उधो रे
हम प्रेम दीवानी हैं,
वो प्रेम दीवाना।
ऐ उधो हमें ज्ञान
की पोथी ना सुनाना॥
तन मन जीवन श्याम का,
श्याम हम्मर काम।
रोम रोम में राम रहा,
वो मतवाला श्याम।
इस तन में अब
योग नहीं कोई ठिकाना॥
उधो इन असुवन को
हरि सन्मुख ले जाओ।
पूछे हरी कुशल तो
चरणों में दीओ चढाओ ।
कहिओ जी इस प्रेम का
यह तुच्छ नजराना॥
प्रेम डोर से बंध रहा
जीवन का संयोग।
सुमिरन में डूबी रहें,
यही हमारा योग।
कानो में रहे गूंजता
वंशी का तराना॥
इक दिन नयन के निकट
रहते थे आठों याम।
अब बैठे हमें विसार के,
वो निर्मोही श्याम।
दीपक वो ज़माना था,
और यह भी यमाना॥