वास न किया। प्रश्नों से भाग रही थीं, अब पलटकर फिर से प्रश्न शुरू हो गए।
सखियों ने पूछा–यदि यह घाव कान्हा के पैरों के नाखून से हुआ तो अबतक सूखा क्यों नहीं? कान्हा को गए तो कई बरस हो गए हैं। इतने में तो कोई भी घाव सूख जाए। देखो कुछ छुपाओ मत। हमसे छुपा न सकोगी। आज नहीं तो कल पता तो चल ही जाएगा। सो अच्छा है कि आज ही बता दो।
राधा जी समझ गईं कि सखियों को आधी बात बताकर बहलाया नहीं जा सकता। वह तो अपने कन्हैया से आज ही रात स्वप्न में पूछ लेंगी। बात तो खुल ही जाएगी इसलिए बता ही देना चाहिए।
राधा जी बोलीं–घाव सूखता तो तब न, जब मैं इसे सूखने देती। मैं रोज इसे कुरेदकर हरा कर देती हूँ।
सखियों की तो आँख फटी रह गई ये सुनकर कि राधा जी घाव को हरा कर रही हैं। यह तो बड़ी विचित्र बात हुई। सबके चेहरे पर एक साथ कई भाव आए। अब राधा जी से फिर से प्रश्नों की झड़ी लगने वाली थी। इससे पहले कि कोई कुछ कहे राधाजी ने ही बात पूरी कर दी।
राधाजी थोड़े दुखी स्वर में बोलीं–कान्हा रोज सपने में आकर इस घाव का उपचार कर देते हैं। घाव के उपचार के लिए ही सही, कन्हैया मेरे सपनों में आते तो हैं। अगर यह सूख गया तो क्या पता वह सपने में भी आना छोड़ दें।
प्रभु दूर बैठे सब सुन रहे थे। उनकी आँखों में आँसू भर आए। वहीं पास में उद्धव जी बैठे थे। उन्होंने प्रभु की आँखों से छलकते आँसू देख लिए।
उद्धवजी हैरान-परेशान हो गए। सबके आँसू दूर करने वाले श्रीकृष्ण रो रहे हैं। यह क्या हो रहा है। कौन सा अनिष्ट देख लिया। कौन सा अनिष्ट घटित होने वाला है। उद्धवजी चाह तो नहीं रहे कि प्रभु के नितान्त निजी बात में हस्तक्षेप करें पर कौतूहल भी तो है।
उद्धवजी स्वयं को रोक ही न पाए। उन्होंने श्रीकृष्ण से आँसू का कारण पूछ ही लिया। भगवान ने भी अपने सखा उद्धव से कुछ भी न छुपाया। सारी बात साफ-साफ बता दी।
उद्धव को यकीन नहीं हुआ कि ब्रजवासी श्रीकृष्ण से इतना प्रेम करते हैं। भगवान नित्य उन्हें सपने में जाते हैं। उनके उलाहने लेते हैं, उनका उपचार करते हैं। इतनी फुर्सत कहाँ है इन्हें। यह सब भाव उद्धव के मन में आ रहे थे। भगवान उद्धव की शंका ताड़ गए।
उन्होंने उद्धव से कहा–उद्धव आप तो परमज्ञानी हैं। किसी को भी अपने वचन से सन्तुष्ट कर सकते हैं। मेरे जाने से पहले आप एक बार ब्रज हो आइए। ब्रजवासियों को अपनी वाणी से मेरी विवशता के बारे में समझाकर शांत करिए। उसके बाद मैं जाऊँगा।
उद्धव ब्रज गए। उन्हें गर्व था कि वह ज्ञानी हैं और किसी को भी अपनी बातों से समझा लेंगे। चिकनी-चुपड़ी बातों से गोपियों को समझाने की कोशिश की। गोपियों ने इतनी खिंचाई की, कि सारा ज्ञान धरा का धरा रह गया।
गोपियों के मन भगवान के प्रति प्रेम देखकर वह स्तब्ध रह गए। द्वारका में श्रीकृष्ण के आँसू देखकर जो शंका की थी उसके लिए बड़े लज्जित हुए।
गोपियों ने श्रीकृष्ण से अपने प्रेमभाव का जो वर्णन शुरू किया तो उद्धव की आँखें स्वयं झर-झरकर बहने लगीं। वह भाव-विभोर हो गए। राधा और कृष्ण के बीच अलौकिक प्रेम को उद्धव ने तभी समझा..!!
जय श्री राधे राधे जी
Radhaji and Shri Krishna’s love was supernatural. If you look at the love of Radha Krishna from a worldly point of view, you will not be able to understand it at all. To understand this, first you have to love both Radha and Krishna yourself.
Shri Krishna’s heart used to remain in Vraj only, but many of his pastimes were left. So he had to go to Dwarka. He had gone saying that he would come back to Brajlok in a few days, but he got entangled in the administration of Dwarka in such a way that he could not get a chance. Radha Krishna was far away.
Gopal had now become the king. It is natural that time has to be given for governance. There would be no limit to the happiness of those who have got God himself as a king. The residents of Dwarka used to surround him throughout the day. The one who visits once does not take the name of leaving. Comes again and again How and why should the Lord forbid?
Shri Krishna always felt lonely away from Braj. He would always remember Gokul and Vraj. Whichever Vraj resident had a strong desire to meet his Lalla, Shri Krishna would give him darshan in his dream. Had he come in the dream, he would have been scolded, why didn’t he come for so many days. This was the sequence.
The devotee and God were far away anyway. Even then, if we get darshan only in dreams, then how can one not appreciate such fortune. Radhaji was the most distraught of separation from Shri Krishna. Radha and Krishna together used to be Radhekrishna but both were physically distant. Its just matter of one day. Radhaji was sitting somewhere with her friends. Suddenly a friend’s eyes went on Radhaji’s feet. Blood was oozing from a wound in his leg. Radha ji’s leg is hurt, blood is oozing from the wound. Everyone got worried as to how he got hurt. Even if it did, why didn’t anyone know? Everyone asked Radha ji how did this injury happen? Radhaji tried to avoid the matter. Now this is human tendency, the more you avoid the thing, the more people will ask about it.
Radha ji said – It is an old wound. It is nothing special anyway. Don’t worry it will dry. The friend turned back and asked – how to consider it old? Blood is flowing because of this. If it is old, then why is it not dry yet? How did this wound happen, when did it happen? What treatment are you doing? The wound is not healing, lest some other disease may occur! One after the other, the friends bombarded Radhaji with a barrage of questions. Little did they know, by whose grace Radhaji heals everyone’s wounds, what terrible disease would happen to them! Radhaji understood that if the answer is not given then this question will be there everyday. That’s why it is good to get rid of the chase by saying something or the other.
Radha ji said – One day I snatched Kanhaiya’s flute while playing. He ran after me to get his flute. In the snatching of the flute, suddenly his toe nail hit my foot. This wound is made from that injury. Radha ji tried to amuse the Gopis but was not successful. No one believed his words. She was running away from the questions, now turning back the questions started again. Friends asked – If this wound was caused by the nails of Kanha’s feet, then why is it not dry yet? It has been many years since Kanha went. In that time any wound will dry up. Look, don’t hide anything. Can’t hide from us If not today then tomorrow you will know. So it is better to tell today itself. Radha ji understood that friends cannot be amused by telling half the story. She will ask her Kanhaiya in her dreams tonight itself. The matter will be revealed, so it should be told. Radha ji said – The wound would have dried if I had allowed it to dry. I turn it green by scraping it every day. Friends’ eyes were teary hearing that Radha ji is healing the wound. This is a very strange thing. Many expressions appeared on everyone’s face at the same time. Now there was going to be a flurry of questions again from Radha ji. Before anyone could say anything, Radhaji completed the matter.
Radhaji said in a slightly sad tone – Kanha heals this wound by coming in dreams everyday. At least for the treatment of wounds, Kanhaiya does come in my dreams. If it dries up, who knows, they may stop coming even in dreams.
Prabhu was listening to everyone sitting far away. Tears welled up in his eyes. Uddhav ji was sitting nearby. He saw tears rolling from the eyes of the Lord. Uddhavji was perplexed. Shri Krishna who removes everyone’s tears is crying. What is this happening. Which evil did you see? Which evil is about to happen. Uddhavji does not want to interfere in the very personal matter of the Lord, but there is also curiosity. Uddhavji could not stop himself. He asked Shri Krishna the reason for his tears. Even God did not hide anything from his friend Uddhava. Told everything clearly. Uddhav could not believe that Brajvasi loved Shri Krishna so much. The Lord always visits him in his dreams. He takes their reproaches, treats them. Where do they have so much free time? All these feelings were coming in Uddhav’s mind. Lord Uddhav’s doubts were dispelled. He said to Uddhav – Uddhav, you are the most knowledgeable. You can satisfy anyone with your words. Come to Braj once before I leave. Calm the Brajvasis by explaining about my helplessness with your speech. After that I will go. Uddhav went to Braj. He was proud that he was knowledgeable and would make anyone understand with his words. Tried to convince the Gopis with smooth talk. The Gopis pulled so much that all the knowledge was left behind. He was stunned to see the love of the Gopis towards God. Seeing the tears of Shri Krishna in Dwarka, he felt very ashamed for the doubt he had. When the Gopis started describing their love for Shri Krishna, then Uddhav’s eyes started flowing with tears. He became emotional. Only then Uddhav understood the supernatural love between Radha and Krishna..!!
Jai Shri Radhe Radhe Ji