।। दोहा ।।
जय गणेश मंगल करण ।
भरण जनम सुख साज ।।
दीन जानी किजै दया ।
हम पर श्री महाराज ।।
।। चौपाई ।।
जय गणपति जय जय शिवनंदन ।
जय जय जन जन कलुष निकंदन ।।
जय लंबोदर विघ्न विनाशन ।
जयति सुमुख विज्ञान विकासन ।।
जय जय कपिल जयति एक दंता ।
जपत जाहि नित सब सुर संता ।।
जय जय भाल चंद्र अति पावन ।
जय जग करण सकल मनभावन ।।
जयति विकट जय जयति विनायक ।
जय सुर वंदित भाग्य विधायक ।।
श्री गेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
जय जय धूम्रकेतु असुरारी ।
जय गजमुख त्रैलोक विहारी ।।
द्वादश नाम जपे जो कोई ।
ताहि निरंतर मंगल होई ।।
रिद्धि सिद्धि दोउ चंवर डुलावें ।
महिमा अमित पार वो पावे ।।
लक्ष्य लाभ दोउ तनय सुहाये ।
मुदित होत जग जात है पाये ।।
जय गजबदन सदन सुखदाता ।
विश्व विनायक बुद्धि विधाता ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
एक समय शिव ऋषि तरी धारी ।
पार्वती कहे दीननकारी ।।
किसकिंधा गिरि गिरिजा गई ।
तहं तुमको प्रगटावत भई ।।
द्वारपाल तहां तुम्ही बनाई ।
आप गुफा विच ध्यान लगाई ।।
कछुक दिवस बिते पर शंकर ।
भये शांत भोले अभयंकर ।।
खोजत गिरिजाहि तहां चली आये ।
रक्षक द्वार तुमहि तहं पाये ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
शिव प्रविशन चहं गुफा मझारी ।
जय गज मुख त्रिलोक विहारि ।।
कोपि शंभू तहं युद्ध मचावा ।
धड़ से सर तब काट गिरावा ।।
शिव प्रार्थना सुनी शिव तोसे ।
करी सिर जोड़त महि पुनि पोसे ।।
एक समय गणपति यह हेतु ।
सुलभ सुनाई कहे बस केतु ।।
महि परिक्रमा करिके जो आवे ।
सो गणेश की पद्धवि पावे ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
सुनि मयूर चढ़ि चले कुमारा ।
तब तुम यह नीज मन हि विचारा ।।
मातु पिता परिकर जो लवे ।
यही परिक्रमा फल सो पावे ।।
यह मन सोच परत तोहिं ठाई ।
गई परिक्रमा शिव गिरजाई ।।
बुद्धिमान लखी सब सुर हरषे ।
तुमहि सराही सुमन बहु अरसे ।।
सुर सम्मति हे तबहिं महेशा ।
तुमहि बनाये वेगी गणेशा ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
आदि कल्प में सृष्टि प्रसारन ।
हित इच्छा किन्हेउ जग तारण ।।
मुनि देखहु हरि नयन उघारी ।
सकल जगत मे है अंधियारी ।।
तब हरि धरेउ गणेश स्वरूपा ।
गजमुख लंबोदर सुर भूपा ।।
दीर्घ सूंड सो सब अंधियारी ।
पेंच लपेटहु गर में डारी ।।
तब ते जगत पुज्य प्रभु भयउ ।
आदि गणेश कहावत भयउ ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
महिमा नाथ कहां लगी गाऊँ ।
तब यशवर्णत पार ना पाऊँ ।।
जय जग वंदन विद्या सागर ।
जय मोदक प्रिय सब गुण आगर ।।
कहां लगी कहु बदन की शोभा ।
मुनि मन जाहि विलोकत लोभा ।।
लाल वरण दोउ चरण सुहावन ।
अमित अधिक जो किनेउ पावन ।।
नाग यज्ञ उप बीत सुहावे ।
दीन नयन लखी अरि दुःख पावे ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
अक्षमाल निज तंत दक्ष कर ।
मोदक पात्र परस बायें धर ।।
पद्मासम मुसक असवारी ।
सोहत त्रिविध ताप भये हारी ।।
जय जय देव सुजन मन रंजन ।
जय जय सुरदिज महि दुःख भंजन।।
जय जय सुर गिरिजा के नंदन ।
जय जय जयति भक्त उर चंदन ।।
जय जय अग्र पुज शुभ धामा ।
सुमिरत सिद्ध होई सब कामा ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
जय जय व्यास सहायक स्वमी ।
कृपा करहु उर अंतर्यामी ।।
जय जय जय पितांबरधारी ।
शुक्लांबर धरि जय अगहारी ।।
जयति रत्र अंबर परिधानम् ।
विघ्न विमोचन मोद निधानम् ।।
शेभु जलंधर यद्ध मचावा ।
तहाँ आप निज बल ही दिखावा ।।
अगनित दैत्य निमिस में मारे ।
भागे बचे रहे अधमारे ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
हे प्रभु दीन बंधु अविनाशी ।
करहुँ कृपा त्रैलोक विलासी ।।
जप तप पुजा पाठ अचारा ।
नहीं जानत मति मंद गंवारा ।।
नहीं विज्ञान ग्रंथ मत जानों ।
केवल तब भरोस उर मानों ।।
भूल चूक जो होई हमारो ।
क्षमिय नाथ मैं दास तिहारो ।।
लहि मोह पह बल बुद्धि लवलेसा ।
सब बल निर्भय रहत हमेशा ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
नाथ आप हो बुद्धि विधाता ।
अति आतुर दुःख करहु नी पाता ।।
जो जन तुम्हरो ध्यान लगावें ।
सो अभिमत फल वेग ही पावें ।।
नाथ मोहि बहु दुष्ट सतावे ।
शुभ का मन में विघ्न मचावे ।।
इनकर नाश वेग ही किजै ।
महाराज मम विनय सुनिजे ।।
तुम ही आन गिरिजा शंकर की ।
विपत्ति हटाओ जन के घर की ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
जो यह पढ़े गणेश चालीसा ।
ताकहँ सिद्धि होई सिद्धिसा ।।
जो व्रत चौथ करे मन लाई ।
ता पर गणपति होई सहाई ।।
निर्जल व्रत दिन भर जो करई ।
चंद्रोदये पुजा अनुसरई ।।
यथा शक्ति पुजे धरि ध्याना ।
गणपति छोड़ि भजे नहीं आना ।।
आकर कारज सकल संवारे ।
सत्य सत्य सुती संत पुकारे ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
चौथ परम प्यारी गणराजहि ।
कामह चार मुख्य करि भाजहि ।।
संकट चौथ को पुजि गणेशा ।
पुजिये पाद विनायक ईसा ।।
सिद्धिविनायक चौथ काहावे ।
जासु कृपा जन अभिमत पावे ।।
श्रावण शुक्ल चतुर्थी आवे ।
तब व्रत को आरंभ लगावे ।।
एक बार करी सात्विक स्नाना ।
रहे सनियम तजे सब व्यसना ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
पुजे नित्य कपर दी गणेशा ।
ताके पाप रहे नहीं लेसा ।।
भाद्र शुक्ल की चौथ सुहावन ।
व्रत समाप्त तेहि दिन करी पावन ।।
द्ववादश नाम पाठ नित करई ।
मन वच कर्म ध्यान नित धरई ।। ६८
विद्याआरम्भ विवाह मझाहिं ।
पुनि प्रवेश यात्रा सुखकारी ।।
संकट तथा विकट संग्रामा ।
विघ्न होई नहीं कोनउ कामा ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
सत्य सत्य नहीं संशय भाई ।
गणपति कृपा सुमन अग माई ।।
है अबोध जन रसिक विहारी ।
जागत सोवत शरण तुम्हारी ।।
अक्षर पदयात्रा स्वर भंगा ।
क्षमहुं पाठ के विकरत अंगा ।।
तब प्रसाद पुरन सब होई ।
है मरजाद नाम की सोई ।।
वंदउ नाथ जुगल कर जोरी ।
सुन लिजै प्रभु अरजी मोरी ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
।। दोहा ।।
निश्चय दृढ़ विश्वास करी ।
श्रवण करे मन लाये ।।
ताके ऊपर शंभू सुत ।
गणपति होय सहाय ।।
।। दोहा ।।
जय गणेश मंगल करण ।
भरण जनम सुख साज ।।
दीन जानी किजै दया ।
हम पर श्री महाराज ।।
।। चौपाई ।।
जय गणपति जय जय शिवनंदन ।
जय जय जन जन कलुष निकंदन ।।
जय लंबोदर विघ्न विनाशन ।
जयति सुमुख विज्ञान विकासन ।।
जय जय कपिल जयति एक दंता ।
जपत जाहि नित सब सुर संता ।।
जय जय भाल चंद्र अति पावन ।
जय जग करण सकल मनभावन ।।
जयति विकट जय जयति विनायक ।
जय सुर वंदित भाग्य विधायक ।।
श्री गेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
जय जय धूम्रकेतु असुरारी ।
जय गजमुख त्रैलोक विहारी ।।
द्वादश नाम जपे जो कोई ।
ताहि निरंतर मंगल होई ।।
रिद्धि सिद्धि दोउ चंवर डुलावें ।
महिमा अमित पार वो पावे ।।
लक्ष्य लाभ दोउ तनय सुहाये ।
मुदित होत जग जात है पाये ।।
जय गजबदन सदन सुखदाता ।
विश्व विनायक बुद्धि विधाता ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
एक समय शिव ऋषि तरी धारी ।
पार्वती कहे दीननकारी ।।
किसकिंधा गिरि गिरिजा गई ।
तहं तुमको प्रगटावत भई ।।
द्वारपाल तहां तुम्ही बनाई ।
आप गुफा विच ध्यान लगाई ।।
कछुक दिवस बिते पर शंकर ।
भये शांत भोले अभयंकर ।।
खोजत गिरिजाहि तहां चली आये ।
रक्षक द्वार तुमहि तहं पाये ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
शिव प्रविशन चहं गुफा मझारी ।
जय गज मुख त्रिलोक विहारि ।।
कोपि शंभू तहं युद्ध मचावा ।
धड़ से सर तब काट गिरावा ।।
शिव प्रार्थना सुनी शिव तोसे ।
करी सिर जोड़त महि पुनि पोसे ।।
एक समय गणपति यह हेतु ।
सुलभ सुनाई कहे बस केतु ।।
महि परिक्रमा करिके जो आवे ।
सो गणेश की पद्धवि पावे ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
सुनि मयूर चढ़ि चले कुमारा ।
तब तुम यह नीज मन हि विचारा ।।
मातु पिता परिकर जो लवे ।
यही परिक्रमा फल सो पावे ।।
यह मन सोच परत तोहिं ठाई ।
गई परिक्रमा शिव गिरजाई ।।
बुद्धिमान लखी सब सुर हरषे ।
तुमहि सराही सुमन बहु अरसे ।।
सुर सम्मति हे तबहिं महेशा ।
तुमहि बनाये वेगी गणेशा ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
आदि कल्प में सृष्टि प्रसारन ।
हित इच्छा किन्हेउ जग तारण ।।
मुनि देखहु हरि नयन उघारी ।
सकल जगत मे है अंधियारी ।।
तब हरि धरेउ गणेश स्वरूपा ।
गजमुख लंबोदर सुर भूपा ।।
दीर्घ सूंड सो सब अंधियारी ।
पेंच लपेटहु गर में डारी ।।
तब ते जगत पुज्य प्रभु भयउ ।
आदि गणेश कहावत भयउ ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
महिमा नाथ कहां लगी गाऊँ ।
तब यशवर्णत पार ना पाऊँ ।।
जय जग वंदन विद्या सागर ।
जय मोदक प्रिय सब गुण आगर ।।
कहां लगी कहु बदन की शोभा ।
मुनि मन जाहि विलोकत लोभा ।।
लाल वरण दोउ चरण सुहावन ।
अमित अधिक जो किनेउ पावन ।।
नाग यज्ञ उप बीत सुहावे ।
दीन नयन लखी अरि दुःख पावे ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
अक्षमाल निज तंत दक्ष कर ।
मोदक पात्र परस बायें धर ।।
पद्मासम मुसक असवारी ।
सोहत त्रिविध ताप भये हारी ।।
जय जय देव सुजन मन रंजन ।
जय जय सुरदिज महि दुःख भंजन।।
जय जय सुर गिरिजा के नंदन ।
जय जय जयति भक्त उर चंदन ।।
जय जय अग्र पुज शुभ धामा ।
सुमिरत सिद्ध होई सब कामा ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
जय जय व्यास सहायक स्वमी ।
कृपा करहु उर अंतर्यामी ।।
जय जय जय पितांबरधारी ।
शुक्लांबर धरि जय अगहारी ।।
जयति रत्र अंबर परिधानम् ।
विघ्न विमोचन मोद निधानम् ।।
शेभु जलंधर यद्ध मचावा ।
तहाँ आप निज बल ही दिखावा ।।
अगनित दैत्य निमिस में मारे ।
भागे बचे रहे अधमारे ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
हे प्रभु दीन बंधु अविनाशी ।
करहुँ कृपा त्रैलोक विलासी ।।
जप तप पुजा पाठ अचारा ।
नहीं जानत मति मंद गंवारा ।।
नहीं विज्ञान ग्रंथ मत जानों ।
केवल तब भरोस उर मानों ।।
भूल चूक जो होई हमारो ।
क्षमिय नाथ मैं दास तिहारो ।।
लहि मोह पह बल बुद्धि लवलेसा ।
सब बल निर्भय रहत हमेशा ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
नाथ आप हो बुद्धि विधाता ।
अति आतुर दुःख करहु नी पाता ।।
जो जन तुम्हरो ध्यान लगावें ।
सो अभिमत फल वेग ही पावें ।।
नाथ मोहि बहु दुष्ट सतावे ।
शुभ का मन में विघ्न मचावे ।।
इनकर नाश वेग ही किजै ।
महाराज मम विनय सुनिजे ।।
तुम ही आन गिरिजा शंकर की ।
विपत्ति हटाओ जन के घर की ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
जो यह पढ़े गणेश चालीसा ।
ताकहँ सिद्धि होई सिद्धिसा ।।
जो व्रत चौथ करे मन लाई ।
ता पर गणपति होई सहाई ।।
निर्जल व्रत दिन भर जो करई ।
चंद्रोदये पुजा अनुसरई ।।
यथा शक्ति पुजे धरि ध्याना ।
गणपति छोड़ि भजे नहीं आना ।।
आकर कारज सकल संवारे ।
सत्य सत्य सुती संत पुकारे ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
चौथ परम प्यारी गणराजहि ।
कामह चार मुख्य करि भाजहि ।।
संकट चौथ को पुजि गणेशा ।
पुजिये पाद विनायक ईसा ।।
सिद्धिविनायक चौथ काहावे ।
जासु कृपा जन अभिमत पावे ।।
श्रावण शुक्ल चतुर्थी आवे ।
तब व्रत को आरंभ लगावे ।।
एक बार करी सात्विक स्नाना ।
रहे सनियम तजे सब व्यसना ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
पुजे नित्य कपर दी गणेशा ।
ताके पाप रहे नहीं लेसा ।।
भाद्र शुक्ल की चौथ सुहावन ।
व्रत समाप्त तेहि दिन करी पावन ।।
द्ववादश नाम पाठ नित करई ।
मन वच कर्म ध्यान नित धरई ।। ६८
विद्याआरम्भ विवाह मझाहिं ।
पुनि प्रवेश यात्रा सुखकारी ।।
संकट तथा विकट संग्रामा ।
विघ्न होई नहीं कोनउ कामा ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
सत्य सत्य नहीं संशय भाई ।
गणपति कृपा सुमन अग माई ।।
है अबोध जन रसिक विहारी ।
जागत सोवत शरण तुम्हारी ।।
अक्षर पदयात्रा स्वर भंगा ।
क्षमहुं पाठ के विकरत अंगा ।।
तब प्रसाद पुरन सब होई ।
है मरजाद नाम की सोई ।।
वंदउ नाथ जुगल कर जोरी ।
सुन लिजै प्रभु अरजी मोरी ।।
श्री गणेशाय नमः
श्री लंबोदराय नमः
श्री विघ्नेशाय नमः
श्री एक दंताय नमः
श्री गणेशाय नमः
।। दोहा ।।
निश्चय दृढ़ विश्वास करी ।
श्रवण करे मन लाये ।।
ताके ऊपर शंभू सुत ।
गणपति होय सहाय ।।