अपना खर्चा खाटू के दरबार से आता है

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माना मेरा राशन तो बाज़ार से आता है
पर उसका खर्चा खाटू के दरबार से आता है
किसी का म्हणत से या कारोबार से आता है
पर अपना खर्चा खाटू के दरबार से आता है

मांगो या फिर ना मांगो ये ठाकुर सब कुछ जाने है
मेरे मन में क्या है ये तो सब कुछ ही पहचाने है
मेरी ज़रूरत का मुझको निश्चित मिल जाता है
पर अपना खर्चा खाटू के दरबार से आता है

जबसे बना है मेरा सखा वो सब कुछ उसपे छोड़ दिया
मंज़िल अगर कठिन हो तो राहों को उसने मोड़ दिया
बिना पुकारे झट से ठाकुर दौड़ा अत है
पर अपना खर्चा खाटू के दरबार से आता है

कभी हंसाता कभी रुलाता और कभी सताता है
कभी प्रेम से गले लगा कर अपना प्रेम जताता है
जनम जनम से उससे मेरा प्यारा नाता है
पर अपना खर्चा खाटू के दरबार से आता है

Suppose my ration comes from the market
But his expenses come from Khatu’s court.
comes from someone’s effort or from business
But his expenses come from Khatu’s court.

Ask or don’t ask, this Thakur knows everything
What’s on my mind, it’s all recognizable
I definitely get what I need
But his expenses come from Khatu’s court.

Ever since my friend was made, he left everything on him
If the destination is difficult, he turns the way
Thakur hastily ran without calling.
But his expenses come from Khatu’s court.

Sometimes laughing sometimes crying and sometimes hurting
Sometimes he expresses his love by hugging him with love
I have a lovely relationship with Janam Janam
But his expenses come from Khatu’s court.

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