।। परात्पर ब्रह्म श्री राम ।।
तात राम नहिं नर भूपाला।
भुवनेस्वर कालहु कर काला।।
ब्रह्म अनामय अज भगवंता।
ब्यापक अजित अनादि अनन्ता।।
गो द्विज धेनु देव हितकारी।
कृपा सिंधु मानुष तनुधारी।।
जन रंजन भंजन खल ब्राता।
बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता।।
(श्रीरामचरितमानस- ५ / ३८ / १ – ४)
भावार्थ-
हे तात ! राम मनुष्यों के ही राजा नहीं हैं। वे समस्त लोकों के स्वामी और काल के भी काल हैं।
वे (सम्पूर्ण ऐश्वर्य, यश, श्री, धर्म, वैराग्य एवं ज्ञान के भण्डार) भगवान् हैं; वे निरामय (विकाररहित), अजन्मा, व्यापक, अजेय, अनादि और अनन्त ब्रह्म हैं।
उन कृपा के समुद्र भगवान् ने पृथ्वी, ब्राह्मण, गौ और देवताओं का हित करने के लिये ही मनुष्य रूप धारण किया है।
हे भाई ! सुनिये, वे सेवकों को आनन्द देनेवाले, दुष्टों के समुह का नाश करनेवाले और वेद तथा धर्म की रक्षा करनेवाले हैं। ।। श्री रामाय नमः ।।
।। Paratpara Brahma Sri Rama.
Not Tat Ram, but Nar Bhupala.
Bhuvneswar becomes black.
Brahma is the unborn Lord.
pervading invincible eternal infinite.
Cow, Dwija, Dhenu Dev are beneficial.
Kind Sindhu Manush Tanudhari.
Jan Ranjan Bhanjan Khal Brata.
Listen brother, creator of Veda religion.
(Shri Ramcharitmanas- 5 / 38 / 1 – 4)
gist-
Oh father! Ram is not the king of humans only. He is the master of all the worlds and also of time itself.
He (the storehouse of complete opulence, fame, glory, religion, renunciation and knowledge) is God; He is Niramaya (without any disorder), unborn, all-pervasive, invincible, eternal and eternal Brahman.
That ocean of grace, God has taken human form only for the welfare of the earth, Brahmins, cows and gods.
Hey brother! Listen, He is the giver of joy to the servants, the destroyer of the crowd of evildoers and the protector of the Vedas and Dharma. ।। Ome Sri Ramaya Namah ।।