सिय राम के नाम सदा जपिये।
जिनके पद तीनहुं लोक बसैं उनकी छवि हिय में रखिये।
जिनके पद पंकज से निकसी सुरसरि से तीनहुं लोक तरैं।
जिनके पद अम्बुज उर धारे अंजनिसुत गिरिवर लै विहरैं।
जिनके चरनन रज के परसे गिरगिट भये राजा नृग उबरैं।
जिनके पद परसि बढ़ी जमुना भइ शान्त सरोवर सम पसरैं।
जिनने दुइ पद डग दान लिये त्रिभुवन सगरे विस्तार किये।
हरि के पदचीन्ह किरीट धरे बलिराज जनम उद्धार किये।
रघुनाथ चरन रज पाइ तरे अंगद,लंकेश, सुरेश भजैं।
तिहुं लोक फिरत गुन गान करत कपि राम को सीय समेत भजैं।।
हरि नाम सदा उर धाम धरे सिय राम चरन नित मन धारे।
सियराम छवी हिय माहिं बसे प्रभु नाम सदा बन्धन तारे।।
प्रभु के गुणगान की खान लिये प्रभुनाम सदा जपते रहिये।
सिय राम के नाम सदा जपिये।।
श्री हरि ॐ