देवताओ ओर दैत्यो ने मिल कर जो सागर मंथन किया था और उस मे से जो सामग्री निकली थी उस का बंटवारा उज्जैन में ही किया गया था ओर जिस स्थान पर किया गया उसे रत्नसागर तीर्थ के नाम से जाना जाता है क्रमशः ये सामग्री निकली थी –
1.विष 2. बहूत सा धन (रत्न मोती) 3.माता लक्ष्मी 4.धनुष 5.मणि 6.शंख 7.कामधेनु गाय
8.घोडा 9.हाथी 10.मदिरा
11.कल्प वृक्ष 12.अप्सराये
13 भगवान चंद्रमा .
14 भगवान धनवंतरि अपने हाथो मे अमृत के कलश को लेकर निकले।
जब भगवान शिव कि तपस्या कामदेव ने भंग कि तब भगवान कि द्रष्टि मात्र से कामदेव भस्म हो गये तब उन कि पत्नी रति ने भगवान शिव से कामदेव को जीवित करने कि प्रार्थना कि तब भगवान ने उन्हे क्षीर स्नान ओर शिवलिंग के पूजा के लिए कहा तब रति देवी ने वैसा ही किया जिस से कि उन्हे कामदेव पुनः पति रूप मे मिले जिस स्थान पर रति ने प्रतीदिन क्षिप्रा मे स्नान कर जिस शिवलिंग का पूजन किया वह उज्जैन मे आज भी मनकामनेश्वर मंदिर से जाना जाता है।
विश्व में सात सागर का अस्तित्व है।संभव नही है कि सामान्य व्यक्ति सातो सागर मे स्नान कर सके इस लिए प्राचीन काल मे ऋषियो ने उज्जैन में ही सात सागरो की स्थापना की जो कि आज भी उज्जैन मे विध्यमान है
1.रूद्र सागर 2. विष्णु सागर
- क्षीर सागर 4. पुरूषोत्तम सागर 5. गोवर्धन सागर 6. रत्नाकर सागर 7. पुष्कर सागर
जिन में कि स्नान करने से विश्व के सातों सागरो मे स्नान करने का फल प्राप्ति होता है।
उज्जैन में आज भी राजतंत्र ही है
प्राचीन काल में कोई भी राजा जो उज्जैन का शासक हुआ करता था वह अपना महल उज्जैन कि सीमा के बाहर ही बनवाता था यदि कोई राजा उज्जैन में सो जाता तो वह मर जाता था क्यो कि एक राज्य मे दो राजा कैसे संभव है यहा के राजा भगवान महाकाल माने जाते है ओर रानी माता हरसिद्धि (जो 51 शक्ति पीठ मे से एक है ) यहाँ के सेनापति कालभैरव (प्रत्यक्ष रूप से मदिरा का पान करते है)
जब जब भगवान महाकाल पालकी मे सवार हो कर निकलते है तब तब उज्जैन के निवासी भगवान महाकाल का स्वागत उसी प्रकार करते है जैसे महाराजा का।
माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप मे पाने के लिए एक वट वृक्ष का रोपण कर उस के नीचे बैठ कर घोर तपस्या की जिस से कि भगवान शिव उन्हे पति रूप मे प्राप्त हुए जिस वृक्ष के नीचे तपस्या की थी उसे एक समय मुगल हमले मे काट दिया गया था पर वह एक ही रात्री मे पुनः हरा भरा हो गया तब मुगल सेनिको ने उसे फिर काट कर उस के ऊपर विशालकाय लोहे के तवे जड़वा दिये पर पुनः एक ही रात्री मे वह वृक्ष तवो को फाड कर पूर्व स्वरूप मे आ गया तब मुगल सेना डर कर वहाँ से भाग खड़ी हूई वह वृक्ष उज्जैन में आज भी विद्धमान है जिसे सिद्धवट मंदिर के नाम से जाना जाता हैं
भगवान राम वनवास के दिनो मे उज्जैन में आये थे ओर उन्होंने भगवान गणेश कि स्थापना कि ओर राम जी और सीता जी ने मिलकर उन का पूजन किया जो आज भी उज्जैन में चिन्तामण गणेश के रूप मे जाने जाते है इसी मंदिर परीसर मे एक कुंआ भी है जिसे लक्ष्मण जी ने माता सीता कि प्यास बुझाने के लिए एक ही बाण मे निर्मित किया था।