॥ ॐ #सत्यम शिवम #सुंदरम परम् साक्षी भाव में रहके, निज आनन्द को पाये, काम-क्रोध मद लोभ-मोह, फिर कहीं नजर न आये । सत्-चित-आनन्द परमपिता शिव, जब गुरु रूप में पाये। शिव ही ब्रह्मा शिव ही विष्णु, शिव ही महेश कहलाये | त्रिगुणातीत महेश्वर जीव का, जब सोया भाग्य जगाये || फिर मन की सारी मिटे कल्पना, ओर बुद्धि शिथिल हो जाये । जब चित शुद्ध हो और अहं मिटे, तब माया नज़र ना आये || अल्प जीव है और माया जड़ है, चेतन शिव कहलाये | माया के वश जीव तभी तो, शिव झलक न पाये || वेद-शास्त्र, उपनिषिद्ध-भागवत, बार-बार समझाये | एक अनादि अलख अनन्त ब्रह्म है, सोई शिव कहलाये || दृश्य- दृष्टा दर्शन बनकर, सबको नाच नचाये। परम् गुरु की परम् कृपा से, भेद समझ ये आये || कान्ता कान्तमयि को देखो, मुक्ति परम्पद पाये | “हे ईश्वर”! कह “ईश्वर” के घर, गुरु कृपा से जाये || “ईश्वर” बार-बार समझाये, तू अब क्यों देर लगाये | केवल शिव का सुमिरन करले, पल में मोक्ष पद पाये || “जीव” जब “शिव” रूप हो जाये, तब द्वैत भाव मीट जाये। एकत्व में एकनिष्ठ हो, फिर तीनों ताप नशाये || जन्मों-जन्म की मिटे भरमना, वो फिर जन्म नहीं पाये | जो मत-मतांतर छोड़ के सारे, गुरु शरण में आये || पूर्ण गुरु की पूर्ण कृपा से, वो ही भेद सनातन पाये| पुराण-शास्त्र सत्य हैं सारे, पर इनका रहस्य कौन समझाये || यंत्र-मंत्र और वेद-तंत्र में, केवल शिव ही शिव समाये | यत्र-तत्र सर्वत्र सदाशिव, अब “ईश्वर” क्या समझाये || सतयुग में शिव हुये नारायण, त्रेता में श्रीराम |
जीव” जब “शिव” शरण में आये
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