बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक प्रसंग.
गोस्वामी तुलसीदास जी ने मानस में चार ऐसी स्त्रियों का अलग अलग स्थान पर वर्णन किया है।
जिनमे 1 समानता है कि यह चारो 1 ही राशि की हैं।
और चारो अलग अलग प्रकार से श्री राम जी को पाना (जानना) चाहती हैं। उनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं…
1. सीता जी (प्रेम से)
2. देवी सती (परीक्षा से)
3. शूर्पनखा (समीक्षा से)
4. शबरी. (प्रतीक्षा से)
तो क्रमानुसार प्रारंभ करते हैं..
1. सीता जी
सीता जी स्वयं देवी लक्ष्मी का स्वरूप है। उनका श्री राम के चरण में अनन्य प्रेम है। सीता जी को प्रभु राम का दर्शन पुष्प वाटिका में प्रथम बार होता है।
गोस्वामी जी लिखते हैं…
लता ओट तब सखिन्ह लखाए।
श्यामल गौर किशोर सुहाए।।
राम के दर्शन पाकर सीता जी बहुत प्रसन्न होती है और अपने गुरु श्री नारदजी के वचन को स्मरण करती हैं। वह राम जी के इस मनोहर रूप को अपने नेत्रों के मार्ग से हृदय में धारण कर लेती हैं।
लोचन मग रामहिं उर आनी।
दीन्हेहुँ पलक कपाट सयानीं।।
गोस्वामी जी कहते हैं सीता जी अपने पुरातन प्रेम को किसी के भी समक्ष प्रकट नहीं करती हैं जो शाश्वत है।
प्रीति पुरातन लखइ न कोई।
पूरे श्रद्धा और समर्पण भाव से राम को वर रूप में पाने के गौरी और गणेश जी से विनती करती हैं।
गौरी माता प्रसन्न होकर वर देती हैं..गोस्वामी जी लिखते हैं…
मन जाहि राचेउ मिलिहि सोइ बर सहज सुन्दर साँवरो।
जेहिं के जेहिं पर सत्य सनेहू।
सो तेहिं मिलइ न कछु सन्देहू।।
यह कथा सर्व विदित है कि पवित्र प्रेम और समर्पण भाव से सीता जी राम को वर रूप में प्राप्त करती हैं।
2. देवी सती
देवी सती प्रभु राम को परिक्षा से प्राप्त करना चाहती हैं।
शिव जी कहते हैं देवी ये जो राम जी हैं यही साक्षात नारायण हैं मेरे इष्ट देव हैं। पर सती जी को भरोसा नहीं होता है और वह संशय और मोह से ग्रसित होकर शिव जी से प्रश्न करती हैं..
जौ नृप तनय त ब्रह्म किमि, नारि विरह मति भोरि।
अगर वो राजकुमार हैं तो ब्रह्म कैसे हुए क्योंकि ब्रह्म तो अजन्मा है।
फिर वें तो स्त्री के लिए रो रहे हैं एक सांसारिक मानव की तरह।
शिव जी समझ गए इनको समझाना असंभव है…
मोरे कहे न संशय जाहीं।
बिधि विपरीत भलाई नाहीं।।
शिव जी बोले देवी आप परीक्षण कर के देख लीजिए।
जो तुम्हरे मन अति संदेह।
तौ किन जाइ परीक्षा लेहू।।
4 लोगों कीकभी परीक्षा
1. संत की 2 सदग्रंथ की
3. मंत्र की 4 संत
और जो इनकी परीक्षसे ब भोग पड़ता है।
ये परिक्षा का नहीं श्रद्धा और विस्वास का विषय है।
परिणाम स्वरूप सती जी सीता जी रूप बनाकर राम के पास गयी पर राम जी नें उन्हें पहचान लिया।
और वो अज्ञानी की भांति लज्जित होकर शिव जी के पास आयी।
शिव जी ने ध्यान में जाकर देखा मेरी सती ने मेरी माता का रूप बनाया अब अगर मैं इनसे प्रेम रखता हूँ तो मेरा भक्ति पथ खण्डित हो जाएगा। अतः मैं इनका परित्याग कर देता हूं। मन में यह संकल्प कर लिए।
कथा सब जानते हैं किस प्रकार देवी सती शिव के परित्याग कर देने से दुखी होकर अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपनी आहुति देकर अपना शरीर त्याग किया।
सारांश ये है कि अपने ईश्वर पर कभी संदेह नहीं करना चाहिए।
3.शूर्पनखा.
शूर्पणखा श्री राम जी को समानता से प्राप्त करना चाहती है वह स्वयं को राम जी के बराबर समझती है। उसके स्वरूप का वर्णन गोस्वामी जी लिखते हैं …
रुचिर रूप धरि प्रभु पहिं जाई।
बोली बचन बहुत मुसुकाई।।
तुम सम पुरुष न मों सम नारी।
यह संजोग बिधि लिखा बिचारी।।
ईश्वर से समानता करने का दंड लक्ष्मण जी ने उसकी नाक और कान को काट कर दिया।
लछिमन अति लाँघव सो नाक कान बिनु कीन्ह।
सारांश ये है कि कभी स्वयं को ईश्वर के बराबर नहीं समझना चाहिए।
4.माता शबरी
भक्ति और तपस्या की मूर्ति। यह भी राम को पाना चाहती है पर प्रतीक्षा से। वृद्धावस्था में कहीं जा नहीं सकती है। पर विश्वास है कि राम जी जरूर आयेंगे। भक्त का भगवान पर विश्वास ही उसे प्रभु से साक्षात्कार करने का सौभाग्य देता है…
बिनु विश्वास भगति नहिं,
तेहिं बिनु द्रवहिं न राम।
प्रभु माता शबरी से मिलने उन्हें ढूंढते हुए आते हैं। भक्त के विस्वास को सुदृढ़ बनाने और प्रतिक्षा का अंत करने प्रभु नंगे पाँव ही चले आए। शबरी माता ने राम को देखकर नेत्र मे जल भरकर कहा हे प्रभु…
केहिं बिधि अस्तुति करउँ तुम्हारी।
अधम जाति मैं जड़ मति नारी।।
अधम ते अधम अधम मैं नारी।
तिन्ह महँ मैं मतिमन्द अघारी ।।
कितना समर्पण भाव है शबरी का।
जहां शूर्पनखा अपने गुणों की बखान करती है खुद को राम के बराबर समझती है वहीं शबरी स्वयम को पापी और अधम बताती है।
प्रभु प्रसन्न होकर बोले हे माता मैं सिर्फ भक्ति के नाते को ही सर्वोपरि मानता हूँ।
कहहिं राम सुनु भामिनि बाता।
मानहुँ एक भगति कर नाता।।
राम जी ने शबरी को भामिनि (सुन्दर स्त्री) कहा जब कि शबरी वृद्ध और कुरूप भी थी।
वहीं शूर्पनखा सुन्दर रूप बनाकर आयी पर राम ने उसे देखा तक नहीं।
अगर ईश्वर पर दृढ़ विश्वास है तो कितनी भी प्रतीक्षा क्यू ना करनी पड़े प्रभु कृपा अवश्य करते हैं।
Very interesting and informative incident. Goswami Tulsidas ji has described four such women at different places in Manas. One similarity in which is that all four belong to the same zodiac sign. And all four want to know Shri Ram Ji in different ways. Their names respectively are as follows… 1. Sita ji (with love) 2. Goddess Sati (by examination) 3. Shurpanakha (from review) 4. Shabari. (by waiting) So let’s start in sequence.. 1. Sita ji Sita ji herself is the form of Goddess Lakshmi. He has immense love for the feet of Shri Ram. Sita ji sees Lord Ram for the first time in the flower garden. Goswami ji writes… Lata Ot then Sakhinh Lakha. Shyamal Gaur Kishore Suhaay. Sita ji is very happy after seeing Ram and remembers the words of her Guru Shri Naradji. She imbibes this beautiful form of Ram ji in her heart through her eyes. Lochan mag ramhin ur aani. Dinhehun palak kapat sayani. Goswami ji says that Sita ji does not reveal her ancient love to anyone which is eternal. No one has written ancient love. With full devotion and dedication, she requests Gauri and Ganesh ji to get Ram as her groom. Gauri Mata is pleased and gives the groom… Goswami ji writes… My mind is going to meet you and I am sleeping with comfortable and beautiful complexion. I will listen to the truth wherever I go. So if I meet you there will be no doubt. This story is well known that Sita ji accepts Ram as her groom out of pure love and devotion. 2. Goddess Sati Goddess Sati wants to get Lord Ram through Pariksha. Shiv ji says, Devi, this Ram ji is the real Narayan, he is my favorite god. But Sati ji does not believe and due to doubt and fascination, she asks questions to Shiv ji. Jau Nrip Tanay Ta Brahma Kimi, Nari Virah Mati Bhori. If he is a prince then how can he become Brahma because Brahma is unborn. Then he is crying for the woman like a worldly human being. Shiv ji understood that it is impossible to explain to him… No matter what I say, there is no doubt. There is no good contrary to the law. Shiv ji said, Goddess, please test it. Which is very doubtful in your mind. So where should I go and take the exam?
ever test of 4 people 1. Saint’s 2 scriptures 3. Mantra of 4 Saints And the suffering that comes from their trials. This is not a matter of examination but of faith and trust. As a result, Sati ji went to Ram in the form of Sita ji but Ram ji recognized her. And she came to Lord Shiva feeling ashamed like an ignorant person.
Shiv ji went into meditation and saw that my Sati made me my mother, now if I love her, my path of devotion will be ruined. Therefore I abandon them. Made this resolution in mind. Everyone knows the story of how Goddess Sati, saddened by Shiva’s abandonment, sacrificed her body by offering herself in the yagya of her father Daksh. The summary is that you should never doubt your God. 3.Shurpanakha. Shurpanakha wants to attain Shri Ram ji on equal basis, she considers herself equal to Ram ji. Goswami ji writes description of his form… The Lord was dressed in an interesting form. Said Bachan and smiled a lot. Neither you are a man nor I am a woman. Poor woman wrote this conjugation method. As punishment for equating him with God, Lakshman ji cut off his nose and ears. Lachiman is very long so nose and ears are not visible. The summary is that one should never consider oneself equal to God. 4.Mata Shabari The embodiment of devotion and penance. She also wants to get Ram but with waiting. Can’t go anywhere in old age. But I believe that Ram ji will definitely come. The devotee’s faith in God gives him the privilege of encountering the Lord… There is no devotion without faith, There is no liquid but Ram. Prabhu comes to meet Mata Shabari in search of her. To strengthen the faith of the devotee and to end the wait, the Lord came barefoot. Shabari Mata looked at Ram and said with tears in her eyes, O Lord… In what way should I praise you? Infertile woman in the lower caste. I am the lowest of the low, the lowest of the low, women. In those three months, I am a restless aghari. What a dedication Shabari has. While Shurpanakha praises her virtues and considers herself equal to Ram, Shabari calls herself a sinner and inferior. The Lord was pleased and said, O Mother, I consider only the act of devotion as supreme. Wherein Ram, listen Bhamini, talk. I agree to do a devotional service. Ram ji called Shabari Bhamini (beautiful woman) even though Shabari was old and ugly. Whereas Shurpanakha came in a beautiful form but Ram did not even see her. If you have strong faith in God then no matter how long you have to wait, God definitely blesses you.