जब से गये मेरे मोहन परदेश में।
तब से रहती हूँ पगली के वेश में॥
कभी नींद न आये,कभी नैना भर आये।
क्या मानू समझ लीजिए,
मेरे कान्हा को मुझसे मिला दीजिये।
वो वंशी की धुन फिर सुना दीजिये॥
गालियां ये हो गई सुनी,सुना अँगनवा,
कान्हा नही है आते,आवे सपनवा।
कभी वंशी बजाए,कभी माखन चुराए॥
बस यादे समझ लीजिए,
मेरे कान्हा को मुझसे मिला दीजिये।
वो वंशी की धुन फिर सुना दिजीये॥
परसो की कहकर गए वर्षो लगायल
न ही वो खुद आये न संदेश आयल
मैं तो राह निहारूँ, कान्हा कान्हा पुकारूँ।
कोई मुझको मिला दीजिये
मेरे कान्हा को मुझसे मिला दीजिये।
वो वंशी की धुन फिर सुना दीजिये।।
जब से गये मेरे मोहन परदेश में..
तब से रहती हूँ……..
सचिन निगम टिकैतनगर
Ever since my Mohan went abroad.
Since then I live in the guise of a pagli.
Never sleep, sometimes Naina gets full.
Guess what,
Join my Kanha with me.
Hear the tune of that Vanshi again.
These abuses have become heard, I heard it, Ignorance,
Kanha does not come, he has come to dream.
Sometimes playing Vanshi, sometimes stealing butter.
just remember,
Join my Kanha with me.
Hear the tune of that Vanshi again.
Years gone by saying yesterday
Neither he himself nor the message oil
I should look out for the way, call Kanha Kanha.
someone join me
Join my Kanha with me.
Hear the tune of that Vanshi again.
Ever since my Mohan went abroad..
I have lived since then…….
Sachin Nigam Tikaitnagar