ऐसा क्या जादू कर डाला,,,,,
मुरली जादूगारी ने,….
किस कारण से संग में मुरली,,,
रखी है गिरधारी ने,
बाँस के एक टुकडे में,,,
ऐसा क्या देखा बनवारी ने,
कभी हाथ में कभी कमर पे
,कभी अधर पे सजती है,,,
मोहन की सांसो की थिरकन से,,,
पल में ये बजती है,…..
एक पल मुरली दूर नही क्यों,,,,
साँवरिये के हाथो से,….
रास नहीं रचता इसके बिन,,,
,,क्यों पूनम की रातों में,
काहे को सौतन कह डाला,,,,
इसको राधे रानी ने,……
अपने कुल से अलग हुई,,,,
और अंग अंग कटवाया है,
गरम सलाखों से इसने,,,,,
रोम रोम बिन्धवाया है,
तब जाकर ये मान दिया है,,,
,बँसी को कृष्णा मुरारी ने,
इस कारण से बँसी सँग में ,,,,,,
रख्खी है गिरधारी ने……..
त्याग तपस्या क्या है ,,,,
ये मुरली समझाती है,
प्रेम करो मुरली के जैसा,,,,,
कान्हा हर पल साथी है,
सच्चे प्रेम को ढूंढ़ता रहता,,,
मोहन दुनिया सारी में_
🙏 जय श्री कृष्ण 🙏