आरती आना,आरती करना और आरती होने में फर्क है।आप कहोगे मै पागल तो नही हो गया हु।मै देखता हूं लोगो को बहुत सारी आरती याद है।एक होती है तो दूसरी फिर तीसरी।बहुत अच्छी बात है।लेकिन आरती के पीछे सूक्ष्म विज्ञान है,भक्ति रस का विज्ञान।बस जानना है।
आरती शब्द बना है “आर्त से”।जब ईश्वर की सम्पूर्ण सगुण पूजा हो जाए तो “आर्त भाव से खुद को ज्योति रुप मे उसे सौप देना”।बड़ी दुर्लभ अवस्था है आर्त भाव आना।यह कोई करने वाली क्रिया नही है,न इसका शब्द और स्मृति से संबंध है।यह तो बस होने वाली चीज है।हो गयी तो समझो कनेक्ट बन गया उससे।
आरती भले ही एक हो या अनेक,आर्त भाव महत्व का है।आरती करते वक्त आवाज में एक सौम्यता हो,प्रेम रस हो,उन शब्दों को समझ कर उस भाव मे प्रवेश की संभावना हो,सरलता हो।आरती याद होने का पांडित्य न हो।दुसरो से ज्यादा आने का अहंकार न हो।आरती करने मे श्रम न लगे।
आरती यह भक्ति मार्ग का प्रवेश द्वार है।उसके दरवाजे चौबीस घण्टे हमारे लिए खुले है।भाव यदि है तो दीपक थाल के बिना भी आरती सम्भव है।इसलिए आरती आना,आरती करना और आर्त भाव मे जाना अलग अलग है।
There is a difference between coming to Aarti, doing Aarti and having Aarti. You will say that I have not gone mad. I see people remember many Aartis. One happens, then the second and then the third. It is a very good thing. But behind the Aarti It is a subtle science, the science of devotion. You just have to know.
The word ‘Aarti’ is derived from ‘Aarta’. When God is completely worshiped, then “surrender yourself to Him in the form of light with Arta Bhava”. A very rare state is to come to Arta Bhava. This is not an action to be done, nor does it There is a connection between words and memory. This is just a thing that is going to happen. If it happens then understand that a connection has been made with it.
Whether Aarti is one or many, the feeling of art is important. While doing Aarti, there should be gentleness in the voice, there should be love, there should be a possibility of entering into that feeling by understanding those words, there should be simplicity. There should not be any erudition in remembering the Aarti. There should not be arrogance of coming more than others. There should not be any effort in performing the Aarti.
Aarti is the gateway to the path of devotion. Its doors are open for us 24 hours. If there is feeling then Aarti is possible even without the lamp plate. Therefore coming to Aarti, doing Aarti and going in feeling of Aarti are different.