करता करे न कर सके, सतगुरु करे सो होय, तीनों लोक, नौ खंड में सतगुरु से बड़ा न कोय।
सतगुरु वो तेज हैं जिनके आते ही संशय के अंधकार समाप्त हो जाते हैं,
सतगुरु वो मृदंग हैं जिनके बजते ही अनहद नाद सुनने शुरू हो जाते हैं,
सतगुरु वह ज्ञान हैं, जिनके सामने सारे ज्ञान फ़ीके पड़ जाते हैं,
सतगुरु वह दीक्षा हैं, जो सही मायने में मिलने से भव पार हो जाते हैं,
सतगुरु वह नदी हैं, जो निरंतर याद बनकर हमारी श्वांसों में बहती है,
सतगुरु वो सत-चित-आनंद हैं, जो हमें हमारी पहचान देते हैं…
आज से हम अपने सच्चे सच्चे सतगुरु (परमात्मा) का ही चिंतन, स्मरण, अनुसरण करें…
Whether he can do it or not, if Satguru does it, it happens, there is no one greater than Satguru in all the three worlds and nine regions.
Satguru is that light with whose arrival the darkness of doubt ends.
Satguru is that Mridang, as soon as it is played, one starts hearing infinite sounds.
Satguru is that knowledge in front of whom all knowledge becomes pale,
Satguru is that initiation, who, after meeting him in the true sense, transcends all existence.
Satguru is that river, which flows in our breath as a constant memory,
Satguru is that Sat-Chit-Anand, who gives us our identity…
From today onwards, let us think, remember and follow only our true Satguru (God)…