सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाये तरुवर की छाया,
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैं जब से शरण तेरी आया, मेरे राम |
भटका हुआ मेरा मन था, कोई मिल ना रहा था सहारा |
लहरों से लगी हुई नाव को जैसे मिल ना रहा हो किनारा |
इस लडखडाती हुई नव को जो किसी ने किनारा दिखाया,
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैं जब से शरण तेरी आया | मेरे राम ||
शीतल बने आग चन्दन के जैसी राघव कृपा हो जो तेरी |
उजयाली पूनम की हो जाये राते जो थी अमावस अँधेरी |
युग युग से प्यासी मुरुभूमि ने जैसे सावन का संदेस पाया |
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैं जब से शरण तेरी आया | मेरे राम ||
जिस राह की मंजिल तेरा मिलन हो उस पर कदम मैं बड़ाऊ |
फूलों मे खारों मे पतझड़ बहारो मे मैं ना कबी डगमगाऊ |
पानी के प्यासे को तकदीर ने जैसे जी भर के अमृत पिलाया |
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैं जब से शरण तेरी आया | मेरे राम ||
May the body burning with the heat of the sun meet the shadow of the tree,
My mind has got such happiness, ever since I came to your refuge, my Ram.
My mind was lost, no one was getting support.
As if the boat stuck by the waves is not getting the shore.
Whoever showed the edge to this faltering new
Such happiness has been given to my mind, ever since I came to take refuge in you. my ram ||
May the fire become cool like sandalwood, may Raghav’s grace be yours.
Poonam ki jaye raate, which was the darkest of the new moons.
The thirsty desert has received the message of Sawan since ages.
Such happiness has been given to my mind, ever since I came to take refuge in you. my ram ||
Let me take steps on the path whose destination is your meeting.
I will not waver in the flowers in the autumn in the springs.
To the thirsty of water, as fate had given him nectar throughout his life.
Such happiness has been given to my mind, ever since I came to take refuge in you. my ram ||