आनंद के सागर रघुराई, हैं असीम कण-कण में व्यापक, जो जाना सो मुक्ति पाई।
हो कितना अंधकार पुराना, पर प्रकाश न देर लगाता। पल भर में करता उजियाला, सब कुछ पड़ता साफ देखाई।आनन्द के सागर रघुराई
राम बोध जब हृदय में होता, स्वतः हो जाते बंधन ढीले। आत्मज्ञान जब हो जाता है, माया सकती नहीं नचाई। आनन्द के सागर रघुराई
सीमित दायरा मन इंद्रियों का, बहुत दूर ये देख न पाती। इसीलिए संशय के बादल, अक्सर देते सूर्य छिपाई। आनन्द के सागर रघुराई
कण-कण व्यापक राघवेंद्र हैं, प्रकृति में जब दिखने लगता। अनुभूति होती परम तत्व की, जीवन में आती सच्चाई। आनन्द के सागर रघुराई
सत्य राम में भेद नहीं है, सत्य का वास हृदय जब होता। संकुल प्रेम का झरना बहता, परमानंद न सो कहि जाई। आनन्द के सागर रघुराई
हैं असीम कण-कण में व्यापक, जो जाना सो मुक्ति पाई। आनन्द के सागर रघुराई।