हमेशा राघव जी से शिकायत करते कि हमने तो बड़ा यश सुनकर आपको अपनी बहन दी थी पर आपने हमारी सुकुमारी लाडली को बहुत कष्ट दिया..
हमने तो लाडली को धरती पे पाँव भी नहीं रखने दिए और आपने उन्हें वन की पथरीली-काटों वाली ज़मीन पे चला दिया..
हमने धूप की एक किरण भी उन पर नहीं पड़ने दी और आपने अग्नि परीक्षा करवा दी..
इतने पर भी आपको सन्तोष नहीं हुआ आपने हमारी बहन को आश्रम भेज दिया..
हमने तो अपनी समझ से अच्छे घर में ब्याहा था पर..
( संतों के भाव उन्हीं के होते हैं, उन्हें जानने को हमें खुद संत होना होगा, या उन भावों को जानकर हम स्वयं संत हो जायेंगे )
संत जी यही सोच कर हमेशा आँखों से आँसू बहाया करते थे..
एक बार की बात है कि ‘विवाह-पंचमी’ आयी.
आज संत जी ने सोचा कि राघव कैसे भी हैं, हैं तो अपने दामाद ही..
उनके लिये रच के माला बनाई, लेकर कनक-बिहारी जू के पास पहुँचे..
पुजारी जी को दे कर बोले इन्हें माला पहना दो..
उत्सव के बीच प्रभु का अद्भुत श्रृंगार था, सो उस माला को किनारे रख दिया गया..
अब संत जी को बहुत कष्ट हुआ, वो मंदिर के पीछे जाकर फूट-फूट कर रोने लगे कि मेरी माला तक नहीं पहनी, इनको इतना घमंड।
इन्हें अपनी पत्नी के भाई का कोई मान नहीं..
इतना रोये इतना रोये कि अब श्री सीताराम जी से नहीं रहा गया..
वो दोनों वहाँ प्रगट हो गए..
बोलिए श्री युगल सरकार की जय !..
राघव ने वही माला पहन रखी थी और श्री किशोरी जी ने संत जी को राखी बांधी..
संत जी प्रेम में मग्न थे, कुछ बोल न सके..
आज जीवन का फल मिल चुका था, श्री सीताराम जी में ही लीन हो गए।
Always complaining to Raghav ji that we had given you our sister after hearing great fame, but you gave a lot of trouble to our sweet lady..
We didn’t even allow our beloved to keep our feet on the earth, and you made them walk on the rocky ravines of the forest.
We didn’t let a ray of sunshine fall on them and you got the ordeal done.
Even after this you were not satisfied, you sent our sister to the ashram.. We had married in a better house than our understanding but..
(The feelings of saints are theirs, to know them we have to be saints ourselves, or knowing those feelings we ourselves will become saints)
Sant ji used to always shed tears from his eyes thinking of this..
Once upon a time ‘Vivah-Panchami’ came. Today Sant ji thought that no matter how Raghav is, he is his son-in-law.. Made a garland for them, took it to Kanak-Bihari Zoo.
After giving it to the priest, he said, garland him.. There was a wonderful adornment of the Lord in the midst of the celebration, so that garland was kept aside.
Now the saint suffered a lot, he went behind the temple and started crying bitterly that he did not even wear my garland, he was so proud. He has no respect for his wife’s brother.
Cried so much that now Shri Sitaram ji is no more..
Both of them appeared there.
Say jai to Shri Couple Sarkar!
Raghav was wearing the same garland and Shri Kishori ji tied a rakhi to the saint.
Sant ji was engrossed in love, could not speak anything. Today the fruit of life was received, Shri Sitaram ji got absorbed in it.