भगवन श्री राम ने हनुमान जी को क्या अंतिम ज्ञान और आध्यात्मिक जीवन के उपदेश दिए थे ?
स्कन्द पुराण में एक अति सारगर्भित अति लाभदायक ज्ञान उपदेश है जिसे श्री राम ने अपने परम भक्त, मित्र एवं शिष्य श्री हनुमान जी को अंतिम भेंट में दिया ।
श्री राम चंद्र कहते है :
हे मेरे प्रिय वायुनंदन
इस भौतिक संसार में जो जन्म ले चुके हैं, जो जन्म लेने वाले हैं; जो शरीर त्याग चुके हैं, उन सबको तथा अपने और पराये सभी कार्यों को मै भलीभांति जानता हूँ.।
जीव अपने कर्म के अनुसार अकेला ही जन्म लेता है और अकेला ही मृत्यु को प्राप्त होता है. अतः तुम तत्वज्ञान में ही सदा स्थिर रहना।
आत्मा स्वयं प्रकाश है तुम सदा आत्मा के स्वरुप का ही चिंतन करो देह आदि में ममत्व और ममता त्याग दो सदा धर्म का आश्रय ही लेना साधु पुरुषों से सत्संग करो।
सम्पूर्ण इन्द्रियों का दमन करो। .दूसरों के दोष की चर्चा से दूर रहना। शिव और विष्णु देवों की सदा पूजा करना। सर्वदा सत्य शब्द कहो.। आत्मा और परमात्मा की एकता और एकत्व का अनुभव करो, राग और द्वेष से बंधकर जीव धर्म और अधर्म के वशीभूत होते हैं.। उन्ही के अनुसार देव, तिर्यक, मनुष्य, अदि योनियों में व् नरकों में पड़े रहते हैं.।
कपि। अब आगे सुनो इस संसार की बात।
यह संसार एक गहन गड्डे के समान है, इसमें कुछ भी सुख नहीं यहाँ पहले तो जीव का जन्म होता है, तत्पश्चात उसकी बाल्य अवस्था रहती है, उसके उपरांत वह जवान होता है और उसके पश्चात वह वृद्धावस्था में आता है. तदनन्तर मृत्यु को प्राप्त होता है, और मृत्यु पश्चात पुनः जन्म का कष्ट भोगता है।
इस प्रकार ज्ञान के अभाव से ही मनुष्य दुःख पाता है। अज्ञान की निवृति हो जाने पर उसे उत्तम सुख की प्राप्ति होती है. ।
अज्ञान की निवृति ज्ञान से ही होती है. ज्ञान परब्रह्म परमात्मा का स्वरुप है।
वेद ऋचा वाक्य के श्रवण और मनन से जो ज्ञान होता है वह विरक्त पुरुष को ही होता है.।
श्रेष्ठ अधिकारी को गुरुदेव की कृपा से भी ज्ञान होता है, यह सत्य है.।
संग्रह करना और संग्रह का अंत विनाश है.।
अधिक ऊँचे चढ़ने का अंत नीचे गिरना ही है.।
संयोग [ मिलन ] का अंत वियोग और जीवन का अंत मरण है।
सर्वे क्षयान्ता निच्या पत्तनांता समुच्छ्याः।
संयोगा विप्रयोगन्ता मरणान्तं च जीवितं।।
जैसे सुदृढ़ स्तम्भों [खम्बो] वाला गृह सदीर्घकाल बाद जीर्ण हो जाने पर नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार मनुष्य जरा जीर्ण हो कर मृत्यु के अधीन हो नष्ट हो जाता है.
जैसे समुद्र में बहते हुए दो काठ एक दूसरे से मिलकर फिर से विलग हो जाते हैं, उसी प्रकार कालयोग से मनुष्यों का एक दूसरे के साथ संयोग व् वियोग होता आया है और होता रहेगा।
इसी प्रकार स्त्री, पुत्र, भाई, क्षेत्र और धन – यह सब कभी कुछ काल के लिए एकत्र होते और फिर अन्यत्र चले जाते हैं. जीवों के शरीर जिस प्रकार उत्पन्न होते और फिर नष्ट हो जाते हैं. उसी प्रकार आत्मा का जन्म और मरण नहीं होता.।
अतः तुम शोकरहित अद्वैत ज्ञानमय सत्स्वरूप निर्मल परब्रह्म परमात्मा का दिन रात चिंतन करना।
परम वीर सुह्रदय हनुमान जी पृथ्वी पर आज भी साधना रत हैं और जहाँ भी जब भी कोई सरल सच्चे निर्मल हृदय से उन्हें या श्री राम को पुकारता है हनुमान जी उनकी धर्मज और उचित याचिका पर कुछ न कुछ करते हैं.। उनके भक्त कभी भी निराशा में नहीं रहते।