आप सभी मुझे दोष दे रहे हैं ।
मेरा मकसद किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं
जरा सोचें और विचार करें कि
ये संसार किस की वजह से दिखाई दे रहा है?
कोन है संसार को जानने वाला?
इसको देखने वाला कोन?
जरा तुम ही अपनी आंखें बंद कर लो
क्या संसार दिख रहा है?
रात को सो गए
तब संसार दिख रहा था?
तुम लोगों को नींद में न घर,न परिवार न शरीर का भास रहता
कोन हो तुम?
तुम जगे तो संसार प्रगट हुआ
जरा दिमाग पर जोर दे
जब आप मां के गर्भ में थे
क्या उस वक्त आप संसार को जानते थे?
या किसी ईश्वर अल्लाह गोंड को जानते थे?
तुम संसार में आए तो तुमने ईश्वर अवतार को माना
लेकिन
जाना नहीं
मानने ओर जानने में रात दिन का अन्तर है
एक होता है कि
क्वारी लड़की ने पति देखा नहीं बस मानती है कि
कहीं होगा
लेकिन
एक शादीशुदा औरत ने जान लिया
इसलिए
वो भटकती नही
ऐसे ही हमने ईश्वर को माना लेकिन जाना नहीं
जगत को माना, देवी देवताओं को माना
लेकिन
ये नहीं जाना कि
किसकी सत्ता से ये नज़र आते हैं ।
जरा अपनी ही आंख बंद कर लो तुम्हें संसार तो क्या ये तुम्हारा शरीर भी नहीं दिखेगा
जो शरीर में आत्मा राम बैठा है जिसकी वजह से तुम बाहर के संसार के भगवान को मान रहे हो
पहले अपने आपको तो जान लो अपने आपको जानने के बाद
फिर तो संसार तो क्या
तुम्हें संसार के हर कण कण में भगवान नजर आयेगा
इसलिए
पहले अपनी खोज करो,अपनी शोध करो कि
तुम कोन हो
बाद में मुझे दोष देना
जहां ये शरीर छूटा
संसार छूट गया
शरीर में कोन था?जिसकी वजह से शरीर में जान थी
उस जान के निकलने से पहले
उस जानने वाले को जान लो
फिर मुझे दोष देना
ज्ञान की दृष्टि से देखोगे तभी ये जान पाओगे कि
जगत ही ईश्वर है।
जाने बिना न होय परतिती
बिन प्रतीत होय नहीं प्रीती
प्रीति बिना न भक्ति दृडाई
जिमि खगेश जल के चिकनाई