भगवान् राम के स्वरूप का ध्यान


हे नाथ ! हमारे आचरणों की ओर देखें तो कोई उपाय नहीं दीखता। आपका जो विरद है उसी के आधार पर हम लोग आशा करते हैं। भरतजी ने इसी आधार पर आशा की थी।
मोरे जियँ भरोस दृढ सोई  मिलिहहिं राम सगुन सुभ होई
मेरे मन में वही दृढ भरोसा है कि आप दीनों के बन्धु हैं, आपका स्वभाव बड़ा ही कोमल है  आपके स्वभाव को देखकर हमें विश्वास होता है कि आप अवश्य आयेंगे  वहाँ तो प्रत्यक्ष मिलने की बात थी  हमें समझना चाहिये भगवान् ध्यान में आयेंगे  हम बार-बार उनका आह्वान करें  हे नाथ ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! इस प्रकार उन्हें पुकारें
एक बात मैं पूँछऊँ तोही  कारन कवन बिसारेहु मोही
हे नाथ ! मैं आपसे एक ही बात पूछता हूँ, अपने किस कारण से मुझे बिसार दिया ? आप बिसार देंगे तो हमारा काम कैसे चलेगा  हे नाथ ! मेरे-जैसे तो बहुत हैं, किन्तु आपके-जैसे तो आप ही हैं  हे नाथ ! हे गोविन्द ! हे हरि !
आनन्दमय, पूर्ण आनन्द, घन आनन्द, आनन्द ही आनन्द
हे नाथ ! मैं सब साधनों से हीन हूँ, किन्तु आपने कृपा करके दर्शन दिये
भगवान् आकाश में विराजमान हो रहे हैं  नेत्रों को बंद करके देखने से भगवान् मानो प्रत्यक्ष रूप से आकाश में दीख रहे हैं  सब जगह महान प्रकाश, बड़ी भारी शान्ति छायी हुई है महान ज्ञान की दीप्ति जिससे बारम्बार रोमांच हो रहा है  भगवान् आकाश में खड़े हैं  मानो वैकुण्ठधाम से आये हैं  आकाश में जैसे चन्द्रमा विराजमान होता है  उनकी अवस्था सोलह वर्ष के राजकुमार-जैसी है  भगवान् जब जनकपुरी में पधारे थे उस समय उनका श्रृंगार स्वरूप था उनका वही स्वरूप यहाँ विराजमान हो रहा है



युवावस्था प्रतीत होती है बाल और युवा के बीच की अवस्था है  स्वरूप बहुत ही सुन्दर है  जिसे देखकर रति और कामदेव भी मोहित हो जाते हैं  आप सुन्दरता के केन्द्र हैं  आप के रूप और लावण्य को देखकर पशु और पक्षी भी मोहित हो जाते हैं | आपका अद्भुत स्वरूप है  आपकी लम्बाई छ: फूट चौड़ाई पौने दो फुट होगी | आप आकाश में खड़े हुए प्रत्यक्ष की तरफ दीख रहे हैं  चरणों का तलवा अलौकिक है  शरीर का रंग न अत्यन्त श्याम है और न अत्यन्त नीलवर्ण ही है  श्यामवर्ण में हरियाली मिश्रित आपका श्यामवर्ण है  आपका स्वरूप मोहित करने वाला है आपका विग्रह बहुत ही मधुर है, सुन्दर है  ऐसा कौन है जो ऐसे दर्शन करके मोहित नहीं हो जायगा  तलवे में गुलाबी रंग की झलक है  हरेक प्रकार के चिन्ह हैं | जैसे ध्वजा, पताका, उधर्वरेखा आदि | शरीर में अद्भुत चमक है | जैसे बालब्रह्मचारी का मस्तक चमकता है, इस तरह की अलौकिक चमक है | बड़ी भारी शान्ति है | चन्द्रमा जिस प्रकार अमृत की वर्षा करता है | आपसे भी उसी तरह की प्रतीति होती है | आपके चरण बड़े कोमल हैं, स्पर्श से रोमांच होने लगता है | मानो मैं स्पर्श के द्वारा दिव्य रस का पान कर रहा हूँ, ऐसे ही अंगुलियाँ बहुत सुन्दर हैं, नाख़ून ऐसे चमक रहे हैं मानो हीरे के टुकड़े हों | आपके घुटने, जंघा भी चमक रहे हैं | आप पीताम्बर पहने हैं, पीताम्बर चमकीला है, आपके चरण उसमे से दीख रहे हैं | पीताम्बर की कोर जब हवा से हिलती है तो बिजली की तरह चमकती है | आपकी कमर पतली है | करधनी पहने हैं | नाभि गंभीर है | पेट पर तीन रेखाएँ पडती हैं
दो भुजाएँ हैं, जिनमे दाहिने हाथ में बाण है, बायें हाथ में धनुष की डोरी है, कमर पर तुणीर बाँधें हैं, जिसमे बाण भरे हैं | गले में यज्ञोपवीत धारण कर रखा है दुपट्टा ओढ़ रखा है  गले में अनेक प्रकार की मालाएँ धारण कर रखी हैं चन्द्रहार, स्वर्ण की माला पहन रखी है  आपकी दोनों भुजाएँ लम्बी हैं  दोनों हाथों में अँगूठी पहने हैं, कड़े पहने हैं  आपकी भुजाएँ ऊपर से मोटी नीचे से पतली बहुत ही कोमल है एवं बहुत चिकनी और सुन्दर है  आपकी छाती चौड़ी है | ह्रदय में भृगुलता का चिन्ह है | कंधा पुष्ट है | ग्रीवा शंख की तरह लम्बी है | ओष्ठ और अधर लालमणि की तरह चमक रहे हैं | वाणी बहुत ही मधुर है, कोमल है, स्वर गम्भीर है | आप जब बोलते हैं तो मनुष्य मोहित हो जाते हैं | आपकी तरफ आकर्षित हो जाते हैं | आप जब हँसते हैं तो दाँतों की पंक्तियों का थोड़ा हिस्सा दीखता है | आपकी नासिका सुन्दर है, कपोल चमक रहे हैं | कानों में मकराकृत कुण्डल हैं, उनकी आभा कपोलों पर पडती है | नेत्र कमल के पते की तरह विशाल हैं | नेत्र खिले हुए हैं | बड़ा भारी प्रकाश है | जिसके द्वारा गुण विकसित हो रहे हैं | आपके गुण हमारे पर फौवारे की तरह पड रहे हैं | आपके नेत्रों की वृतियों के द्वारा समता, शान्ति आदि गुण हमारे में प्रविष्ट हो रहे हैं | आपके नेत्रों की वृतियाँ बड़ी ही शान्तिमय हैं | हम पर ऐसा प्रभाव पड़ता है कि आपके गुणों का समूह हमारे रोम-रोम में प्रविष्ट हो गया, हम शुद्ध, निर्दोष हो गये हैं | जहाँ प्रकाश होता है, वहाँ अन्धकार नहीं रह सकता, सारे पाप-दोष हट गये हैं | हमारा शरीर भी दिव्य हो गया है | आपके नेत्रों में समता विराजमान है |
आप समता ही नहीं दया के भी सागर हैं | आप हम सबको प्रेम से देखते हैं | आप सारे भूतों के सुहृद हैं | आपका ज्ञान अलौकिक है | आप ज्ञान के भण्डार हैं |

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