जहाँ स्वयं भगवान अवतार लेकर आएं उससे बड़ा तीर्थ और कौन हो सकता है।
एक बार लक्ष्मणजी तीर्थ यात्रा पर जाने के लिए श्रीराम जी से प्रार्थना करने लगे ।
श्रीराम ने मुसकराते हुए कहा-‘भैया ! यदि आपकी तीर्थ यात्रा जाने की इच्छा है तो जाओ परन्तु अयोध्या की व्यवस्था करके जाइए ।’
लक्ष्मणजी ने पूछा-‘आप मुस्करा क्यों रहे हैं ?’
श्रीरामजी ने कहा-‘लक्ष्मण ! समय आने पर तुम स्वयं ही समझ जाओगे ।’
श्रीराम की आज्ञा प्राप्त करके लक्ष्मणजी तीर्थ यात्रा जाने की तैयारी करने लगे।उनके साथ मन्त्री,मित्र,सेवक व अयोध्या के निवासी भी जाने की तैयारी में लग गए।गुरु वशिष्ठ जी ने यात्रा का मुहुर्त श्रावण के शुक्ल पक्ष की पंचमी का निकाला।अयोध्या की व्यवस्था व यात्रा की तैयारी करते-करते लक्ष्मण जी को रात्रि के दो बज गए।लक्ष्मणजी ने सोचा-‘आज प्रात: पांच बजे से यात्रा करनी है,अब क्या विश्राम करुंगा।अब ब्राह्ममुहुर्त होने वाला है।अत: पहले जाकर सरयूजी में स्नान कर लूं ।’यह सोचकर वे सरयू के किनारे आए।वहां बहुत प्रकाश हो रहा था।घाट पर हजारों राजा-महाराजा स्नान कर रहे थे।लक्ष्मणजी के सामने ही वे स्नान करके आकाश मार्ग से चले गए।लक्ष्मणजी सोचने लगे,आज कोई विशेष पर्व या उत्सव नहीं है फिर ब्राह्मवेला में यहां इतनी भीड़ क्यों है ?ऐसा सोचते हुए वे महिलाओं के घाट के पास गए तो वहां भी हजारों माताएं स्नान कर रही थीं । यह सब देखकर लक्ष्मणजी महल में लौट आए ।
श्रीरामजी ने पूछा-‘लक्ष्मण !आज तुम्हारा तीर्थ यात्रा पर जाने का मुहुर्त था,परन्तु तुमने तो अभी तक स्नान भी नहीं किया है ?’
लक्ष्मणजी ने घाट पर जो कुछ आश्चर्यजनक देखा,उसका सारा हाल श्रीराम को सुना दिया ।
श्रीराम ने कहा-‘आपने उन लोगों से पूछा नहीं कि वे कौन है और कहां से पधारे हैं ?’
लक्ष्मणजी ने कहा-‘यह तो बहुत बड़ी भूल हो गयी।कल मैं फिर सरयू-स्नान के लिए जाऊंगा और सबसे उनका परिचय पूछूंगा।’दूसरे दिन लक्ष्मणजी फिर ब्राह्मवेला में सरयू के घाट पर गए।वहां कल की तरह हजारों लोग प्रसन्नतापूर्वक स्नान कर रहे थे।लक्ष्मणजी ने हाथ जोड़कर सबसे उनका परिचय पूछा।
वहां उपस्थित राजाओं ने कहा-‘हम लोग काशी,गया,जगन्नाथ, बद्रीनाथ,केदारनाथ,रामेश्वर,द्वारकापुरी आदि समस्त तीर्थ देवताओं का रूप धारण करके यहां नित्य अयोध्याजी का दर्शन करने व सरयू का स्नान करने आते हैं।’
इसके बाद लक्ष्मणजी ने सभी माताओं को प्रणाम करके उनसे उनका परिचय पूछा।
माताओं ने कहा-‘हम गंगा, यमुना, सरस्वती, ताप्ती, तुंगभद्रा, गण्डक, कोसी, कृष्णा, नर्मदा आदि भारत की हजारों पवित्र नदियां देवियों के रूप में नित्य श्रीराम की पुरी का दर्शन करने और सरयूजी में स्नान करने आते हैं ।’
उसी समय आकाशमार्ग से एक विकराल, काला पुरुष आया और सरयू में जा गिरा।स्नान करके जब वह बाहर निकला तो गौरवर्ण, हाथ में शंख, चक्र, गदा आदि लिए हुए था ।
लक्ष्मणजी ने उनसे पूछा-‘आप कौन हैं ?
अभी इतने काले थे और सरयू में गोता लगाते ही गौरवर्ण के हो गये ।’
उन्होंने कहा-‘मैं तीर्थराज प्रयाग हूं
नित्य हजारों लोग स्नान करके मुझमें अपने पाप छोड़ जाते हैं, पाप का रंग काला होता है इसलिए मैं काला हो जाता हूँ । सरयू में स्नान करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं इसलिए मैं गौरवर्ण का हो गया हूँ ।’
महल में आकर इस आश्चर्यमयी घटना को लक्ष्मणजी ने श्रीराम को बताया।
श्रीराम ने कहा-‘लक्ष्मण ! समस्त तीर्थ अयोध्या के दर्शन व सरयूजी में स्नान के लिए आते हैं और आप अयोध्या छोड़कर अन्य तीर्थों में जा रहे थे।आपने मुझसे मुस्कुराने का कारण पूछा था तब मैंने कहा था कि उचित समय आने पर आप स्वयं जान जाएंगे। अब आप स्वयं निर्णय कर लो कि तीर्थ यात्रा पर जाना है या नहीं ।’
लक्ष्मणजी श्रीराम के चरणों में गिर कर बोले-‘अब यह दास कहीं किसी तीर्थ में नहीं जाएगा।’स्कन्दपुराण के द्वितीय वैष्णव खण्ड में अयोध्या का माहात्म्य वर्णित करते हुए कहा गया है-पुष्प नक्षत्र युक्त रामनवमी के दिन व्रत धारण करके भगवान श्रीराम के जन्मस्थान का दर्शन करने से प्रतिदिन सहस्त्रों कपिला गायों के दान का फल मिलता है ।
Who can be a bigger pilgrimage than where God Himself brings an avatar.
Once Lakshmanji started praying to Shri Ram to go on pilgrimage.
Shriram smilingly said- ‘Brother! If you want to go on pilgrimage, then go but make arrangements for Ayodhya.
Lakshmanji asked- ‘Why are you smiling?’
Shri Ram said – ‘Lakshman! You yourself will understand when the time comes.’
After getting the permission of Shri Ram, Lakshmanji started preparing to go for pilgrimage. Ministers, friends, servants and residents of Ayodhya also started preparing to go with him. Guru Vashist ji took out the Muhurta of the journey on the fifth day of Shukla Paksha of Shravan. Ayodhya Lakshman ji got two o’clock in the night while arranging and preparing for the journey. Thinking of this, he came to the banks of Saryu. There was a lot of light. Thousands of kings and maharajas were taking bath at the ghat. They took a bath in front of Laxmanji and went through the sky. Laxmanji started thinking, today someone There is no special festival or festival, then why is there so much crowd here in Brahmavela? Thinking this, when he went to the women’s ghat, thousands of mothers were taking bath there too. Seeing all this, Lakshmanji returned to the palace.
Shri Ramji asked- ‘Lakshman! Today was your auspicious time to go on pilgrimage, but you have not even taken a bath yet?’
Lakshmanji narrated the whole story to Shri Ram about what he saw at the ghat.
Shri Ram said- ‘You have not asked those people who they are and from where they have come?’
Lakshmanji said – ‘This has become a big mistake. Tomorrow I will go again for Saryu-bath and will ask everyone about his identity.’ On the second day Lakshmanji again went to the ghat of Sarayu in Brahmavela. Thousands of people took a happy bath there like yesterday. Laxmanji asked everyone to introduce him with folded hands.
The kings present there said – ‘We come here daily to visit Ayodhyaji and take bath in Sarayu, taking the form of all the pilgrimage deities like Kashi, Gaya, Jagannath, Badrinath, Kedarnath, Rameshwar, Dwarkapuri etc.
After this Lakshmanji saluted all the mothers and asked them their introduction.
Mothers said- ‘We come as goddesses of thousands of holy rivers of India like Ganga, Yamuna, Saraswati, Tapti, Tungabhadra, Gandak, Kosi, Krishna, Narmada etc. to see the puri of Shri Ram and take bath in Saryuji.
At the same time, a formidable, black man came from the sky and fell into Saryu. When he came out after taking a bath, he was proud, holding conch shell, chakra, mace etc. in his hand.
Lakshmanji asked him- ‘Who are you?
They were so dark now and they became proud as soon as they dived in Saryu.
He said- ‘I am Tirtharaj Prayag’
Thousands of people bathe daily and leave their sins in me, the color of sin is black, so I become black. Bathing in Sarayu destroys all sins, so I have become proud.’
Coming to the palace, Lakshmanji told this amazing incident to Shri Ram. Shri Ram said – ‘Lakshman! All the pilgrimages come to Ayodhya for darshan and bath in Saryuji and you were leaving Ayodhya and going to other pilgrimages. Now decide for yourself whether to go on pilgrimage or not. Lakshmanji fell at the feet of Shri Ram and said – ‘Now this slave will not go to any pilgrimage.’ In the second Vaishnava section of Skanda Purana, describing the greatness of Ayodhya, it has been said – fasting on the day of Ram Navami containing flower constellations, the birthplace of Lord Shri Ram. One gets the fruits of donating thousands of Kapila cows every day by having darshan.