विश्यामा संग सभी की राधा
सच्चिदानंद श्रीकृष्ण की तीन
प्रमुख अलौकिक शक्तियाँ,
सद से रुक्मणी जी
चिद से कालिन्दी (यमुना) जी और
आनंद से राधा जी प्रगटी है ।
अपनी तेजोमय पराशक्ति राधा
को वृषभानु की पत्नी कीर्ति रानी
के गर्भ में प्रवेश कराया ।
ये कलिन्दजाकुलवर्ती निकुंज प्रदेश
के एक मंदिर में अवतीर्ण हुई ।
उस समय भाद्रपद शुक्ल पक्ष की
अष्टमी तिथि और सोमवार का दिन
मध्याह्न का समय था । देवगण नंदनवन
के दिव्य पुष्पों की वर्षा कर रहे थे
आकाश में बादल छाए हुए थे
शीतल मंद पवन बह रही थी
नदियों का जल स्वच्छ और समुची
प्रकृति खिलीं खिलीं स्वागत में
उत्साहित थी ।
शरत्पुर्णिमा के शत शत चंद़मा
से भी अधिक अभिराम कन्या
को देखकर गोपी कीर्तिदा
आनंद में निमग्न हो गई
उन्होंने मंगल कृत्य करवाकर
अपनी पुत्री की मंगल कामना से
दो लाख उत्तमोत्तम दुधारू
सजी धजी, आभूषण पहनी
गऊओ का दान किया ।
क्यों न करें, तत्वज्ञ मनुष्य
सैंकड़ों वर्षों की कठिन तपस्या
से भी जिनके दर्शन की एक झलक
नहीं पाते,वो राधा उनके गोद में
आई है ।
राधा रास की रंगस्थली को प्रकाशित
करने वाली चंद्रिका, वृषभानु मंदिर
की दीपावली,गोलोक चूड़ामणि
श्रीकृष्ण कंठ की हारावली है ।ऐसा
नारद जी गर्ग संहिता में कहते है ।
वे बताते हैं कि, ये वृषभानु और कीर्ति
पुर्व जनम में सुचन्द्र और कलावती
बड़े ही पुण्यशाली दंपत्ति थे ।
घोर तपस्या के बाद ब्रह्मा जी
से वरदान में राधा जी पुत्री
रूप में प्राप्त किया और
अपना वात्सल्य न्यौछार किया । राधा कृष्ण का विवाह भांडिर वन
में हुआ । एक बार लाला को गोद में
लिए नंदबाबा खिरक के पास से
गोओं को वहीं छोड़ भांडीर वन की
ओर बलात् खिंचाते चले गए । तहाँ
राधा जी के दिव्य अलौकिक तेज
स्वरूप के दर्शन हुए ।
नंदबाबा ने इनकी स्तुति करी है और
लाला को राधा जी की गोद में
सौंपते हुए कहा, यह आपके ही
स्वामी है । तब बाबा को युगल स्वरूप
ने दर्शन दिए और बाबा के जाने के बाद
ब्रह्मा जी ने वेद रीति
के अनुसार इनका विवाह करवाया
राधे कृष्ण की दिव्य विहार लीलाऐं हुई
पहले कृष्ण ने राधा का सिंणगार किया
जब राधा जी कृष्ण को सजाने लगी
तब भगवान फिर से नन्हे शिशु बन गए
बोले अभी मुझे नंदरानी को वात्सल्य
सुख देना है तुम मुझे वहाँ छोड़ दो
आगे की लीला समय आने पर होगी
तब राधा जी, लाला को वापस नंदरानी
को देने आती हैं और कहती है
भयंकर आँधी तुफान आया था
और नंदराय ने
आपको सौंपने का निर्देश दिया है ।
नंदरानी, उनका सत्कार करती है
और गऊंओ से लाला की सदा रक्षा
करने की प्रार्थना करती है ।
भगवान जब मथुरा के लिए जाते हैं
तब अपनी समस्त ब्रज की ज़िम्मेदारी
राधा जी को सौंपकर के जाते हैं अपनी
बंसरी, लकुटी, कमली देते हैं और कहते
हे राधे! तुम मेरे ब्रज की, साथ में मेरे भी
प्राण हो, जब भी हम विकल होंवे तब
तुम हमें संभालना ।रोना नहीं , ओर रोने
देना नहीं राधा तुम मेरी आह्लादित शक्ति हो
तब राधा जी ने ऐसा ही जीवन जिया
उद्धव जी के भी सुखे ज्ञान को राधा जी
और गोपियों ने भीगी भक्ति में परिणित किया
भगवान से विवाह के पश्चात राधा जी ने
तुलसी जी की बहुत सेवा की । पुन: कृष्ण संग
पाने के लिए, अलग अलग महीनों में पौधे को
अलग अलग रसो से सींचा नित्य पुजा करी
दीपदान किया तब तुलसी साक्षात प्रगट हुई
और कई आशीष दिए ।तब राधा जी ने कहा
है कि मेरे और कृष्ण कृपा, दर्शन की जिसे
लालसा हो वो नित्य तुलसी जी की सेवा करे
पौधा लगाने से लेकर अन्य सभी सेवा क़्रम का
विस्तार और वरदान गर्ग संहिता में बताया है
परस्पर देवियों ने एक दुसरे का सम्मान
सीता और गौरी की तरह किया ।
राधा कृष्ण एक दुसरे से अभिन्न है ऐसा
प्रभास क्षेत्र में भगवान की पटरानियों और
रानियों को राधा जी के दर्शन और सेवा की
इच्छा हुई, वो राधा जी के नख के दर्शन भी
तेज के कारण ,कर न सकी फिर भगवान की
इच्छा जानकर अपना तेज छिपाते हुए उन्हें
दर्शन दिए ।
रूक्मणी जी दुध लेकर उनके कक्ष में आई
कुछ गुनगुना था देकर चली गई, राधा जी ने
इसे भी भगवान की इच्छा जानकर
स्वीकार किया । जब रूक्मणी जी भगवान
की चरण सेवा कर रही थी, तब भगवान के
पैरों में छाले देखकर चौंक गई, तब भगवान
ने कहा मेरे चरणो को राधा अपने हर्दय में
रखती है, गरम दुध की वजह से ऐसा हुआ
रूक्मणी जी को भूल समझ में आई और
दोनों से क्षमा माँगी,जबकि खुद रूक्मणी जी
माँ लक्ष्मी का अवतार है ।
ऐसी अनेक लीलाऐं इनकी अभिन्नता दर्शाती हैं
बाद में अवतार कार्य पुरा करके युगल स्वरूप
नंद बाबा , यशोदा और सभी को साथ
लेकर गौलोक में चले गए । अपने तेज को
भागवत में स्थापित उद्धव की प्रार्थना से
कर गए और भक्तो की प्रार्थना पर कुछ
अंश से आज भी ब्रज में अनुभव करवाते हैं ।
॥जय श्री कृष्णा जी, राधे राधे ॥
राधे कृष्ण की ही इच्छा से उनके द्वारा प्रेरित
सुक्ष्माति सुक्ष्म भाव युगल चरणों में समर्पित
॥विश्यामा ॥
Everyone’s Radha with Vishma
Three of Satchidananda Shri Krishna major supernatural powers, Sad to Rukmani ji Chid to Kalindi (Yamuna) ji and Radha ji has appeared from Anand. Radha with her splendid Parashakti Vrishabhanu’s wife Kirti Rani entered the womb. This Kalindjakulvarti Nikunj region Incarnated in a temple of At that time of Bhadrapada Shukla Paksha Ashtami date and Monday It was midday. Devgan Nandanvan were showering divine flowers of the sky was cloudy cool breeze was blowing River water clean and pure Nature blossomed in welcome Was excited 100 moons of Sharatpurnima more than happy girl Seeing Gopi Kirtida immersed in bliss He did auspicious deeds with best wishes for your daughter two lakh best milk adorned, dressed in jewelery Donated cow. Why not do it, philosopher man Hundreds of years of hard penance even a glimpse of whose vision He does not find Radha in his lap I have come Published the Rangasthali of Radha Raas Doing Chandrika, Vrishabhanu Temple ki diwali, golok chudamani Shri Krishna is the haravali of the throat. Narad ji says in Garga Samhita. They tell that, these Vrishabhanu and Kirti Suchandra and Kalavati in previous birth They were a very blessed couple. Brahma ji after severe penance Radha ji daughter in boon from received and He gave up his love. Radha Krishna’s marriage Bhandir Van
में हुआ । एक बार लाला को गोद में लिए नंदबाबा खिरक के पास से गोओं को वहीं छोड़ भांडीर वन की ओर बलात् खिंचाते चले गए । तहाँ राधा जी के दिव्य अलौकिक तेज स्वरूप के दर्शन हुए । नंदबाबा ने इनकी स्तुति करी है और लाला को राधा जी की गोद में सौंपते हुए कहा, यह आपके ही स्वामी है । तब बाबा को युगल स्वरूप ने दर्शन दिए और बाबा के जाने के बाद ब्रह्मा जी ने वेद रीति के अनुसार इनका विवाह करवाया राधे कृष्ण की दिव्य विहार लीलाऐं हुई पहले कृष्ण ने राधा का सिंणगार किया जब राधा जी कृष्ण को सजाने लगी तब भगवान फिर से नन्हे शिशु बन गए बोले अभी मुझे नंदरानी को वात्सल्य सुख देना है तुम मुझे वहाँ छोड़ दो आगे की लीला समय आने पर होगी तब राधा जी, लाला को वापस नंदरानी को देने आती हैं और कहती है भयंकर आँधी तुफान आया था और नंदराय ने आपको सौंपने का निर्देश दिया है । नंदरानी, उनका सत्कार करती है और गऊंओ से लाला की सदा रक्षा करने की प्रार्थना करती है । भगवान जब मथुरा के लिए जाते हैं तब अपनी समस्त ब्रज की ज़िम्मेदारी राधा जी को सौंपकर के जाते हैं अपनी बंसरी, लकुटी, कमली देते हैं और कहते हे राधे! तुम मेरे ब्रज की, साथ में मेरे भी प्राण हो, जब भी हम विकल होंवे तब तुम हमें संभालना ।रोना नहीं , ओर रोने देना नहीं राधा तुम मेरी आह्लादित शक्ति हो तब राधा जी ने ऐसा ही जीवन जिया उद्धव जी के भी सुखे ज्ञान को राधा जी और गोपियों ने भीगी भक्ति में परिणित किया भगवान से विवाह के पश्चात राधा जी ने तुलसी जी की बहुत सेवा की । पुन: कृष्ण संग पाने के लिए, अलग अलग महीनों में पौधे को अलग अलग रसो से सींचा नित्य पुजा करी दीपदान किया तब तुलसी साक्षात प्रगट हुई और कई आशीष दिए ।तब राधा जी ने कहा है कि मेरे और कृष्ण कृपा, दर्शन की जिसे लालसा हो वो नित्य तुलसी जी की सेवा करे पौधा लगाने से लेकर अन्य सभी सेवा क़्रम का विस्तार और वरदान गर्ग संहिता में बताया है परस्पर देवियों ने एक दुसरे का सम्मान सीता और गौरी की तरह किया । राधा कृष्ण एक दुसरे से अभिन्न है ऐसा प्रभास क्षेत्र में भगवान की पटरानियों और रानियों को राधा जी के दर्शन और सेवा की इच्छा हुई, वो राधा जी के नख के दर्शन भी तेज के कारण ,कर न सकी फिर भगवान की इच्छा जानकर अपना तेज छिपाते हुए उन्हें दर्शन दिए । रूक्मणी जी दुध लेकर उनके कक्ष में आई कुछ गुनगुना था देकर चली गई, राधा जी ने इसे भी भगवान की इच्छा जानकर स्वीकार किया । जब रूक्मणी जी भगवान की चरण सेवा कर रही थी, तब भगवान के पैरों में छाले देखकर चौंक गई, तब भगवान ने कहा मेरे चरणो को राधा अपने हर्दय में रखती है, गरम दुध की वजह से ऐसा हुआ रूक्मणी जी को भूल समझ में आई और दोनों से क्षमा माँगी,जबकि खुद रूक्मणी जी माँ लक्ष्मी का अवतार है । ऐसी अनेक लीलाऐं इनकी अभिन्नता दर्शाती हैं बाद में अवतार कार्य पुरा करके युगल स्वरूप नंद बाबा , यशोदा और सभी को साथ लेकर गौलोक में चले गए । अपने तेज को भागवत में स्थापित उद्धव की प्रार्थना से कर गए और भक्तो की प्रार्थना पर कुछ अंश से आज भी ब्रज में अनुभव करवाते हैं ।
Jai Shri Krishna ji, Radhe Radhe Inspired by Radhe Krishna’s own wish Dedicated at the feet of a pair of fine subtle expressions
in prostitution