राधा जी की कृपा चन्दन वृंदावन की ब्रज भूमि में रहने वाला अपने माँ-बाप का इकलौता बेटा था। दिन भर वो ब्रज की रज में लोटपोट होता रहता अपने सखाओं के साथ अठखेलियाँ करता रहता। सारा दिन अपने सखाओं के साथ गईया चराने जाता। शाम होने पर यमुना जी में स्नान करके वापस घर आता, घर आकर माँ बाप के चरण छूकर प्रसादी पाता।
यही उसकी दिनचर्या थी। चन्दन में धीरे-धीरे ठाकुर जी के प्रति सखी भाव जागृत होने लगा। अब वह ठाकुर जी की सखियों की तरह चलता कभी-कभी सर पर चुनरी ओढता, और कभी आँखों में काजल लगा लेता।
एक दिन उसके मामा, जो बनारस शहर में रहने वाले थे वृंदावन आए जब उन्होंने चन्दन को सखी भाव में देखा तो हैरान होकर चन्दन की माँ से बोले कि चन्दन तो आपका इकलौता बेटा है इसको थोड़ा पढ़ा-लिखा लो ताकि वह कुछ काबिल बन सके। चन्दन के माता-पिता उसके मामा की बात सुनकर सोचनेे लगे कि हाँ कह तो यह ठीक ही रहा है और उन्होंने चन्दन को उसके मामा के साथ शहर में पढ़ने के लिए भेज दिया। शहर में पहले तो चन्दन का मन नहीं लगा लेकिन धीरे-धीरे उसका मन वहाँ लग गया और बड़े अच्छे से पढ़ाई करने लगा। चन्दन अब बड़ा होने लगा ! चन्दन चाहे शहर में रहकर वहाँ रच बस गया था
लेकिन उसके अन्दर ब्रजरज का रस कूट-कूट कर उसके प्रत्येक रोम-रोम में बसा हुआ था जो कि उसको कभी भी ब्रज से दूरी महसूस नहीं कराता था। इसलिए वह अपने आपको वहाँ अकेला नहीं समझता था क्योंकि वह अपने अन्दर ही पूरे आनन्द में रहता था। चन्दन की कक्षा में एक छात्रा उसकी सखा बन गई जिसका नाम ललिता था। ललिता जिसके माता-पिता बचपन में ही स्वर्गवास हो चुके थे। वह अपने नाना नानी के साथ रहती थी वह बहुत ही सीधी साधी लड़की थी। चन्दन और ललिता की खूब बनती थी। स्कूल खत्म होने पर दोनों इकट्ठे ही आगे की पढ़ाई के लिए कॉलेज में प्रवेश हुए वहाँ पर इकट्ठे पढे़।
चन्दन की पढ़ाई अब खत्म हो चुकी थी। वह अपने घर वृंदावन धाम जाने के लिए तैयार हुआ तो उसने ललिता को कहा क्या तुम मेरे साथ वृंदावन धाम चलोगी तो ललिता ने अपने नाना-नानी की आज्ञा लेकर चन्दन के साथ जाना स्वीकार कर लिया। जब चन्दन अपने मामा जी से विदा लेकर वृंदावन धाम पहुँचा तो वृंदावन में कदम रखते ही चन्दन के हावभाव बदल से गए वह तो एकदम से सखी भाव में आ गया। उसकी चाल नर से नारी जैसी हो गई। वह अपनी कमर में हाथ रखकर चलने लगा। अचानक से उसकी चाल में आए परिवर्तन को देखकर ललिता हैरान हो कर उसको देखती रही लेकिन वह बोली कुछ नहीं। अब चन्दन अपने घर पहुँच चुका था। घर जाकर उसने अपने माता पिता के चरण छुए और ललिता के बारे में उनको बताया। ललिता की सुन्दरता और सादगी को देखकर चन्दन के माता पिता भी बहुत प्रसन्न हुए।
काफी दिन हो चुके थे ललिता को वृंदावन आए हुए तो जब उसने चन्दन से जाने की आज्ञा माँगी तो चन्दन ने अचानक से उसको कहा कि क्या तुम मेरी जीवनसंगिनी बनोगी। अचानक से यह सुनकर ललिता घबरा और लज्जा सी गई और उसने मुस्कुराकर हाँ में हामी भर दी।
अब उन दोनों की शादी बड़ी धूमधाम से संपन्न हो गई। लेकिन ललिता को कभी-कभी चन्दन का व्यवहार अजीब सा लगता था। चन्दन कभी-कभी अपनी आँखों में काजल लगा कर सर पर चुनरी ओढ़ कर कमर पर हाथ रख कर ना जाने कौन सा नृत्य करता रहता और किसको रिझाता रहता।
ललिता को यह सब समझ नहीं आता। एक दिन उसने पूछा कि आप कभी-कभी ऐसा रूप क्यों धारण कर लेते हो तो चन्दन मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखने लगा और तभी उसने मन में कुछ निश्चय किया और कहा कि प्रिय तुम सुबह तैयार हो जाना मुझे तुम्हें कहीं पर लेकर जाना है।
ललिता को कुछ समझ नहीं आया लेकिन पति की आज्ञा को मानकर वह जल्दी सुबह उठकर तैयार हो गई। चन्दन उसको बरसाना धाम ले गया और किशोरी जी के निज महल में जाकर उसने अपने पांव में घुंघरू बांधकर आँखों में काजल लगा कर कमर पर चुनरी बांधकर नृत्य करना शुरू कर दिया। ललिता उसको देख कर हैरान हो रही थी कि अचानक से चन्दन को क्या हो गया है। वह तो बस अपनी धुन में किशोरी जू के आगे नृत्य करता जा रहा था।
उसका नृत्य इतना मंत्रमुग्ध करने वाला था कि वहाँ पर आए सभी भक्तजन ठिठक कर उसके नृत्य का आनन्द ले रहे थे। बाहर से कभी-कभी पवन का एक झोंका आकर चन्दन के नृत्य का आनन्द ले जाता और कभी-कभी सूरज की किरणें अन्दर आ कर चन्दन के पैरों में बजते नूपुर से निकली राधे-राधे की ध्वनि को सुनकर आनन्दित हो जाती।
जब चन्दन थोड़ा शांत हुआ तो उसने ललिता को बताया कि यह हमारी लाडली सरकार है इनको नमन करो। ललिता को तब भी कुछ समझ ना आया, वह अभी भी असमंजस में थी किशोरी जी को प्रणाम करके वह वापस वृंदावन आ गए। तभी दूसरी और उसी शाम ठाकुर जी और किशोरी जी यमुना जी में नौका विहार करने के लिए निकले।
नौका बहुत ही सुन्दर तरीके से सजी हुई थी। नौका में चारो ओर कमल और मोगरे के फूल लगे हुए थे। नौका में ठाकुर जी और किशोरी जू आमने सामने बैठ कर एक दूसरे के रूप रस का पान कर रहे थे। और उनके पीछे बैठी एक सखी हाथ में पतवार को लिए नौका को चला रही थी तभी अचानक से सखी के हाथ से पतवार छूटकर यमुना में चली गई और वो घबरा सी गई और घबराहट के कारण वह अपने पैरों के नाखून से नौका की भूमि को कुरेदने लगी तभी अचानक से ठाकुर जी का ध्यान पीछे बैठी सखी पर पड़ा और बोले अरे सखी इतनी घबराई हुई क्यों हो उसने हाथ जोड़कर बड़ी विनम्रता से कहा कन्हैया मेरी पतवार यमुना जी में गिर गई है तो ठाकुर जी मुस्कुरा कर बोले इसमें घबराने की क्या बात है
और आँखों ही आँखों में उन्होंने किशोरी जी को कुछ इशारा किया अब एक तरफ से किशोरी जी ने और दूसरी तरफ से ठाकुरजी ने अपने हाथ को यमुनाजी में डाल दिया और वह दोनों अपने दोनों हाथों को पतवार की तरह चलाने लगे। झुकने के कारण किशोरी जी के सर पर ओढ़ी चुनरी यमुना जी में भीग रही थी और उधर दूसरी तरफ ठाकुर जी का गले में पड़ा पितांबर यमुना जी में भीग रहा था। हाथों पर पितांबर और चुनरी पर लगा इत्र यमुना जी में घुल मिल गया था। ठाकुरजी और किशोरी जू ने अपने हाथों से उस नाव को किनारे पर लगाया।
अगले दिन ललिता की सास और ससुर चन्दन के मामा के यहाँ कुछ काम से चले गए। अब घर में ललिता और चन्दन अकेले थे। चन्दन सुबह-सुबह ही अपने काम पर चला गया और ललिता हाथ में मटकी को लेकर यमुना जी से जल भरकर ले आई। आज घर में कोई नहीं था इसलिए जब ललिता ने मटकी में से जल को थोड़ा सा पिया तो उसमें इतनी सुन्दर इत्र की खुशबू को महसूस करके वह बहुत प्रसन्नता से भर गई।
धीरे-धीरे उसने उस मटकी में से काफी जल पी लिया और जब थोड़ा सा जल शेष बचा तो उसका ध्यान मटकी में पढ़ा तो वह क्या देखती है कि नौका में बैठकर विहार करते किशोरी जू और लाल जू नजर आ रहे है। ललिता घबरा कर दीवार के सहारे टेक लगा कर खड़ी हो गई।
उसको कुछ सूझ नहीं रहा था मटकी से पिया हुआ जल धीरे-धीरे अब उसके पूरे शरीर में फैल गया था उसकी आँखों में ना जाने कैसे अश्रु धारा बहने लगी इतने में चन्दन बाहर से आया और अपनी पत्नी की ऐसी दशा देखकर उसने पूछा प्रिय क्या हुआ। ललिता के मुख से कुछ भी नहीं निकल रहा था परन्तु उसके होंठ कुछ कहने के लिए फड़फड़ा रहे थे सांस जोर-जोर से चल रही थी आँखों की पलकें हिल भी नहीं रही थी।
चन्दन ने जब उसको झिंझोड़ कर बार-बार पूछा तो उसने इशारे से मटकी की तरफ इशारा किया। चन्दन ने जब मटकी की तरफ देखा तो उसको भी मटकी मे ठाकुर जी और किशोरी जी की नौका विहार की छवि दिखाई दी और वह झूम झूम कर नाचने लगा और ललिता को पकड़कर उसने खींचकर जोर से अपने अंक में भींच लिया और कहने लगा अरे प्रिय आज तुझे ब्रज ने स्वीकार कर लिया है
आज तुझे मेरे श्यामा श्याम जू ने स्वीकार कर लिया है। ललिता कुछ समझ नहीं पा रही थी और चन्दन की तरफ़ देखी जा रही थी तो चन्दन ने उस को समझाते हुए कहा कि तुम्हारे कोई पुण्य कर्म थे जो तुझे ब्रज में कदम रखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ लेकिन ब्रज में कदम रख कर तुम्हें सुख प्राप्त हो रहा था लेकिन उस सुख को आनन्द में बदलने के लिए तुझे किशोरी जी की आज्ञा की प्राप्ति जरूरी थी।
इसलिए मैं तुझे बरसाना धाम ले गया था ताकि तूझे भी वहाँ पर किशोरी जी का आशीर्वाद प्राप्त हो। यह उन्हीं की कृपा प्राप्ति है जो आज तुम्हें ठाकुरजी और किशोरी जी के नौका विहार के दर्शन इस मटकी में प्राप्त हुए हैं क्योंकि आज तुझे ठाकुर जी और किशोरी जू ने अपना लिया है जो यमुना जी का जल धीरे-धीरे उसके शरीर में प्रवेश हुआ था वह ठाकुर और किशोरी जी की कृपा की छलनी से उसके पाप नीचे बैठ गए थे
और अब उसके पुण्य कर्म ऊपर थे इसलिए ललिता को इस आनन्द की प्राप्ति हो चुकी थी। इसलिए ब्रज में तो हर कोई आता जाता रहता है और उसको सुख की प्राप्ति होती रहती है लेकिन जिस पर ठाकुर जी व किशोरी जी की कृपा हो उसको सुख के साथ-साथ ठाकुर जी के आनन्द की भी प्राप्ति होती है इसलिए हमें ठाकुर जी के मीठे आनन्द को अपने रोम-रोम में प्रवेश कराके उस आनन्द से प्राप्त प्रेम की मृगतृष्णा को इतना बढाए कि वह प्रेम आँखों मे निकलने वाले नमकीन अश्रुओं के द्वारा बहकर ठाकुर जी और किशोरी जू की मीठी कृपा से सरोबार हो सके !!
By the grace of Radha, Chandan was the only son of his parents living in Braj Bhoomi of Vrindavan. Throughout the day, he used to play pranks with his friends while roaming around in the kingdom of Braj. The whole day he used to go to graze with his friends. In the evening, after taking a bath in Yamuna ji, he would come back home, after coming home, he would get prasadi by touching the feet of his parents.
This was his routine. Gradually, the feeling of friendship towards Thakur ji started awakening in Chandan. Now he would walk like Thakur ji’s friends, sometimes wearing a chunri on his head, and sometimes applying mascara to his eyes.
One day his maternal uncle, who was living in Banaras city, came to Vrindavan, when he saw Chandan in a friendly manner, he was surprised and said to Chandan’s mother that Chandan is your only son, give him a little education so that he can become capable. Chandan’s parents after listening to his maternal uncle started thinking that it was right to say yes and they sent Chandan to study in the city with his maternal uncle. At first Chandan did not like the city but gradually he got attracted there and started studying very well. Sandalwood has now started growing! Chandan may have lived in the city but settled there
But inside him, the juice of Brajraj was codified in each and every pore of him, which never made him feel distance from Braj. That’s why he did not consider himself alone there because he lived in complete bliss within himself. A student in Chandan’s class became his friend, whose name was Lalita. Lalita whose parents had passed away in her childhood. She lived with her maternal grandparents, she was a very simple girl. Chandan and Lalita used to make a lot. After the school was over, both of them entered the college together for further studies and studied there together.
Chandan’s studies were over now. When he got ready to go to his home Vrindavan Dham, he asked Lalita, will you go with me to Vrindavan Dham, then Lalita accepted the permission of her maternal grandparents to go with Chandan. When Chandan reached Vrindavan after saying goodbye to his maternal uncle, Chandan’s expression changed as soon as he stepped into Vrindavan, he suddenly became a friend. Her gait changed from male to female. He started walking with his hand on his waist. Surprised to see the sudden change in his gait, Lalita kept looking at him but he did not say anything. Now Chandan had reached his home. Going home, he touched the feet of his parents and told them about Lalita. Chandan’s parents were also very happy to see the beauty and simplicity of Lalita.
It had been many days since Lalita had come to Vrindavan, so when she asked Chandan for permission to go, Chandan suddenly asked her that will you be my life partner. Hearing this suddenly, Lalita got scared and ashamed and she smiled and agreed in yes.
Now both of them got married with great fanfare. But Lalita sometimes found Chandan’s behavior strange. Sometimes Chandan used to put kajal in his eyes, covered his head with chunri and put his hand on his waist, don’t know which dance he used to do and whom he kept wooing.
Lalita does not understand all this. One day he asked why do you sometimes take such a form, then Chandan started looking at him with a smile and then he decided something in his mind and said that dear you get ready in the morning, I have to take you somewhere.
Lalita did not understand anything but following her husband’s order, she got up early in the morning and got ready. Chandan took her to Barsana Dham and after going to Kishori ji’s own palace, she started dancing by tying anklets on her feet, applying kajal on her eyes and tying a chunri around her waist. Lalita was surprised to see him as to what has happened to Chandan all of a sudden. He was just dancing to his tune in front of Kishori Ju.
Her dance was so mesmerizing that all the devotees who came there stood still and enjoyed her dance. Sometimes a gust of wind would come from outside and take away the joy of sandalwood dance and sometimes the sun’s rays would come inside and she would be happy listening to the sound of ‘Radhe-Radhe’ emanating from the nupur ringing at the feet of sandalwood.
When Chandan calmed down a bit, he told Lalita that this is our dear Sarkar, bow down to him. Lalita didn’t understand anything even then, she was still in confusion and returned to Vrindavan after saluting Kishori ji. That’s why on the second and same evening Thakur ji and Kishori ji went out for boating in Yamuna ji.
The boat was decorated very beautifully. There were lotus and mogra flowers all around the boat. Thakur ji and Kishori Ju were sitting face to face in the boat and drinking each other’s juice. And a friend sitting behind her was steering the boat with the rudder in her hand, then suddenly leaving the rudder from the hand of the friend, she went into the Yamuna and she got scared and because of nervousness, she started scratching the land of the boat with the nails of her feet. Then suddenly Thakur ji’s attention fell on the friend sitting behind and said, “Hey friend, why are you so nervous?”
And in the eyes, he indicated something to Kishori ji, now from one side Kishori ji and from the other side Thakurji put his hand in Yamunaji and both of them started running both their hands like rudder. Because of bowing down, the chunri covered on Kishori ji’s head was getting wet in Yamuna ji and on the other hand, Thakur ji’s pitambar lying around his neck was getting wet in Yamuna ji. The perfume applied on Pitambar and Chunri on the hands got dissolved in Yamuna ji. Thakurji and Kishori Ju put that boat on the shore with their own hands.
The next day, Lalita’s mother-in-law and father-in-law went to Chandan’s maternal uncle’s place for some work. Now Lalita and Chandan were alone in the house. Chandan went to his work early in the morning and Lalita brought water from Yamuna ji with a pot in her hand. Today there was no one in the house, so when Lalita drank a little of the water from the pot, she was filled with great joy, feeling the fragrance of such a beautiful perfume in it.
Slowly she drank a lot of water from that pot and when a little water was left, she read her attention in the pot, then what she sees is that Kishori Ju and Lal Ju are seen sitting in the boat. Frightened, Lalita stood up leaning against the wall.
He was not able to understand anything, the water he drank from the pot had slowly spread all over his body; . Nothing was coming out of Lalita’s mouth but her lips were fluttering to say something, her breathing was going on loudly, her eyelids were not even moving.
When Chandan asked him again and again, he gestured towards the pot. When Chandan looked at the pot, he also saw the image of Thakur ji and Kishori ji boating in the pot and he started dancing and holding Lalita, pulled her tightly in his fingers and said, “Hey dear, today.” Braj has accepted you
Today my Shyama Shyam Ju has accepted you. Lalita was not able to understand anything and was looking at Chandan, then Chandan explained to her that you had some good deeds that you got the good fortune to step in Braj, but you are getting happiness by stepping in Braj. But to convert that happiness into joy, it was necessary for you to get Kishori ji’s permission.
That’s why I had taken you to Barsana Dham so that you too could get the blessings of Kishori ji there. It is because of his grace that today you have seen Thakurji and Kishoriji boating in this pot because today you have been adopted by Thakurji and Kishoriju, the water of Yamunaji slowly entered his body. His sins were washed away by the grace of Thakur and Kishori ji.
And now her good deeds were above, so Lalita had already attained this joy. That’s why everyone comes and goes in Braj and keeps getting happiness, but the one who is blessed by Thakur ji and Kishori ji, along with happiness, he also gets the joy of Thakur ji, that’s why we should eat the sweets of Thakur ji. By making Anand enter your every pore, increase the mirage of love received from that Anand so much that it flows through the salty tears of love and gets drenched in the sweet grace of Thakur ji and Kishori Ju!!