ओ हरि जी, चरन कमल बलिहारी
ओ हरि जी
जेहि चरनन से सुरसरि निकली,
सारे जगत को तारी ।
जेहि चरनन से तरी अहिल्या,
पाहन से बनि गई नारी ।
ओ हरि जी, चरन कमल बलिहारी
ओ हरि जी
जेहि चरनन केवंट धोइ लिन्हा,
तब हरि पार उतारी ।
जेहि चरनन की चरनपादुका,
भरत रहे हिय धारी ।
ओ हरि जी, चरन कमल बलिहारी ।
ओ हरि जी,
जेहि चरनन सुर नर मुनी सेवत,
हो गए परमपदधारी ।
जेहि चरनन ‘ब्रह्मा शिव ‘ ध्यावत,
कब होइहैं कृपा तुम्हारी ।
ओ हरि जी, चरन कमल बलिहारी ।
ओ हरि जी
ओ हरि जी चरन कमल बलिहारी ।
Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email